अरे बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो गए पता ही नहीं चला।अभी कल तक तो गोद में खेलते थे आज पढाई पूरी करके नौकरी करने लायक हो गए है। इस तरह की बातचीत अपने अक्सर बड़े और बुजुर्गो के बीच सुनी होगी।अवस्था बदल रही है। कल जो बच्चा था आज नौजवान है।कल का नौजवान आज बूढ़ा हो
चला है। बस दुनिया का नियम
यही है और यही है जीवन का सार।कल जो सूरज उगा था वह आज नहीं है क्योकीं समय बदल गया है, कल कोई और तारीख
थी आज कोई और तारीख है।कल जो आप या हम थे हम भी वह नहीं है।यह सच है कि समय पंख लगा कर उड़ता जा रहा है। और हर रोज हर क्षण दुनिया में चीजे बदल रही है। वास्तव में हमारी आपकी जिन्दगी की यात्रा बदलाव की कहानी है। परिवर्तन के इस
नियम को स्वीकार कर अपने जीवन की योजना बनाना सफलता की और बढाया गया आपका
एक कदम है। आइये देखे परिवर्तन हमारे जीवन में कैसे आशा का संचार करता
है,कैसे हमारा उत्साह वर्धन करता है, कैसे हमारी उन्नति का साधन बनता है।
मनुष्य स्वभाव से बदलाव को साधारणतया स्वीकार करना नहीं चाहता। हाँ यदि बदलाव से कुछ अच्छा होने का आभास पहले से हो या निश्चित हो तो बात अलग है।नौकरी में प्रोन्नति से जब स्थान परिवर्तन होता है तो आम तौर पर उसे सहज ही स्वीकार कर लिया जाता है।लेकिन अन्यथा इसकी स्वीकार्यता मुश्किल होती है। साथ ही जैसे - जैसे उम्र बढती है तो बदलाव को स्वीकार करना और कठिन होता जाता है। उदहारण के लिए माता -पिता के स्थानांतरण के बाद नए शहर में जाने का अवसर आने की स्थिति मे बच्चे प्रायः खुश भी रहते और तैयार भी। वहीं सेवानिवृति के बाद कई बार ऐसी स्थिति बनती है की माता - पिता को अपने बच्चो के साथ उनके शहर में जाना पड़ जाता है तो उन्हें नए शहर में नए लोगो के साथ रहना असहज लगता है इसलिये शुरू में इसका स्वाभाविक प्रतिरोध होता है।
आम तौर पर परिवर्तन से भय का कारण भविष्य की अनिश्चित्ता है। लेकिन यदि प्रकृति का परिवर्तन का नियम आपको याद है और आप खुल कर और खिल कर जीने की आदत बना ले तो अनिश्चित्ता को आप भय के बजाय आश्चर्य से देखना शुरू करेंगे और परिवर्तन की सभी स्थितियों को साक्षी भाव से देखते हुये उसका आंनंद ले सकेंगे। दूसरे जब आप परिस्थितियो को भय से देखते है तो उससे ठीक तरह से डील करने की अपनी पूरी क्षमताओं का उपयोग इसलिए नहीं कर पाते है क्योकिं भय आपको मानसिक रूप से कमजोर कर देता है। और आप कमजोर व्यक्ति की तरह समस्या का हल निकाल रहे होते है इसलिए आपके हारने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।
मनुष्य स्वभाव से बदलाव को साधारणतया स्वीकार करना नहीं चाहता। हाँ यदि बदलाव से कुछ अच्छा होने का आभास पहले से हो या निश्चित हो तो बात अलग है।नौकरी में प्रोन्नति से जब स्थान परिवर्तन होता है तो आम तौर पर उसे सहज ही स्वीकार कर लिया जाता है।लेकिन अन्यथा इसकी स्वीकार्यता मुश्किल होती है। साथ ही जैसे - जैसे उम्र बढती है तो बदलाव को स्वीकार करना और कठिन होता जाता है। उदहारण के लिए माता -पिता के स्थानांतरण के बाद नए शहर में जाने का अवसर आने की स्थिति मे बच्चे प्रायः खुश भी रहते और तैयार भी। वहीं सेवानिवृति के बाद कई बार ऐसी स्थिति बनती है की माता - पिता को अपने बच्चो के साथ उनके शहर में जाना पड़ जाता है तो उन्हें नए शहर में नए लोगो के साथ रहना असहज लगता है इसलिये शुरू में इसका स्वाभाविक प्रतिरोध होता है।
आम तौर पर परिवर्तन से भय का कारण भविष्य की अनिश्चित्ता है। लेकिन यदि प्रकृति का परिवर्तन का नियम आपको याद है और आप खुल कर और खिल कर जीने की आदत बना ले तो अनिश्चित्ता को आप भय के बजाय आश्चर्य से देखना शुरू करेंगे और परिवर्तन की सभी स्थितियों को साक्षी भाव से देखते हुये उसका आंनंद ले सकेंगे। दूसरे जब आप परिस्थितियो को भय से देखते है तो उससे ठीक तरह से डील करने की अपनी पूरी क्षमताओं का उपयोग इसलिए नहीं कर पाते है क्योकिं भय आपको मानसिक रूप से कमजोर कर देता है। और आप कमजोर व्यक्ति की तरह समस्या का हल निकाल रहे होते है इसलिए आपके हारने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।
अतः परिवर्तन के द्वारा उत्पन्न होने वाली स्थितयो से निपटने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से अपनी तैयारी रखना, इसे ईश्वर का नियम मान कर इसके प्रति ईश्वरीय श्रद्धा और शुभ भविष्य के बारे में आशावान बने रहकर आप सफलता की सीढ़ी चढ़ सकते है। याद रखिये जीवन में आने वाले परिवर्तन नई परिस्थितिओं को स्वीकार करने और उनसे निपटने में आपके धैर्य और कौशल की परीक्षा लेते है। इनसे जीत कर ही आप को अपने भविष्य को संवार सकते है।
क्या आपको आसमान से गिरने वाली उस बूँद की कहानी याद है जो बादलों से अलग होते हुये सोच रही थी की भाग्य में न जाने क्या होने वाला है। किसी कमल के फूल या अंगारे में गिरना पड़ेगा या फिर धूल में गिरकर नष्ट होना मेरी किस्मत में लिखा है। लेकिन परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बदली की बूँद सीप के मुँह में गिरकर मोती बन गई । दुनियाँ में ऐसे अनेक उदहारण है जब परिस्थितवश ऐसा लगता है की शायद कुछ बेहतर होना सम्भव नहीं लेकिन उन्ही परिस्थितियो में अक्सर चमत्कार होते देखे गए है। अतः परिवर्तन को ख़ुशी - ख़ुशी स्वीकार करे और उसे बेहतर बनाने के लिये पूरे मन से काम करे और फिर देखे कि कैसे आपकी जिन्दगी चमत्कारों से भर जाती है। बस ईश्वर से मिलने वाली हर कृपा का धन्यवाद करना न भूले।
अजय सिंह
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