New Day New Hope
Every year New year celebrations are held to welcome coming year and seeoff the out going.It happens only once in a year beacuse Celebration of Joy is not an easy task ,it takes one full year to collect courage to enjoy when it is external ,it can be celebrated every day when it is internal and every moment when it is eternal. So on this auspicious day let us practice to make it internal and try hard to make it eternal.
Monday, June 8, 2020
Monday, June 1, 2020
कृतं मे दक्षिणे हस्ते
कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो मे सव्य आहितः।
गोजिद् भूयासमश्वजिद् धनञ्जयो हिरण्यगर्भ।।
- अथर्ववेद ७.५२.२८
करो सब श्रम से सच्चा प्यार
करो सब श्रम की जय-जयकार।
कर्म में रहते अनवरत निरत
क्रिया में दक्ष दाहिना हाथ।
विजय का वरण करे कर वाम
सदा सोल्लास गर्व के साथ। मिले यश धन-सम्पत्ति अपार।।
मिले गौ, अश्व, भूमि, धन-खान
स्वर्ण से रहे भरा भण्डार।
मिले श्रम से अर्जित सम्पत्ति
करे सोना श्रम का श्रृंगार।
बहें वैभव की अक्षय धार।।
मेरे दाएँ हाथ में कर्म, बाएँ हाथ में विजय है। इन दोनों द्वारा हम गौ, अश्व, धन, भूमि एवं स्वर्ण
आदि पाने में सफल हों।
- डा० देवी सहाय पाण्डेय
प्रकृति का न्याय है
मध्य युग में सम्पूर्ण यूरोप पर राज करने वाला
रोम (इटली) नष्ट होने के कगार पे आ गया।
मध्य पूर्व को अपने कदमो से पददलित करने वाला
ओस्मानिया साम्राज्य (ईरान, टर्की) अब घुटनो के बल हैं।
जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था,
उस ब्रिटिश साम्राज्य के उत्तराधिकारी बर्किंघम महल में कैद हैं,
जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे
उस रूस की सीमा बन्द है।
जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं, जो पूरी दुनिया का अघोषित चौधरी हैं,
उस अमेरिका में लॉक डाउन है।
और, जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे,
वो चीन आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियाँ खा रहा है।
एक छोटे से परजीवी ने विश्व को घुटनो पर ला दिया है।
न एटम बम काम आ रहे न तेल के कुँए,,..
मानव का सारा विकास एक छोटे से #विषाणु से सामना नहीं कर पा रहा।..
क्या हुआ ???... निकल गयी हेकड़ी ???
बस इतना ही कमाया था आपने इतने वर्षों में कि एक छोटे से जीव ने घरों में कैद कर दिया।।
विश्व के सब देश आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं हमारे देश भारत की तरफ,
उस भारत की ओर जिसका सदियों तक अपमान करते रहे, लूटते रहे।
एक मामूली से जीव ने आपको आपकी औकात बता दी।।
भारत जानता है कि#युद्ध अभी शुरू हुआ है जैसे जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी,
ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी, और आज़ाद होंगे लाखों वर्षो से बर्फ की चादर में कैद
दानवीय_विषाणु जि नका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तैयारी।...
ये कोरोना तो झाँकी है चेतावनी अभी है।...
उस आने वाली विपदा की, जिसे आपने जन्म दिया है।
क्या आप जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ???
तक्षशिला के खंडहरो में, नालंदा की राख में, शारदा पीठ के अवशेषों में, मार्तण्ड मन्दिर के पत्थरों में,,...
सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है।
ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है और सदैव चलता रहेगा।
इस से लड़ने के लिए के लिए हमने हथियार खोज भी लिया था।
मगर आपके अहंकार, आपके लालच, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ-धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया।
क्या चाहिए था आपको ??? स्वर्ण एवं रत्नो के भंडार ???
यूँ ही माँग लेते,...राजाबलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते।
सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्यहीन ही थे।
ले जाते – मगर आपने ये क्या किया ???
विश्व_बंधुत्व की बात करने वाले हिन्दू_समाज को नष्ट कर दिया।
जिस बर्बर का मन आया वही भारत चला आया।
हर जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने।
कोई विश्व_विजेता बनने के लिए तक्षशिला को तोड़ कर चला गया,
कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया,
कोई बख़्तियार ख़िलजी खुद को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा के पुस्तकालयों के ग्रंथों को जला गया,
किसी ने बर्बरता से शारदा पीठ को नष्ट कर दिया,
किसी ने अपने झंडे को ऊँचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया,,
और आज करुणा भरी निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित, पद दलित भारतभूमि की ओर – जिसने अभी अभी अपने घावों को भरके
2014 से अँगड़ाई लेना आरम्भ किया है।
हम फिर भी उन्हें निराश नहीं करेंगे,
फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घड़ी में छाँव देगा,
श्री राम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे।
किन्तु...???
किन्तु...???
मार्ग...???...
उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा।..
जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोड़ा था।
आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा।..
जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था।
आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा।..
जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया।
उन्ही मंदिरो में जाके शंखनाद करना होगा।...
जिनको कभी आपने तोड़ा था।
उन्ही वेदो को पढ़ना होगा।..
जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था।
उसी चन्दन ...तुलसी को मस्तक पर धारण करना होगा।..
जिसके लिए कभी हमारे मस्तक धड़ से अलग किये गए थे।
....ये प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकारना ही होगा।।
साभार
सत्कर्म और अहंकार
एक बार श्री कृष्ण अर्जुन से पूछा दान तो मैं भी बहुत करता हूं परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं। यह प्रश्न सुन श्रीकृष्ण मुस्कुराए उन्होंने पास ही में स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया इसके बाद वह अर्जुन से बोले हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम गांव वालों को बांट दो अर्जुन ने सभी गांव वालों को बुलाया और सोना बांटना शुरू कर दिया। अर्जुन पहाड़ी में से सोना तोड़ते गए और गांव वालों को देते गए। लगातार सोना बाटते रहने से अर्जुन में अहंकार आ चुका था इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक भी चुके थे उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि अब मुझसे यह काम और ना हो सकेगा।
अब श्री कृष्ण ने कर्ण को बुला लिया उन्होंने कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांवों में बाट दो। कर्ण ने गांव वालों को बुलाया और उनसे कहा यह सोना आप लोगों का है जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाए। यह देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से जानना चाहा ऐसा करने का विचार उनके मन में क्यों नहीं आया इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हें सोने से मोह हो गया था और तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गांव वाले की कितनी जरूरत है गांव वालों की कितनी जरूरत है उतना ही सुना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हें दे रहे थे तो तुझमे दाता होने का भाव आ गया था दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय-जयकार करें या प्रशंसा करें दान देने के बदले में धन्यवाद की उम्मीद करना ही सौदा कहलाता है। बिना किसी उम्मीद या आशा के दान करना चाहिए ताकि यह हमारा सत्कर्म हो ना कि हमारा अहंकार।
सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो
वैसे तो मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसका जिसके पास मन और बुद्धि दोनों है। बाकी प्राणियों के पास बुद्धि तो हो सकती है पर मन नहीं अब इस मन की जो कारस्तानी हैं वह कितनी गजब है इसको समझना बड़ा मुश्किल काम है। वास्तव में दुनिया में बहुत सारी कल्पनाओं पर काम हुआ है एक से बढ़कर एक साइंस फिक्शन लिखे गए हैं एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखे गए इनकी कल्पनाओं को आप देखें आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि वास्तव में आदमी का दिमाग कहां तक पहुंच सकता है। लेकिन शायद किसी के दिमाग में आज तक यह नहीं आया कि अगर पूरी दुनिया में 40 50 दिन या इससे भी ज्यादा एक जगह से दूसरी जगह जाना आना संभव ना हो लोगों से मिलना जुलना संभव ना हो यहां तक कि लोग आपको बुला रहे हैं और आप उनके पास जाने से कतरा रहे हैं इस स्थिति का शायद भान दुनिया में किसी भी लेखक को नहीं था करोना के आने के बाद अभी जो वास्तविक स्थिति है दुनिया में वह तो यही है आप अपने घर में बैठे हुए हैं काम कर रहे हैं आनंद ले रहे हैं लेकिन कहीं आ जा नहीं सकते। आपको लोग बुला रहे हैं लेकिन मिलने से कतरा रहे हैं और ऐसा आपको करोना के डर से करना पड़ रहा है ऐसी ही कुछ परिस्थितियों का वर्णन कर रहा हूं।
आदमी को पहली बार समझ में आ रहा है कि आपके पास पैसे तो हो सकते हैं लेकिन दुकानें नहीं खुली है इसलिए आप शाम को सामान खरीदने की अनुमति नहीं है आपके पास वह सब सुविधाएं हैं मसलन कार है चला नहीं सकते ऑफिस है जा नहीं सकते नौकर हैं फिर भी घर का सारा काम आपको करना पड़ रहा है ऐसी स्थिति शायद कल्पना के बाहर थी इसीलिए किसी उपन्यासकार ने अपनी किसी कहानी में इस तरह की फंटेसी का वर्णन नहीं किया है।
करोना के सबक
सबसे पहले इस सच को समझिए कि पूरी दुनिया भले हथियारों की होड़ में लगी रही सैन्य बल को सब बढ़ाते रहें पर असल में अब युद्ध जीतने के लिए ना तो हथियार की जरूरत है ना सैन्य बल की अगर करो ना वायरस का सच कभी खुला और पता चला कि यह एक ऐसा युद्ध था जिसे बिना किसी गोला-बारूद और तोपों की धमक के ही कोई जीत गया तो आप हैरान मत होना।
दूसरा सच समझ में आ गया कि जिस यूरोप की ओर हम नजरें झुका कर देखते थे कि वह हमसे अधिक ज्ञानी हैं वह असल में उतना ज्ञानी नहीं था इस बीमारी ने यह भी साफ कर दिया है कि अमीर लोग भले गरीब लोगों के सामने शक्तिशाली होने का भ्रम पैदा करते हैं पर असल में उनमें रोग से लड़ने की शक्ति गरीब से कम ही होती है। यह तीसरा संदेश है दुनिया के संदर्भ में लिखने वाले ने यह भी लिखा है कि अब तक किसी फुटबॉल खिलाड़ी क्रिकेट खिलाड़ी और टेनिस खिलाड़ी को हम बहुत बड़ा मानते रहे हैं पर इस बीमारी में यह साफ हो गया है कि पूरी दुनिया में एक डॉक्टर की अहमियत किसी भी सेलिब्रिटी खिलाड़ी से ज्यादा है इतना ही नहीं समय ने यह भी साबित किया है कि कोई पंडित पुजारी जोशी पादरी या मौलवी एक भी मरीज को ठीक नहीं कर सकता आदमी की बीमारी सिर्फ डॉक्टर ही ठीक कर सकता है।
मतलब एक अदृश्य बीमारी ने बहुतों की कलई खोल दी है इतना ही नहीं करोना वायरस में एक साथ खुलकर सामने आ गया है कुदरत खुद को बहुत जल्दी ठीक कर लेती है आदमी बेवजह इस झूठ को जीता है कि वह प्रकृति को ठीक करेगा बड़ा खुलासा इस बीमारी में यह हुआ है कि फिल्मी सितारे सिर्फ कागजी हीरो होते हैं असली हीरो नहीं। हम बेवजह ही उन्हें इतना भाव देते रहे हमें यह भी समझ लेने की जरूरत है कि कुदरत ने हमें जो खाने के लिए दिया है हमें वही खाना चाहिए। खाने पर ज्यादा प्रयोग की जरूरत इसलिए नहीं क्योंकि इस पर सारे प्रयोग हो चुके हैं हमारी दादी नानी ने जो हमें बताया है वही सही है इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि अधिकतर लोग बिना जंक फूड के आराम से रह सकते है।
ज्ञान तो कई प्राप्त हुए लेकिन एक ज्ञान जो बहुत अहम है वह यह कि जिंदगी को जीने के लिए बहुत सारे पैसों की जरूरत नहीं होती इस बात के कई मायने हो सकते हैं आपको अपने हिसाब से इसको समझना होगा पर अभी तो इतना ही कहना काफी होगा कि करो ना वायरस ने आदमी को जीवन का अनमोल पाठ पढ़ाया है ऐसा पाठ पढ़ाने के लिए प्रकृति १००-२०० साल में एक बार आती है। धन्य है संसार में मौजूद बेशक 7000000000 लोग जिन्हें अभी पाठ पढ़ने का मौका मिला है तो मेरे प्यारे मित्रों आप भी इतना तो मान ही लीजिए कि जिंदगी जीने के लिए है जीने की तैयारी में खर्च कर देने के लिए नहीं। एक पाठ और याद रखने योग्य है कि जीवनसत्व क्षणभंगुर है इसे संभाल कर जीना चाहिए फिलहाल के लिए सबक है अपने खर्चों पर नियंत्रण रखिए ज्यादा के फेर में मत पढ़िए और रिश्तो को अहमियत दीजिए जीवन का मूल संदेश यही है मंजिल पर जाकर याद आता है आदमी मुसाफिर है आता है जाता है आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है।
श्री रामचरित मानस और कोरोना वायरस
*जिस भी मानस मर्मज्ञ ने यह अन्वेषण किया है वह धन्य है*
श्री रामचरित मानस और कोरोना वायरस
"राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥3॥"
इन दिनों COVID-19 की रोकथाम के विषय में मैंने काफी पढ़ा , कई वाइरोलोजी की पुस्तकों से और अन्य माध्यमो और अनुसंधानों से यह पता चला की यह महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है| यह ही पता चला कि इस वाइरस की रोकथाम तीन चीज़ों से की जा सकती है -
१. UV-C radiation
2. Soap water sanitization
3. heat near boiling point
आज फैली इस महामारी के विषय में पढ़ते हुए दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण भी देखता रहा , बाद में अचानक ऐसी प्रेरणा हुई रामचरित मानस पढ़ी जाए , संयोगवश कहें या इश्वर अहैतुकी कृपा , जब रामचरित मानस को खोला तो उत्तरकाण्ड का दोहा १२० वाला पृष्ठ खुला पढना शुरू किया तो आश्चर्य चकित था।
गोस्वामी तुलसीदास जी इस महामारी के मूल स्रोत चमगादड के विषय में उत्तरकाण्ड दोहा १२० (14) में वर्षो पहले की बता गये थे जिससे सभी लोग आज दुखी है :-
"सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा॥14॥"
इस महामारी के लक्षणों के बारे में वे आगे लिखते हैं जिसमे उन्होंने ये बता ही दिया है की इसमें कफ़ और खांसी बढ़ जायेगी और फेफड़ो में एक जाल या आवरण उत्पन्न होगा या कहें lungs congestion जैसे लक्षण उत्पन्न हो जायेंगे , देखिये -
"मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।15||
गोस्वामी जी इसके आगे ये भी बताते हैं की इनसब के मिलने से "सन्निपात " या टाइफाइड फीवर होगा जिससे लोग बहुत दुःख पायेंगे -
प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।।
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना।।16||
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।19||
आज शायद यही कारण है की "Hydroxychloroquine" जो की मलेरिया की दवा है इसका प्रयोग सभी लोग करने लग गए हैं ...
और इसके आगे लिखते हैं :
"एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥121क॥"
जब ऐसी एक बीमारी की वजह से लोग मरने लगेंगे , ऐसी अनेको बिमारियां आने को हैं ऐसे में आपको कैसे शान्ति मिल पाएगी ???
"नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान।
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान॥121 ख॥"
नियम, धर्म, आचार (उत्तम आचरण), तप, ज्ञान, यज्ञ, जप, दान तथा और भी करोड़ों औषधियाँ हैं, परंतु इन सब से ये रोग जाने वाले नहीं है...
.
इन सब के परिणाम स्वरुप क्या होगा गोस्वामी जी लिखते हैं :-
एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥
मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥1॥
इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जीव जीव रोग ग्रस्त हो जायेंगे , जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति और अपनों के वियोग के कारण और दुखी होते जायेंगे । गोस्वामी जी किहते हैं की मैंने ये थो़ड़े से मानस रोग कहे हैं। ये हैं तो सबको, परंतु इन्हें जान पाए हैं कोई विरले ही॥1॥यानि सबी में थोडा बहुत तो सभी में होगा पर बहुत कम लोगों को ही ठीक से detect भी हो पायेगा ...
आज हम देख की रहे हैं की इस जगत की बड़ी बड़ी हस्तियाँ भी इस रोग से ग्रसित होती जा रही है , इसमें आम लोगों की बात ही क्या की जाए ..इस विषय के बारे में भी गोस्वामी जी ने पहले से लिख दिया था -
जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।
बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे। मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।।
प्राणियों को जलाने वाले ये पापी (रोग) जान लिए जाने से कुछ क्षीण अवश्य हो जाते हैं, परंतु नाश को नहीं प्राप्त होते। विषय रूप कुपथ्य पाकर ये मुनियों के हृदय में भी अंकुरित हो उठते हैं, तब बेचारे साधारण मनुष्य तो क्या चीज हैं॥2॥
यानी रोग पहचान लिए जाने पर या रोग के लक्षणों द्वारा रोग की पुष्टि हो जाने पर उन लक्षणों का इलाज किये जाते है।
हम यदि देखे तो चाइना में जो लोग ठीक हो कर घर चले गये उनमे भी कुछ दिनों बाद पुनः इस रोग के होने की पुष्टि हुई वो भी कईयों को तो बिना लक्षणों के ....
अब सभी ये जानना चाहेंगे की इससे महामारी से हमे मुक्ति कैसे मिलेगी -- तो इस विषय पर गोस्वामी जी लिखते हैं -
"राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥3॥"
रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥4॥
यदि श्रीराम जी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो॥3॥
श्री रघुनाथजी की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते॥4॥
"जय श्री राम "
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