दोस्तों,
यह बोध कथा व्हाट्स अप पर प्राप्त हुई थी याद रहे इसलिए इसको यहाँ दे रहा हूँ।
एक राजा का दरबार लगा हुआ था क्योंकि सर्दी का दिन था, इसलिये राजा का दरवार खुले मे बैठा था पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थीl
महाराज ने सिंहासन के सामने एक टेबल जैसी कोई कीमती चीज रखी
थी पंडित लोग दीवान आदि सभी दरवार मे बैठे थे राजा के परिवार के सदस्य भी
बैठे थे उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश मागा।
प्रवेश मिल गया तो उसने कहा मेरे पास दो वस्तुए है मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और अपनी बात रखता हूँ।
कोई परख नही पाता सब हार जाते हैंं और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ।
अब आपके नगर मे आया हूँ।
राजा ने बुलाया और कहा क्या बात है।
तब उसने दोनो वस्तुये टेबल पर रख दी बिल्कुल समान आकार, समान रुप रंग, समान प्रकाश सब कुछ नख सिख समान।
राजा ने कहा ये दोनो वस्तुए एक है।
तब उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो एक सी देती हैं लेकिन हैं भिन्न।
इनमे से एक है बहुत कीमती हीरा है और एक है काँच का टुकडा।
लेकिन रूप रंग सब एक है।
कोइ आज तक परख नही पाया की कौन सा हीरा है और कौन सा काँच।
कोइ परख कर बताये की ये हीरा है या ये काँच।
अगर परख खरी निकली तो मे हार जाउँगा और यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूंगा ।
यदि कोइ न पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी।
इसी प्रकार मे कइ राज्यो से जीतता आया हूँ।
राजा ने कहा मै तो नही परख सकूंगा दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है।
कोइ हिम्मत नही जुटा पाया।
हारने पर पैसे देने पडेगे इसका कोई सवाल नही था क्योकि राजा के पास बहुत धन है।
राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी इसका सबको भय था अगर कोइ व्यक्ति पहचान नही पाया।आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई।
एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा।
उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो मैने सब बाते सुनी है।
और यह भी सुना कि कोइ परख नही पा रहा है।
एक अवसर मुझे भी दो।
एक आदमी के सहारे वह राजा के पास पहुँचा अौर उसने राजा से प्रार्थना की मै तो जनम से अंधा हूँ फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये।
मैं भी एक बार अपनी बुद्धि को परखू और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊ और यदि सफल न भी हुआ तो वैसे भी आप तो हारे ही हैं।
राजा को लगा कि इसे अवसर देने मे क्या हरज है।
राजा ने कहा ठीक है।
तब उस अंधे आदमी को दोनो चीजे छुआ दी गयी और पूछा गया इसमे कौन सा हीरा है और कौन सा काँच यही परखना है।
कथा कहती है कि उस आदमी ने एक मिनट मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था ।
आदमी नतमस्तक हो गया और बोला सही है।
आपने पहचान लिया, धन्य हो आप अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ।
सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था वह भी बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला।
वह राजा और अन्य सभी लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच
उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है।
मालिक धूप मे हम सब बैठे हैं।
मैने दोनो को छुआ।
जो ठंडा रहा वह हीरा जो गरम हो गया वह काँच ।
जीवन मे भी देखना जो बात बात मे गरम हो जाये उलझ जाये वह काँच।
जो विपरीत परिस्थिति मे भी ठंडा रहे वह हीरा है।
और अंत में
"वीणा के तारों को इतना मत कसो कि वे टूट जांए -
इतना ढीला भी मत छोड़ो कि उनसे स्वर ही न निकलें।
संतुलन ही सफल जीवन का सार है।।" महात्मा बुद्ध
इतना ढीला भी मत छोड़ो कि उनसे स्वर ही न निकलें।
संतुलन ही सफल जीवन का सार है।।" महात्मा बुद्ध
अजय सिंह "जे एस के "
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