Sunday, December 31, 2017

जीवन में शान्ति प्राप्त करने के लिए चार मन्त्र

दोस्तों,
मानव जीवन  का उद्देश्य  केवल अपने जीवन की  शांति  और मोक्ष प्राप्त  करना न होकर विश्व शांति की कामना एवं इसके लिए काम करना है। ताकि विश्व में सुख एवं  शांति हो सके। आज दुनिया में भुखमरी ,बीमारी एवं युद्ध इत्यादि से मानव ग्रसित है। अतः हम सब की यह कोशिश होनी चाहिए की हमारे प्रयासों से
इस    नव वर्ष दुनिया में सुखशांति की शुरुवात का वर्ष बने और इसकी शुरुवात  पहले दिन से ही हो जाये। इस प्रयास की शुरुवात हमें अपने आप से ही करनी पड़ेगी क्योँकि दुनियाँ तो हम सब से ही मिलकर बनी  है।  इसको प्राप्त करना कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं बस थोड़ा प्रयास और अभ्यास साथ में अपने ऊपर और अपने लक्ष्य में विश्वास   से होना संभव हो जायेगा। प्रयास को सार्थक बनाने के लिए  कुछ सुझाव दिए  गए है इन पर अमल प्रथम लक्ष्य यानि स्वशान्ति प्राप्त करने में निश्चित सहायक होगी।

अंतः  शान्ति बाह्य शान्ति  की चाभी है :   आप वही दे सकते है जो आप के पास है। जैसे केवल धनवान ही दान कर सकता है वैसे ही शांति भी विश्व शांति का प्रयास भी केवल उसी  मनुष्य के द्वारा किया जा सकता है जो खुद अपने स्व से अपने अन्तः के   ईश्वर से जुड़ा हुआ है।  अंदर से शांत व्यक्ति ही इस  तरह  का स्पन्दन कर सकेगा  जो विश्व शांति में सहायक होगी। 

सफलता अंतः शांति का उपफल है :   शांति केवल द्वन्द या युद्ध की अनुपस्थित नहीं है। और न ही निष्क्रिय अथवा निरुद्मी हो जाने से शांति होती है। शान्ति  तो असीमित उत्साह से भरी आशावादी सकारात्मक सोच के कारण प्राप्त होती है और इसका उपफल लक्ष्य प्राप्ति की सफलता है। दिमाग जब विचारों से  शांत हो और समझ अपनी उच्च अवस्था में हो,भावनाएं  केवल उपस्थित हो और हमारा प्रीतकर  व्यहार जीवन को उत्सवकाल में बदल दे तब शांति प्राप्त मानना ठीक रहेगा। अंदर गहरी शांति और बाहर   निर्मल पवित्र गति के साथ आगे बढ़ कर लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास अतः एवं विश्व शांति के प्रयासों को सफल बना सकता है।

अंतः शान्ति बाहरी चीजों पर निर्भर न हो :  शांति हमारा स्वभाव है। बाहरी कारणों से यह केवल  छुप  गया है।  दिन में कुछ मिनट शांत मन से गहरी सांसो पर निगाह टिका कर  इस पर विचार करने से हम बाहरी कारणों को पहचान पाएंगे   और फिर इसे दूर करना भी संभव हो सकेगा।

दुनिया में सबकुछ परिवर्तन शील है :  अंतः  शांति प्राप्त  करने में जीवन के सिद्धांत  सहायक है। ध्यान लगा कर कुछ देर शांत रह जाना आपको पूरी आंतरिक शांति शायद न दे पाए। किन्तु अशांत मन की यह समझ की यह अशांति क्षड़भंगुर है और अंततः गहरी शांति ही हमारा स्वभाव है इसलिए थोड़ी देर में पुनः उसी शांति की स्थित को प्राप्त हो जाने का अभ्यास हो जाने से दीर्घ अंतः शांति प्राप्त करने में सहायक होगी।
ईश्वर हम सबको परम शांति की स्थित प्राप्त करने में सहायता करे और प्रतिदिन हम विश्व शांति की और एक एक कर अपना कदम बढ़ाने का कार्य आज नव वर्ष के पुनीत दिन से प्रारम्भ करे और दुनिया को रहने योग्य एक बेहतर स्थान बनाने सहयोग करे तो एक दिन इस लक्ष्य की प्राप्ति हो सकेगी।

नव वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो।

अजय सिंह  

















Sunday, December 24, 2017

उद्धव गीता



उद्धव बचपन से ही सारथी के रूप में श्रीकृष्ण की सेवा में रहे, किन्तु उन्होंने श्री कृष्ण से कभी न तो कोई इच्छा जताई और न ही कोई वरदान माँगा।

जब कृष्ण अपने अवतार काल को पूर्ण कर गौलोक जाने को तत्पर हुए, तब उन्होंने उद्धव को अपने पास बुलाया और कहा-

"प्रिय उद्धव मेरे इस 'अवतार काल' में अनेक लोगों ने मुझसे वरदान प्राप्त किए, किन्तु तुमने कभी कुछ नहीं माँगा! अब कुछ माँगो, मैं तुम्हें देना चाहता हूँ।तुम्हारा भला करके, मुझे भी संतुष्टि होगी।

उद्धव ने इसके बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगा। वे तो केवल उन शंकाओं का समाधान चाहते थे जो उनके मन में कृष्ण की शिक्षाओं, और उनके कृतित्व को, देखकर उठ रही थीं।

उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा-
"भगवन महाभारत के घटनाक्रम में अनेक बातें मैं नहीं समझ पाया!
आपके 'उपदेश' अलग रहे, जबकि 'व्यक्तिगत जीवन' कुछ अलग तरह का दिखता रहा! क्या आप मुझे इसका कारण समझाकर मेरी ज्ञान पिपासा को शांत करेंगे?"

श्री कृष्ण बोले-
“उद्धव मैंने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन से जो कुछ कहा, वह "भगवद्गीता" थी।
आज जो कुछ तुम जानना चाहते हो और उसका मैं जो तुम्हें उत्तर दूँगा, वह "उद्धव-गीता" के रूप में जानी जाएगी।
इसी कारण मैंने तुम्हें यह अवसर दिया है।
तुम बेझिझक पूछो।
उद्धव ने पूछना शुरू किया- 

"हे कृष्ण, सबसे पहले मुझे यह बताओ कि सच्चा मित्र कौन होता है?"

कृष्ण ने कहा- "सच्चा मित्र वह है जो जरूरत पड़ने पर मित्र की बिना माँगे, मदद करे।"

उद्धव- 
"कृष्ण, आप पांडवों के आत्मीय प्रिय मित्र थे। आजाद बांधव के रूप में उन्होंने सदा आप पर पूरा भरोसा किया।
कृष्ण, आप महान ज्ञानी हैं। आप भूत, वर्तमान व भविष्य के ज्ञाता हैं।

किन्तु आपने सच्चे मित्र की जो परिभाषा दी है, क्या आपको नहीं लगता कि आपने उस परिभाषा के अनुसार कार्य नहीं किया?

आपने धर्मराज युधिष्ठिर को द्यूत (जुआ) खेलने से रोका क्यों नहीं?
चलो ठीक है कि आपने उन्हें नहीं रोका, लेकिन आपने भाग्य को भी धर्मराज के पक्ष में भी नहीं मोड़ा!आप चाहते तो युधिष्ठिर जीत सकते थे!

आप कम से कम उन्हें धन, राज्य और यहाँ तक कि खुद को हारने के बाद तो रोक सकते थे!
उसके बाद जब उन्होंने अपने भाईयों को दाँव पर लगाना शुरू किया, तब तो आप सभाकक्ष में पहुँच सकते थे! आपने वह भी नहीं किया? उसके बाद जब दुर्योधन ने पांडवों को सदैव अच्छी किस्मत वाला बताते हुए द्रौपदी को दाँव पर लगाने को प्रेरित किया, और जीतने पर हारा हुआ सब कुछ वापस कर देने का लालच दिया, कम से कम तब तो आप हस्तक्षेप कर ही सकते थे!

   अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा आप पांसे धर्मराज के अनुकूल कर सकते थे!इसके स्थान पर आपने तब हस्तक्षेप किया, जब द्रौपदी लगभग अपना शील खो रही थी, तब आपने उसे वस्त्र देकर द्रौपदी के शील को बचाने का दावा किया!

 लेकिन आप यह यह दावा भी कैसे कर सकते हैं?
उसे एक आदमी घसीटकर हॉल में लाता है, और इतने सारे लोगों के सामने निर्वस्त्र करने के लिए छोड़ देता है!
एक महिला का शील क्या बचा? आपने क्या बचाया?
अगर आपने संकट के समय में अपनों की मदद नहीं की तो आपको आपाद-बांधव कैसे कहा जा सकता है?
बताईए, आपने संकट के समय में मदद नहीं की तो क्या फायदा?
क्या यही धर्म है?"

इन प्रश्नों को पूछते-पूछते उद्धव का गला रुँध गया और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।
ये अकेले उद्धव के प्रश्न नहीं हैं। महाभारत पढ़ते समय हर एक के मनोमस्तिष्क में ये सवाल उठते हैं!
उद्धव ने हम लोगों की ओर से ही श्रीकृष्ण से उक्त प्रश्न किए।

  भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए बोले-
"प्रिय उद्धव, यह सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही जीतता है।
उस समय दुर्योधन के पास विवेक था, धर्मराज के पास नहीं।
यही कारण रहा कि धर्मराज पराजित हुए।"

उद्धव को हैरान परेशान देखकर कृष्ण आगे बोले- "दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसाऔर धन तो बहुत था, लेकिन उसे पासों का खेल खेलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि का द्यूतक्रीड़ा के लिए उपयोग किया। यही विवेक है। धर्मराज भी इसी प्रकार सोच सकते थे और अपने चचेरे भाई से पेशकश कर सकते थे कि उनकी तरफ से मैं खेलूँगा।

जरा विचार करो कि अगर शकुनी और मैं खेलते तो कौन जीतता?
पाँसे के अंक उसके अनुसार आते या मेरे अनुसार?चलो इस बात को जाने दो। उन्होंने मुझे खेल में शामिल नहीं किया, इस बात के लिए उन्हें माफ़ किया जा सकता है। लेकिन उन्होंने विवेक-शून्यता से एक और बड़ी गलती की!

और वह यह-
उन्होंने मुझसे प्रार्थना की कि मैं तब तक सभा-कक्ष में न आऊँ, जब तक कि मुझे बुलाया न जाए!क्योंकि वे अपने दुर्भाग्य से खेल मुझसे छुपकर खेलना चाहते थे।
वे नहीं चाहते थे, मुझे मालूम पड़े कि वे जुआ खेल रहे हैं!
इस प्रकार उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना से बाँध दिया! मुझे सभा-कक्ष में आने की अनुमति नहीं थी!

इसके बाद भी मैं कक्ष के बाहर इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई मुझे बुलाता है! भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब मुझे भूल गए! बस अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे! 

अपने भाई के आदेश पर जब दुस्साशन द्रौपदी को बाल पकड़कर घसीटता हुआ सभा-कक्ष में लाया, द्रौपदी अपनी सामर्थ्य के अनुसार जूझती रही!तब भी उसने मुझे नहीं पुकारा!उसकी बुद्धि तब जागृत हुई, जब दुस्साशन ने उसे निर्वस्त्र करना प्रारंभ किया!

जब उसने स्वयं पर निर्भरता छोड़कर-
 'हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम'
की गुहार लगाई, तब मुझे उसके शील की रक्षा का अवसर मिला।
जैसे ही मुझे पुकारा गया, मैं अविलम्ब पहुँच गया।

अब इस स्थिति में मेरी गलती बताओ?"
उद्धव बोले
"कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई! 
क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"
कृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-
"इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?"

कृष्ण मुस्कुराए-
"उद्धव इस सृष्टि में हरेक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है।
न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ।
मैं केवल एक 'साक्षी' हूँ।मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ।

यही ईश्वर का धर्म है।"

"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण!
तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे? 
हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?
आप क्या चाहते हैं कि हम भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?"उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा!

तब कृष्ण बोले-
"उद्धव, तुम शब्दों के गहरे अर्थ को समझो।
जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक साक्षी के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम कुछ भी गलत या बुरा कर सकोगे?
तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे।

जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो! धर्मराज का अज्ञान यह था कि उसने माना कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है!अगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ तो क्या खेल का रूप कुछ और नहीं होता?"

 भक्ति से अभिभूत उद्धव मंत्रमुग्ध हो गये और बोले- 
प्रभु कितना गहरा दर्शन है। कितना महान सत्य। 'प्रार्थना' और 'पूजा-पाठ' से, ईश्वर को अपनी मदद के लिए बुलाना तो महज हमारी 'पर-भावना' है।  मग़र जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि 'ईश्वर' के बिना पत्ता भी नहीं हिलता! तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति महसूस होने लगती है। 

गड़बड़ तब होती है, जब हम इसे भूलकर दुनियादारी में डूब जाते हैं।
सम्पूर्ण श्रीमद् भागवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है।
सारथी का अर्थ है- मार्गदर्शक।
अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक थे।
वह स्वयं की सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था, लेकिन जैसे ही अर्जुन को परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का एहसास हुआ, वह ईश्वर की चेतना में विलय हो गया!
यह अनुभूति थी, शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदित सुप्रीम चेतना की!
तत-त्वम-असि!
अर्थात...
वह तुम ही हो।।

अजय सिंह "जे एस के" 

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी


1.  गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।

2. गौ माता में तैंतीस कोटी देवी देवताओं का वास है ।

3. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

4. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।

5. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।

6. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।

7. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।

8. गौ माता के मुत्र में गंगाजी का वास होता है ।

9. गौ माता के गोबर से बने उपलों का रोजाना घर दूकान मंदिर परिसरों पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

10. गौ माता के एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।

11. गाय इस धरती पर साक्षात देवता है ।

12. गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है । मनोकामना पूर्ण करने वाली है ।

13. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है।

14. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।

15. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है । उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है ।

16. गौ माता का दूध अमृत है।

17. गौ माता धर्म की धुरी है। गौ माता के बिना धर्म कि कल्पना नहीं की जा सकती ।

18. गौ माता जगत जननी है।

19. गौ माता पृथ्वी का रूप है।

20. गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है । गौ माता के बिना देवों वेदों की पूजा अधुरी है ।

21. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।

22. गौ माता से ही मनुष्यों के गौत्र की स्थापना हुई है ।

23. गौ माता चौदह रत्नों में एक रत्न है ।

24. गौ माता साक्षात् मां भवानी का रूप है ।

25. गौ माता के पंचगव्य के बिना पूजा पाठ हवन सफल नहीं होते हैं ।

26. गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।

27. गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है । उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती ।

28. तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है । वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौ लोकधाम में वास मिलता है ।

28. गौ माता के गोबर से ईंधन तैयार होता है ।

29. गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यों की आराध्य है; इष्ट देव है ।

30. साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है।

31. गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है ।

32. गौ माता में दिव्य शक्तियां होने से संसार का संतुलन बना रहता है ।

33. गाय माता के गौवंशो से भूमि को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है ।

34. गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है । गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है ।

35. जहां गौ माता निवास करती है वह स्थान तीर्थ धाम बन जाता है ।

36. गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तीर्थो के पुण्यों का लाभ मिलता है ।

37. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।

38. गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।

39. गाय माता आनंदपूर्वक सासें लेती है; छोडती है । वहां से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है ।

40. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे ।

41. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।

42. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।

43. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।

44. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है ।

45. गाय इस संसार का प्राण है ।

46. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है ।

47. गाय धार्मिक ; आर्थिक ; सांस्कृतिक व अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है ।

48. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है । हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं ।

49. कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा ।

50. जो व्यक्ति मोक्ष गौ लोक धाम चाहता हो उसे गौ व्रती बनना चाहिए ।

51. गौ माता सर्व सुखों की दातार है ।

हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं

अजय सिंह "जे एस के "