श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम् ।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ।।१।।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ।।१।।
श्रवण करने से धर्मं का ज्ञान होता है, द्वेष दूर होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया की आसक्ति से मुक्ति होती है.
पक्षिणां काकचाण्डालः पशूनां चैव कुक्कुरः ।
मुनीनां पापी चाण्डालः सर्वचाण्डालनिन्दकः ।।२।।
मुनीनां पापी चाण्डालः सर्वचाण्डालनिन्दकः ।।२।।
पक्षीयों में कौवा नीच है. पशुओ में कुत्ता नीच है. जो
तपस्वी पाप करता है वो घिनौना है. लेकिन जो दूसरो की निंदा करता है वह सबसे
बड़ा चांडाल है.
भस्मना शुध्यते कांस्यं ताम्रमम्लेन शुध्यति ।
रजसा शुध्यते नारि नदी वेगेन शुध्यति ।।३।।
रजसा शुध्यते नारि नदी वेगेन शुध्यति ।।३।।
राख से घिसने पर पीतल चमकता है . ताम्बा इमली से साफ़ होता है. औरते प्रदर से शुद्ध होती है. नदी बहती रहे तो साफ़ रहती है.
भ्रमन्संपूज्यते राजा भ्रमन्संपूज्यते द्विजः ।
भ्रमन्संपूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनश्यति ।।४।।
राजा, ब्राह्मण और तपस्वी योगी जब दुसरे देश जाते है, तो आदर पाते है. लेकिन औरत यदि भटक जाती है तो बर्बाद हो जाती है.भ्रमन्संपूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनश्यति ।।४।।
यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यर्थास्तस्य बांधवाः ।
यस्याथाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः सच पण्डितः ।।५।।
यस्याथाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः सच पण्डितः ।।५।।
धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते है. उसके कई सम्बन्धी भी
होते है. धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कह कर
नवाजा जाता है.
तादृशी जायते बुध्दिर्व्यवसायोऽपि तादृशः ।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ।।६।।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ।।६।।
सर्व शक्तिमान के इच्छा से ही बुद्धि काम करती है, वही कर्मो
को नियंत्रीत करता है. उसी की इच्छा से आस पास में मदद करने वाले आ जाते
है.
कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः ।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ।।७।।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ।।७।।
काल सभी जीवो को निपुणता प्रदान करता है. वही सभी जीवो का
संहार भी करता है. वह जागता रहता है जब सब सो जाते है. काल को कोई जीत नहीं
सकता.
नैव पश्यति जन्माधः कामान्धो नैव पश्यति ।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति ।।८।।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति ।।८।।
जो जन्म से अंध है वो देख नहीं सकते. उसी तरह जो वासना के
अधीन है वो भी देख नहीं सकते. अहंकारी व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं लगता की वह
कुछ बुरा कर रहा है. और जो पैसे के पीछे पड़े है उनको उनके कर्मो में कोई
पाप दिखाई नहीं देता.
स्वयं कर्म करोत्यत्मा स्वयं तत्फलमश्नुते ।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते ।।९।।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते ।।९।।
जीवात्मा अपने कर्म के मार्ग से जाता है. और जो भी भले बुरे
परिणाम कर्मो के आते है उन्हंं भोगता है. अपने ही कर्मो से वह संसार में
बंधता है और अपने ही कर्मो से बन्धनों से छूटता है.
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः ।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा ।।१०।।
राजा को उसके नागरिको के पाप लगते है. राजा के यहाँ काम करने
वाले पुजारी को राजा के पाप लगते है. पति को पत्नी के पाप लगते है. गुरु को
उसके शिष्यों के पाप लगते है.
ऋणकर्ता पिता शत्रुमाता च व्यभिचारिणी ।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ।।११।।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ।।११।।
अपने ही घर में व्यक्ति के ये शत्रु हो सकते है...
उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है.उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है.
सुन्दर पत्नी वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की.
उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है.उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है.
सुन्दर पत्नी वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की.
लुब्धमर्थेन गृहिणीयात् स्तब्धमञ्जलिकर्मणा ।
मूर्खं छन्दानुवृत्या च यथार्थत्वेन पण्डितम् ।।१२।।
मूर्खं छन्दानुवृत्या च यथार्थत्वेन पण्डितम् ।।१२।।
एक लालची आदमी को भेट वास्तु दे कर संतुष्ट करे. एक कठोर
आदमी को हाथ जोड़कर संतुष्ट करे. एक मुर्ख को सम्मान देकर संतुष्ट करे. एक
विद्वान् आदमी को सच बोलकर संतुष्ट करे.
वरं न राज्यं न कुराजराज्यं
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो
वरं न दारा न कुदारदाराः ।।१३।।
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो
वरं न दारा न कुदारदाराः ।।१३।।
एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.
कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं
कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिर्वृतिः ।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः
कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः ।।१४।।
कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिर्वृतिः ।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः
कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः ।।१४।।
एक बेकार राज्य में लोग सुखी कैसे हो? एक पापी से किसी शान्ति
की प्राप्ति कैसे हो? एक बुरी पत्नी के साथ घर में कौनसा सुख प्राप्त हो
सकता है. एक नालायक शिष्य को शिक्षा देकर कैसे कीर्ति प्राप्त हो?
सिंहादेकं वकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् ।
वायसात्पञ्च शिक्षेच्चष्ट् शुनस्त्रीणिगर्दभात् ।।१५।।
वायसात्पञ्च शिक्षेच्चष्ट् शुनस्त्रीणिगर्दभात् ।।१५।।
शेर से एक बात सीखे. बगुले से एक. मुर्गे से चार. कौवे से पाच. कुत्ते से छह. और गधे से तीन.
प्रभूतं कार्यमपि वा तन्नरः कर्तुमिच्छति ।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते ।।१६।।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते ।।१६।।
शेर से यह बढ़िया बात सीखे की आप जो भी करना चाहते हो एकदिली से और जबरदस्त प्रयास से करे
इन्द्रियाणि च संयम्य वकवत् पण्डितो नरः ।
देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।।१७।।
देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।।१७।।
. बुद्धिमान व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में
करते हुए अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण
करे.
प्रत्युत्थानञ्च युध्द्ञ्च संविभागञ्च बन्धुषु ।
स्वयमाक्रम्यभुक्तञ्चशिक्षेच् चत्वारिकुक्कुटात् ।।१८।।
स्वयमाक्रम्यभुक्तञ्चशिक्षेच्
. मुर्गे से हे चार बाते सीखे...
१. सही समय पर उठे. २. नीडर बने और लढ़े. ३. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. ४. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे.
१. सही समय पर उठे. २. नीडर बने और लढ़े. ३. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. ४. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे.
गूढमैथुनचारित्वं काले काले च संग्रहम् ।
अप्रमत्तमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात् ।।१९।।
अप्रमत्तमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात् ।।१९।।
. कौवे से ये पाच बाते सीखे... १. अपनी पत्नी के साथ एकांत
में प्रणय करे. २. नीडरता ३. उपयोगी वस्तुओ का संचय करे. ४. सभी ओर दृष्टी
घुमाये. ५. दुसरो पर आसानी से विश्वास ना करे.
बह्वाशी स्वल्पसन्तुष्टः सनिद्रो लघुचेतनः ।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेतो श्वानतोगुणाः ।।२०।।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेतो श्वानतोगुणाः ।।२०।।
. कुत्ते से ये बाते सीखे १. बहुत भूख हो पर खाने को कुछ ना
मिले या कम मिले तो भी संतोष करे. २. गाढ़ी नींद में हो तो भी क्षण में उठ
जाए. ३. अपने स्वामी के प्रति बेहिचक इमानदारी रखे ४.
सुश्रान्तोऽपि वहेत भारं शीतोष्णं न च पश्यति ।
सन्तुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।।२१।।
सन्तुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।।२१।।
गधे से ये तीन बाते सीखे. १. अपना बोझा ढोना ना छोड़े. २. सर्दी गर्मी की चिंता ना करे. ३. सदा संतुष्ट
एतान् विंशतिगुणानाचरिष्यति मानवः ।
कार्यावस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ।।२२।।
कार्यावस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ।।२२।।
जो व्यक्ति इन गुणों पर अमल करेगा वह जो भी करेगा सफल होगा.
अजय सिंह
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