Saturday, December 26, 2015

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

 रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

स्वामी विवेकानंद     :  मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आप-धापी से भर गया है.

रामकृष्ण परमहंस   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं. लेकिन उत्पादकता आजाद करती है.

स्वामी विवेकानंद     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो. यह इसे जटिल बना देता है. जीवन को सिर्फ जिओ.

स्वामी विवेकानंद     :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?

रामकृष्ण परमहंस   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है. इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते.

स्वामी विवेकानंद     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता.

स्वामी विवेकानंद     :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हां. हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.

स्वामी विवेकानंद     :  समस्याओं से घिरे रहने के कारण, हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं...

रामकृष्ण परमहंस   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.

स्वामी विवेकानंद     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंस   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.

स्वामी विवेकानंद     :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं.

स्वामी विवेकानंद     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, "मैं ही क्यों?" जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, "मैं ही क्यों?"



स्वामी विवेकानंद     :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ?

रामकृष्ण परमहंस   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.

स्वामी विवेकानंद     :  एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे  लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं.

रामकृष्ण परमहंस   :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती. अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो. जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है. यह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है. मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है.

Tuesday, December 22, 2015

अनुलोम-विलोम काव्य

 दोस्तोँ ,

क्या ऐसा सम्भव है कि किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे। 

जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शती के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ 'राघवयादवीयम् ' ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है।

पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। 

इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है :

राघवयादवीयम। उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं जो जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

विलोमम्
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हूं जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।
राघवयादवीयम के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं
राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्
 
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्या
सावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताके
सा ॥ २॥
कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥
रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥
यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥
मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥
विलोमम्
 
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥
रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगो
रेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सा
रसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥
सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसा
रहा ॥ ८॥

विलोमम्
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्
वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससा
रसा ॥ ८॥
सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥
तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥
वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्
यसौ ॥ ११॥

विलोमम्
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्
वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥
यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥
रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥
यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥
दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्
डदम् ॥ १५॥
सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥
विलोमम्
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रु
तम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥
सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७॥

विलोमम्
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥
तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥
गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥
हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिरा
ः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥
ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।
हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥ २१॥

विलोमम्
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥
भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥
विलोमम्
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधी
रुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥
हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारु
तम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥
भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥
हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥
सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतो
गजम् ॥ २६॥

विलोमम्
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमा
सतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥
वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥
हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥
नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणा
वरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥
साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्
यसा ॥ ३०॥
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॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री राघव यादवीयं समाप्तम् ॥
....................रामभक्त

Sunday, December 20, 2015

गीता जयन्ती पर विशेष

दोस्तों ,

आज गीता जयन्ती है। धर्म गर्न्थो के मुताबिक मार्ग शीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है। 5151 वर्ष पहले इसी दिन भगवत गीता दुनिया के समक्ष उद्घाटित हुई थी। भगवत गीता के सम्बन्ध में कुछ और रोचक जानकारियाँ दी जा रही है :



  • कर्तव्य से भटके अर्जुन को कर्तव्य पथ पर लाने एवं आने वाली पीढ़ियों को कर्म की प्रधानता बताने के लिए श्रीकृष्ण ने गीता का सन्देश दिया था। इसका सार निष्काम भावना से कर्म करना है। 
  • भगवत गीता के 18 अध्यायों में 700  श्लोक है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है। इसमें श्रीकृष्ण ने 574 ,अर्जुन ने 85 ,संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने १ श्लोक उच्चारित किया है। 
  • महाग्रंथ गीता में सर्वाधिक 78 श्लोक अंतिम अध्याय मोक्ष सन्यास योग और न्यूनतम 20 -20 श्लोक भक्ति योग ( 12 वां अध्याय ) और पुरुषोत्तम योग (15 वें अध्याय )में है. 
  • माना जाता है कि चौथाई पहर में ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सन्देश दिया।  गीता की गिनती हिन्दू धर्म ग्रन्थो के तहत उपनिषदों में होती है। इसका दूसरा नाम गीतोपनिषद है। 
  • आधुनिक युग में कई महापुरषो  ने गीता पर लिखा है। उसमे चर्चित कृतियाँ गीता रहस्य (बाल गंगा धार तिलक ) ,अनाशक्ति योग (महात्मा गांधी),एसेज ओन गीता (श्री अरबिन्दो  घोष) और गीता प्रवचन (विनोदबा भावे )है। 
  • लोक मान्य तिलक ने गीता रहस्य पुस्तक की रचना महज पांच महीने में मांडले जेल (म्यांमार ) में पेंसिल से की थी। इसमें उन्होंने गीता के कर्म योग की वृहद व्याख्या की है। 
  • तिलक का मानना था कि मूल गीता निवृति प्रधान नहीं है। वह तो कर्म प्रधान है। महात्मा गाँधी ने गीता रहस्य पढ़ कर कहा था की गीता पर तिलक की यह टीका उनका शास्वत स्मारक है।
 महात्मा गाँधी ,गीता के बड़े प्रशंसक थे। ग्रन्थ को वह अपनी माता कहते थे। महात्मा गांधी ने इसके श्लोकों का सरल अनुवाद करके अनाशक्ति योग का नाम दिया। कर्म करते समय निस्पृह भाव में चले जाना ही अनशक्त भाव है। राग और द्वेष से असंतृप्त हो जाना ही अनाशक्ति है।  
                                       श्री गीता जयंती का महत्व.....
ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके बारे में कहा गया है कि यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था।
                                                                         अंत  में 
जीवन में जो भी करो,
     पूरे समर्पण के साथ करो...।
    प्रेम करो तो मीरा की तरह....
    प्रतीक्षा करो तो शबरी की तरह...
    भक्ति करो तो हनुमान की तरह...
    शिष्य बनो तो अर्जुन के समान...
    और
    मित्र बनो तो स्वयं कृष्ण के  समान ।
        ।।जय श्री राधेकृष्णा।।
 
अजय सिंह "जे एस के "

Friday, December 4, 2015

भगवत गीता में है जीवन की समस्या समाधान

 दोस्तों,   

क्या आपके पास भगवद-गीता है ?
अगर नहीं है तो जरुर लीजिये, ये आपके जीवन से जुडी कई समस्याओं और प्रश्नों को हल कर सकती है ।
गीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक जो आपके कई प्रश्नों को सुलझा सकते हैं ?
१. हम चिंता और शोक से कैसे छुटकारा पा सकते हैं ? - भ.गी. 2.22
२. शांति प्राप्त करने के लिए स्थिर मन और अलौकिक बुद्धि कैसे प्राप्त किया जाये ? - भ.गी.2.66
३. भगवान को अर्पित भोजन ही क्यों खाया जाये ? - भ.गी. 3.31
४. अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करते हुए भक्ति कैसे की जाये ? - भ.गी. 3.43
५. जीवन की पूर्णता को कैसे पाया जाये ? - भ.गी. 4.9
६. धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को कैसे पाएं ? - भ.गी. 4.11
७. आध्यात्मिक गुरु का आश्रय कैसे लें ? - भ.गी. 4.34
८. क्या एक पापी भी दुखों के सागर को पार सकता है ? - भ.गी. 4.36
९. मनुष्य दुखों के जाल में क्यों फंसा हुआ है ? - भ.गी. 5.22
१०. शान्ति का सूत्र क्या है ? - भ.गी. 5.29
११. मन किसका मित्र है और किसका शत्रु ? - भ.गी. 6.6
१२. क्या मन को नियंत्रित करके शांति प्राप्त की जा सकती है ? - भ.गी. 6.7
१३. चंचल मन को कैसे नियंत्रित करें ? - भ.गी. 6.35
१४. पूर्ण ज्ञान क्या है ? - भ.गी. 7.2
१५. मुक्ति कैसे पाएं ? - भ.गी. 7.7
१६. माया को वश में करने का रहस्य क्या है ? - भ.गी. 7.14
१७. पाप-कर्म क्या हैं ? उन्हें कैसे हटाया जाये ? - भ.गी. 9.2
१८. हमारा परम-लक्ष्य क्या होना चाहिए ? - भ.गी. 9.18
१९. क्या कोई व्यक्ति अपनी इच्छा के ग्रह पर पहुँच सकता है ? - भ.गी. 9.25
२०. क्या भगवान हमारे द्वारा अर्पित भोजन ग्रहण करते हैं ? - भ.गी. 9.26
२१. इस भौतिक संसार में आनंद पाने के माध्यम क्या हैं ? - भ.गी. 9.34
२२. इस मनुष्य जन्म की पूर्णता क्या है ? - भ.गी. 10.10
२३. हमारे हृदयों में संचित मल को कैसे साफ़ किया जाये ? - भ.गी. 10.11 
२४. परम पुरुषोत्तम भगवान कौन हैं ? - भ.गी. 10.12-13
२५. भगवान कृष्ण ने अर्जुन को विश्व-रूप क्यों दिखाया ? - भ.गी. 11.1
२६. भगवद-गीता का सार क्या है और हमारे दुखों का कारण क्या है ? - भ.गी. 11.55
२७. रजोगुण एवं तमोगुण पर विजय कैसे प्राप्त करें ? - भ.गी. 14.26
२८. क्या हम भगवान को देख, सुन और उनसे बात कर सकते हैं ? - भ.गी. 15.7
२९. जीव शरीर छोड़ते समय साथ में क्या ले जाता है ? - भ.गी. 15.8 
३०. भगवान को कैसे पाया जाये ? - भ.गी. 18.66
गीता-जयंती पर भगवद-गीता वितरण करने वाले सभी भक्त इस सन्देश को सुरक्षित रखें ।
हरे कृष्ण