सिकन्दर महान विश्व
जीतने के अभियान में बेबिलोनिया से अफगानिस्तान होता हुआ पंजाब पहुंचा तो
उसकी सेनाओं ने वहाँ के राजा पुरू को युद्ध में हरा कर बंदी बना लिया और
उसको सिकंदर के सामने पेश किया गया। सिकन्दर ने राजा पुरु से कहा
कि तुम्हारी सेना युद्ध में हार गयी है और तुम अब युद्ध बंदी हो तुम्हारे
साथ कैसा व्यहार किया जाये। राजा पुरु का उत्तर था जैसा एक राजा दूसरे
राजा के साथ करता है।यानी युद्ध में हारने के बावजूद राजा पुरु के मन ने
हार को अस्वीकार किया तो सिकन्दर ने भी प्रसन्न होकर राजा पुरु को न
केवल उसका साम्राज्य वापस कर उसको पुन:राजा बनाया बल्कि अपने वफादार
सेनापती सेलुकुस निक्टर को अपनी मित्रता का तोहफा देकर वापस अपने देश
चला गया। ऐसा चमत्कारी है मन का प्रभाव।
आमतौर पर लोग अपनी आधी लड़ाई बिना लड़े ही सिर्फ इसलिये हार जाते है
क्योंकि वह परिस्थितयों से घबरा कर हार को स्वीकार कर लेते है। इतिहास
ऐसे अनगिनत उदहारणो से भरा पड़ा है जहाँ अत्यन्त कठिन और विपरीत
परिस्थितियों के होते हुए लोगों ने परिस्थितियों से मुकाबला कर विजय श्री
को प्राप्त किया है।मौर्य वंश के संस्थापक के नाते आज आचार्य चाणक्य की जो
ख्यति है वह उनकी विपरीत परिस्थितियो में अपनी कुशल नीतियों द्वारा 20
साल से राज्य कर रहे नन्द वंश की समाप्ति और अनेक छोटे राज्यों को जीत कर
चन्द्रगुप्त को राजा बनाने के कारण ही है।
मन को जीत का विश्वास दिला पाने के कारण ही श्री हनुमान साधारण वानर
होते हुये भी दुर्गम एवं असंभव दिखने वाले कार्यो को कुशलता पूर्वक
सम्पन्न कर भगवान श्री राम की सेना को विजय दिला कर लक्ष्य को प्राप्त
किया और अपनी ऐसी प्रतिष्ठा स्थापित कर पाये जो उनसे ज्यादा योग्य लोगोँ
को नहीं मिल पायी। क्या आपको याद है उस चीटी की कहानी जिसमे वह दीवार पर
बार -बार चढ़ने की कोशिश करती है और अनेक बार गिरने के बावजूद अपनी हार मान
कर लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास नहीं छोड़ती है और अन्तत: उस मन्जिल को
प्राप्त करती है जिसकी उसको तलाश थी।
" हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम" के मूल मंत्र में जीवन की सफलता का रहस्य
छुपा हुआ है।कठिन से कठिन परिस्थितियो में भी हिम्मत न हारने वाला मनुष्य
जीवन में ऊंचाई को प्राप्त कर ही लेता है।परमेश्वर ने जितनी सम्भावनाये
आगे बढ़ने की मनुष्य मात्र को दे रखी है शायद किसी और जीव को नहीं।परन्तु आज का
मानव कही न कही अपनी वरिष्ठता विशिष्टता एवं क्षमता को पहचानने में नाकाम
दिखता दिख रहा है।आत्मविकास की बात तो करना दूर की बात है,थोड़ी बहुत बाधाओ
से ही मनुष्य घबड़ाने लगता है .वह अपने अन्दर छिपी शक्ति को पहचान नहीं पा
पाता है संघर्ष करने से घबड़ाता है परन्तु यह समझना आवश्यक है की जब हिम्मत
साथ होगी,तभी परिणाम की सिध्धि होगी।
आपको शायद पता हो कि मनुष्य के भाग्य को अच्छा बनाने में मन का
कितना योगदान है? वास्तव में मन में आने वाले विचार ही आपके शब्द
,फिर शब्द ही क्रिया बनते है।नियमित की जाने वाली क्रियाएँ आदत बन जाती है
और आपकी आदते आपका चरित्र निर्माण करती है। और अंतमे आपका चरित्र
ही आपका भाग्य बन जाता है। जब आप नकारात्मक सोंच के कारण अपनी क्षमताओ को
कम करके आंकते है तो आप अपने व्यक्तित्व में वैसी ही योग्यताए विकसित
करते हैं और उसी तरह की सोंच के लोगों से घिर जातें है। अत: अपने दोस्तों
का चुनाव सावधानी से करे तथा ऐसी आदतें बनाये जिससे आपके व्यक्तित्व निर्माण हो और जो
लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हों। मन ऐसा जो निर्मल एवं आज्ञाकारी हो और विपरीत
परिस्थितयो में भी विजय प्राप्त करने का विश्वास करे तो आपकी जीत सुनिश्चित
है।
अजय सिंह
No comments:
Post a Comment