Monday, February 18, 2013

स्व- संवाद करे कमाल दिलाये सफलता कराए मालामाल

राघव एक टीम  लीडर की हैसीयत से जिस ग्रुप  के साथ काम कर रहे थे उसमे  दस लोग  थे, उनसे  जब यह पूछा गया की आप के साथ कितने हाथ काम कर रहे है तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया  बीस। कैसे? दस लोग हों  तो उनके बीस हाथ  हमारे साथ काम कर रहे है।सभी ने कहा। बीस क्यों बाईस क्यों नहीं? उन सबके दो-दो हाथ मिलकर बीस हुए पर आपके दो हाथ कहाँ गए जो आपके साथ काम कर रहे है । बस इसी तरह हम लोग दूसरो  के साथ हुए संवाद सुनते  देखते और उसे अपनी गड़ना में रखते है  और उस पर प्रतिक्रिया करते है। परन्तु अपने साथ होने वाले  सम्वाद अर्थात स्व संवाद कैसा हो रहा है इसपर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझते है। वास्तव में  हम दूसरे लोगो के साथ कभी भी एक तिहाई समय से ज्यादा संवाद नहीं करते और  हमारा दो तिहाई से ज्यादा  संवाद अपने साथ ही होता है।


आप अपनी डायरी में वे सारे  स्व - संवाद लिख ले जिससे आप के विचारो को दिशा  मिले, जिससे आप के जीवन में समय, प्रेम, सेहत और संतुष्टि बढे।इन स्व-संवादो को समय मिलने पर पढ़े और दोहराए।यह आपके  उत्तम जीवन की शुरुवात है।

इन्सान को चाहिए की वह सदा सहज बुद्धि  का इस्तेमाल करे। परिणाम न मिलने पर अपने साथ स्व- संवाद करे  "इस काम का परिणाम न मिलने के तीन  मुख्य कारण  क्या है ?उनको अपनी कापी में लिख लें।फिर इस पर विचार करे की  अगली बार मुझे अलग  क्या करना है,जिससे अच्छा परिणाम आये? इस बार कि  गलतियों से मैंने क्या सीखा है?"  इसे भी  लिख लेना चाहिए। इस तरह स्व-संवाद को लिख लेने से काम में सुधार की सम्भावना बढ़ेगी  और किये हुए कर्म का उचित फल मिलेगा।

स्व-संवाद के  द्वारा बार-बार आप अपने लक्ष्य को दोहराये और  महसूस करे कि वह आप को प्राप्त हो रहा है।आप अपनी क्षमताओं के कारण अपने  लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे ऐसा अपने को विश्वास दिलायें तो अवचेतन  मन आपकी सुप्त क्षमताओं को दृढ़ कर के लक्ष्य प्राप्ति में सहायता करेगा।
 

प्रसिद्ध लेखक नेपोलियन हिल  अपनी पुस्तक "थिंक एंड ग्रो रिच" में  अवचेतन मन के बारे में कहते है कि इसकी क्षमताएँ उतनी ही होती है जितनी आप मान लेते है और अवचेतन मन में किसी विचार को डालने के लिये स्वसंवाद के अतिरिक्त कोई दूसरा प्रभावी साधन नहीं है। आप अपनी पांचो ज्ञान्नेद्रियो के द्वारा जो कुछ भी महसूस करते है उसे केवल चेतन मन तक पहुँचाया जा सकता है वहाँ से अवचेतन मन की स्वीकृत मिलने पर ही यह अवचेतन मन तक पहुँच सकता है।वास्तव में चेतन मन अवचेतन मन के लिए बाह्य निष्पादक का काम करता है। अवचेतन मन एक ऐसे उपजाऊ  बगीचे की तरह है जहाँ तरह तरह की पौध उगती रहती है यदि वहाँ सावधानी पूर्वक मनचाही पौध अर्थात सु-विचार न  लगाये जाये तो अनुपयोगी विचार वहां पर आ जायेंगे और आपको प्रेरित करेंगे। अतः  अवचेतन मन को स्व-संवाद के द्वारा आपको जो विचार चाहिए भेजने पड़ेंगे।

अमीर  बनने के लिए भी कम से कम दिन में दो बार आपको अपनी   इच्छा को लिख कर जोर-जोर से अकेले में पढना है फिर इस कल्पना के साथ धन आपको  प्राप्त हो रहा है ऐसा  महसूस करना है। इस तरह जब  आप अपनी  इच्छा को अपने अवचेतन मन को  विश्वास  के साथ बताते है तो  आपकी आदते वैसी ही बनती जाती है जैसी आपको निर्धारित  लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बनाने की जरुरत है।

स्व-संवाद का पूरा लाभ उठाने के लिए कुछ सावधानियाँ  आवश्यक है।प्रथम हमारा मन नकारात्मक शब्दों को पंजीकृत नहीं करता अतः इनका प्रयोग ना करे उदहारण के लिए "मुझे हाथी पसंद नहीं है" जब आप इस लाइन को बार बार दोहराते है तो आप के मन के भाव हाथी का चित्रण करते है इसलिये  आप पसंद न होने के बावजूद हाथी को भूल नहीं सकेंगे और अवचेतन मन में उसकी उपस्थिति दर्ज रहेगी। दूसरा सारे स्व-संवाद वर्तमान काल के होने चाहिए। जैसे मैं अमीर बनना चाहता हूँ या मैं भविष्य  मैं अमीर बनूँगा से "मै अमीर हूँ" या  "मैं दिनों दिन अमीर बनता जा रहा हूँ" बेहतर स्व-संवाद है।इस तरह के संवाद  को प्रभावी बनाने के लिए  स्व-संवाद के साथ आपकी भावनाओं का जुड़ना आवश्यक है।स्व-संवाद आपकी योग्यताओं के अनुसार वास्तविक होने चाहिये। तीसरी ध्यान रखने वाली बात यह है की इसे बार-बार मन मे या जोर -जोर से दोहराना आवश्यक है। साथ ही जो बात आप दोहरा रहे है उसका विश्लेषण करके उस विचार को खंडित करने वाले विचारों को मन मैं जगह न दे। यदि सावधानियो के साथ आप इसका नियमित अभ्यास करें तो सफलता निश्चित ही आपको मिलने वाली  है।

अजय सिंह "एकल"



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