दोस्तों ,
जब किसी घर में कोई नया जीवन आता है अर्थात जन्म लेता है तो घर खुशियों से भर जाता है और इसकी ख़ुशी त्यौहार की तरह ही मानते और मनाते है फिर धीरे धीरे हम ख़ुशी मनाए जाने के लिए अवसर ढूढंते है जैसे जब बच्चे का नाम रखेंगे, पढ़ना शुरू करेगा अथवा स्कूल जायेगा तब घटना को उत्सव की तरह मनाते है। इस तरह हम पहले तो अग्रसक्रिय या प्रोएक्टिव होते है फिर सक्रिय या एक्टिव रहते है जैसे जैसे उम्र बढ़ती है तो हम प्रतिक्रियाशील अर्थात रिएक्टिव हो जाते है। यानि हम खुश होना तो चाहते है क्योंकि ख़ुशी ईश्वर का गुण है परन्तु इसके लिये कारण तलाश करते रहते और जब कारण मिल जाता है तब ही हम ख़ुशी मनाते है क्योंकि हमारी मान्यता यह है की ख़ुशी के लिए कुछ कारण जरुरी है। उदहारण के लिये जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी साँस चलती है हमारा दिल धड़कता है हमारा शरीर स्वस्थ है और काम कर रहा है इसको खुशी का कारण न मान कर जब बीमार हो जाते है तो पुनः स्वस्थ होने पर ख़ुशी मनांते है और ईश्वर का धन्यवाद करते है।
क्या हमारी साँस का चलना अपने आप में ख़ुशी का कारण नही है ?क्या शरीर का स्वस्थ होना और ठीक से अपने नित्य कर्मो को करना ख़ुशी मनाने के लिए आवश्यक और पर्याप्त कारण नहीं है ? वास्तव में हमने अपने मन का परिसीमन कर दिया है और उसे यह प्रशिक्षण दे दिया है की कुछ विशेष अवसरों पर ही खुश रहना है। जबकि ईश्वरीय व्यस्था यह है की हमारे जीवन हर पल एक नया अवसर है जिसमे हमें खुश होकर प्रविष्ट करना है ,जो उस पल में उस क्षण में घटित हो रहा है उसे आश्चर्य से देखना है उसका आनंद लेना है और उसकी सराहना करते हुए ईश्वर का धन्यवाद करना है।
आप के साथ जो कुछ घटित हो रहा है वह ईश्वर की दिव्य योजना का हिस्सा है। अतः प्रसन्नता के साथ धन्यवाद भाव से आनन्द लेते हुये जीवन जीना शुरू करने का अभ्यास करने से जीवन खुद एक उत्सव बन जायेगा। आपके साथ आपके परिवार जन,मित्र और सहयोगी सभी जीवन में खुश रहने का कारण ढूढ़ने के बजाय खुद ख़ुशी बन जायेंगे और फिर ख़ुशी जिसके पास जाती है उसे खुश ही करेगी।
जब हमारा जीवन खुद ख़ुशी का सबसे सुन्दर कारण है तो हम फिर दूसरी क्षणिक ख़ुशी को ढूढ़ने में इस बहुमूल्य जीवन को व्यर्थ क्यों करें। आईये आज से नहीं इसी क्षण से तय करें और इसे इस तरह की प्रशिक्षण दे की हमारे जीवन का हर पल दीपावली मनाने जैसा ही रहेगा इसके लिए हमें किसी अन्य अथवा बाहरी कारण की आवश्यकता है नहीं है। बाहरी कारण तो परिवर्तन शील है और इसलिये यह हर खुशी के बाद गम लाएंगे। हर पल हर क्षण की ख़ुशी तो अपने अंदर से ही आने वाली है और यह अनन्त है जीवन के शुरू होने पर शुरू हुई है और जीवन के साथ ही खत्म होने वाली है।
अजय सिंह "जे एस के "
जब किसी घर में कोई नया जीवन आता है अर्थात जन्म लेता है तो घर खुशियों से भर जाता है और इसकी ख़ुशी त्यौहार की तरह ही मानते और मनाते है फिर धीरे धीरे हम ख़ुशी मनाए जाने के लिए अवसर ढूढंते है जैसे जब बच्चे का नाम रखेंगे, पढ़ना शुरू करेगा अथवा स्कूल जायेगा तब घटना को उत्सव की तरह मनाते है। इस तरह हम पहले तो अग्रसक्रिय या प्रोएक्टिव होते है फिर सक्रिय या एक्टिव रहते है जैसे जैसे उम्र बढ़ती है तो हम प्रतिक्रियाशील अर्थात रिएक्टिव हो जाते है। यानि हम खुश होना तो चाहते है क्योंकि ख़ुशी ईश्वर का गुण है परन्तु इसके लिये कारण तलाश करते रहते और जब कारण मिल जाता है तब ही हम ख़ुशी मनाते है क्योंकि हमारी मान्यता यह है की ख़ुशी के लिए कुछ कारण जरुरी है। उदहारण के लिये जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी साँस चलती है हमारा दिल धड़कता है हमारा शरीर स्वस्थ है और काम कर रहा है इसको खुशी का कारण न मान कर जब बीमार हो जाते है तो पुनः स्वस्थ होने पर ख़ुशी मनांते है और ईश्वर का धन्यवाद करते है।
क्या हमारी साँस का चलना अपने आप में ख़ुशी का कारण नही है ?क्या शरीर का स्वस्थ होना और ठीक से अपने नित्य कर्मो को करना ख़ुशी मनाने के लिए आवश्यक और पर्याप्त कारण नहीं है ? वास्तव में हमने अपने मन का परिसीमन कर दिया है और उसे यह प्रशिक्षण दे दिया है की कुछ विशेष अवसरों पर ही खुश रहना है। जबकि ईश्वरीय व्यस्था यह है की हमारे जीवन हर पल एक नया अवसर है जिसमे हमें खुश होकर प्रविष्ट करना है ,जो उस पल में उस क्षण में घटित हो रहा है उसे आश्चर्य से देखना है उसका आनंद लेना है और उसकी सराहना करते हुए ईश्वर का धन्यवाद करना है।
आप के साथ जो कुछ घटित हो रहा है वह ईश्वर की दिव्य योजना का हिस्सा है। अतः प्रसन्नता के साथ धन्यवाद भाव से आनन्द लेते हुये जीवन जीना शुरू करने का अभ्यास करने से जीवन खुद एक उत्सव बन जायेगा। आपके साथ आपके परिवार जन,मित्र और सहयोगी सभी जीवन में खुश रहने का कारण ढूढ़ने के बजाय खुद ख़ुशी बन जायेंगे और फिर ख़ुशी जिसके पास जाती है उसे खुश ही करेगी।
जब हमारा जीवन खुद ख़ुशी का सबसे सुन्दर कारण है तो हम फिर दूसरी क्षणिक ख़ुशी को ढूढ़ने में इस बहुमूल्य जीवन को व्यर्थ क्यों करें। आईये आज से नहीं इसी क्षण से तय करें और इसे इस तरह की प्रशिक्षण दे की हमारे जीवन का हर पल दीपावली मनाने जैसा ही रहेगा इसके लिए हमें किसी अन्य अथवा बाहरी कारण की आवश्यकता है नहीं है। बाहरी कारण तो परिवर्तन शील है और इसलिये यह हर खुशी के बाद गम लाएंगे। हर पल हर क्षण की ख़ुशी तो अपने अंदर से ही आने वाली है और यह अनन्त है जीवन के शुरू होने पर शुरू हुई है और जीवन के साथ ही खत्म होने वाली है।
अजय सिंह "जे एस के "
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