श्री कृष्ण जन्म का रहस्य:
कृष्ण का जन्म होता है अँधेरी रात में, अमावस में। सभी का जन्म अँधेरी रात में होता है और अमावस में होता है।
असल में जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है कि अँधेरे में
ही हो सकती है। आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है, वे सब गहरे अंधकार
में, गहन अंधकार में होती है। एक कविता जन्मती है, तो मन के बहुत
अचेतन
अंधकार में जन्मती है। बहुत अनकांशस डार्कनेस में पैदा होती है। एक चित्र
का जन्म होता है, तो मन की बहुत अतल गहराइयों में जहाँ कोई रोशनी नहीं
पहुँचती जगत की, वहाँ होता है। समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता
है, तो सब गहन अंधकार में। गहन अंधकार से अर्थ है, जहाँ बुद्धि का प्रकाश
जरा भी नहीं पहुँचता। जहाँ सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता, हाथ को हाथ नहीं
सूझता है।
कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ
नहीं सूझ रहा था, इतना गहन अंधकार था। लेकिन इसमें विशेषता खोजने की जरूरत
नहीं है। यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है।
दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है- बंधन में जन्म होता
है, कारागृह में। किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? हम
सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से
मुक्त हो जाएँ, जरूरी नहीं है हो सकता है कि हम मरें भी कारागृह में। जन्म
एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ
जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो
कारागृह में ही जन्म लेती है।
कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि
जन्म के साथ ही उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? जन्म के साथ
ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद - एक पल बाद भी मृत्यु
घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत
घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त
जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही
योग्य हो जाता है, जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और
कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए।
लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ एक चौथी बात भी जुड़ी है कि मरने
की बहुत तरह की घटनाएँ आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। जो भी
उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है।
मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं, जिस
दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है।
वे सब रूपों की कथाएँ हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत
घेरती है और हार जाती है। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम
गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है
कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती
है।
मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है। जिन-जिन ने चाहा है,
जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएँ, वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और
कृष्ण जीए ही चले जाते हैं। लेकिन ये बातें इतनी सीधी, जैसा मैं कह रहा
हूँ, कही नहीं गई हैं। इतने सीधे कहने का पुराने आदमी के पास कोई उपाय नहीं
था। इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।
जितना पुरानी दुनिया में हम वापस लौटेंगे, उतना ही चिंतन का
जो ढंग है, वह पिक्चोरियल होता है, चित्रात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं
होता। अभी भी रात आप सपना देखते हैं, कभी आपने खयाल किया कि सपनों में
शब्दों का उपयोग करते हैं कि चित्रों का?
सपने में शब्दों का उपयोग नहीं होता, चित्रों का उपयोग होता
है। क्योंकि सपने हमारे आदिम भाषा हैं, प्रिमिटिव लैंग्वेज हैं। सपने के
मामले में हममें और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा
है। सपने अभी भी पुराने हैं, प्रिमिटिव हैं, अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो
पाया। अभी भी सपने तो वही हैं जो दस हजार साल, दस साल पुराने थे। गुहा-मानव
ने एक गुफा में सोकर रात में जो सपने देखे होंगे, वही एयरकंडीशंड मकान में
भी देखे जाते हैं। उससे कोई और फर्क नहीं पड़ा है। सपने की खूबी है कि उसकी
सारी अभिव्यक्ति चित्रों में है।
जितना पुरानी दुनिया में हम लौटेंगे- और कृष्ण बहुत पुराने
हैं, इन अर्थों में पुराने हैं कि आदमी जब चिंतन शुरू कर रहा है, आदमी जब
सोच रहा है जगत और जीवन के बाबत, अभी जब शब्द नहीं बने हैं और जब प्रतीकों
में और चित्रों में सारा का सारा कहा जाता है और समझा जाता है, तब कृष्ण के
जीवन की घटनाएँ लिखी गई हैं। उन घटनाओं को डीकोड करना पड़ता है। उन घटनाओं
को चित्रों से तोड़कर शब्दों में लाना पड़ता है। और कृष्ण शब्द को भी थोड़ा
समझना जरूरी है।
कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता
है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश का केंद्र।
कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो केंद्रीय
चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है,
क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है। वह सेंटर ऑफ
ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिँचती हैं और आकृष्ट होती हैं।
शरीर खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिँचकर उसके
आसपास निर्मित होता है, समाज खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत
खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है,
आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है। तो जब भी कोई
व्यक्ति जन्मता है, तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है वह जो बिंदु है
आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास
निर्मित होनी शुरू होती हैं। उस कृष्ण बिंदु के आसपास क्रिस्टलाइजेशन शुरू
होता है और व्यक्तित्व निर्मित होता है। इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति
विशेष का जन्म मात्र नहीं है, बल्कि व्यक्ति मात्र का जन्म है।
कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के
व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो प्रत्येक आत्मा के जन्म के
साथ समाहित है। महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा
काव्यात्मक हो जाती है। पीछे लौटकर निर्मित होती है।
पीछे लौटकर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और
दूसरे अर्थ ले लेती है। जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे। और
फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी
बार-बार लिखती है।
हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारों लोग लिखते हैं तो हजार
व्याख्याएँ होती चली जाती हैं। फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसी व्यक्ति
की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्था हो जाते हैं, एक इंस्टीट्यूट हो
जाते हैं। फिर वे समस्त जन्मों का सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र के
जन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है। इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में
मैं कोई मूल्य नहीं मानता हूँ। कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं
जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड के प्रतीक
हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं, वे सब उनमें
समाहित हो जाते हैं।
अजय सिंह "जे एस के "
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