दोस्तों,
जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन मरना है. यही प्रकृति की व्यवस्था है,किन्तु कुछ के जाने के बाद बचती है राख और कुछ के जाने के बाद बचते है आँसू आखिर क्या फर्क है दोनों के जीवन जीने में ? लोग सोच सकते है की कोई आदमी भाग्यशाली है शायद इसलिए इसके ऊपर ईश्वर की कृपा हो रही है परन्तु सत्य यह है की आपको कृपा और दुःख दोनों ही कमाने पड़ते है अर्थात जो आपको मिल रहा है वह आपके कामो का ही फल है
जैसे मशीन में अच्छे कलपुर्जो के बावजूद बिना लुब्रिकेशन के मशीन का चलना संभव नहीं है इसी तरह तेज दिमाग और स्वस्थ शरीर बिना कृपा के ज्यादा कुछ प्राप्त नहीं कर सकता है. अब प्रश्न यह है की कृपा आखिर है क्या तो इसे मोटे रूप में ऊर्जा की तरह ही समझना ठीक रहेगा जैसे हवा या सूर्य की रौशनी अपना काम करती है उसी तरह कृपा भी अपना काम कर रही है. जैसे ग्रेवटी लगातार निचे खिचती है उसी तरह ग्रेस ऊपर की ओर उठाने में लगी हुई ऊर्जा है.
ग्रेवटी आपको आपकी सीमाओं में बाँधती है ग्रह नछत्र ,आपके परिवार वाले और दूसरे लोग,शरीर, आपका मन इत्यादि आपकी सीमाये तय करते है लेकिन कृपा अको इन बंधनो से बाहर निकलती हैं यदि आप भौतिक सीमाओं से परे सोंच पा रहे है तो आपको कृपा प्राप्त हैं. जब आप अपने जीवन में कुछ ऐसा घटित होते हुये देखते है जिसकी अपने कल्पना भी नहीं की थी उस छड़ आप कुछ देर के लिए कृपा के साथ होते है और उसे महसूस भी करते है. दुनिया की सारी प्रार्थना और आसन क्रिया इत्यादि आपको भौतिक चीजो से दूर ले जाने के लिए और कृपा के पास आने के लिए ही है को चुनौती देना
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