भारत के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर :
भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित *प्रसिद्ध हनुमानजी*
मंदिर है। इनमे से हर मंदिर की अपनी एक विशेषता है कोई मंदीर अपनी
प्राचीनता की लिये प्रसिद्ध है तो कोई मंदीर अपनी भव्यता के लिए।
जबकि कई मंदिर अपनी अनोखी हनुमान मूर्त्तियों के लिए जैसे की
"इलाहबाद" का हनुमान मंदीर जहां की भारत की एक मात्र लेटे हुए हनूमान जी की
प्रतिमा है। जबकि इंदौर के उलटे हनुमान मंदिर में भारत कि एक मात्र उलटे
हनुमान कि प्रतिमा हैं।
रामनगर में विश्व का पहला ऐसा हनुमान मंदिर है जिसमें हनुमान जी के नौ स्वरूप और 12 दिलाओ के एक साथ दर्शन है
इसी
तरह रतनपुर के गिरिजाबंध हनुमान मंदिर में स्त्री रुप में हनुमान प्रतिमा
है। इन सबसे अलग गुजरात के जामनगर के बाल हनूमान मंदीर का नाम एक अनोखे
रिकॉर्ड क़े कारण "गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड" में दर्ज है।
हनुमान
धाम रामनगर नैनीताल (उत्तराखंड)
जिम कॉर्बेट पार्क,
रामनगर से 6 किलोमीटर दूर नैनीताल रोड पर छुई गांव में 8 एकड़ जमीन पर एक
ऐसा भव्य हनुमान धाम का नवनिर्माण हुआ है जिसमें हनुमान जी के सभी नौ
स्वरूप और 12 लीलाओं के एक साथ दर्शन हैं उत्तराखंड की जमीन पर इस भव्य
हनुमान धाम का जब से निर्माण हुआ है लाखों हनुमान जी के भक्तों ने इसके
दर्शन करे हैं तथा इस मंदिर के मुख्य मूर्ति पर एक प्रार्थना के रूप में
सभी भक्त अपनी अर्जी लगाते हैं और भक्तों का ऐसा मानना है कि उनकी अर्जी
यहां पर पूरी होती है तथा उनके द्वारा मांगी गई सभी इच्छाएं हनुमान जी के
द्वारा पूरी करी जाती है ऐसा इन पहाड़ों में यहां के लोगों में मान्यता है
कि यह वह जमीन है जहां पर हनुमान जी ने विश्राम किया था यह वह स्थान है
जहां पर लव और कुश के साथ सीता जी निवास करती थी
* हनुमान मंदिर...* *इलाहाबाद – (उत्तर प्रदेश):*
इलाहाबाद
किले से सटा यह मंदिर लेटे हुए हनुमान जी की प्रतिमा वाला एक छोटा किन्तु
प्राचीन मंदिर है। यह सम्पूर्ण भारत का केवल एकमात्र मंदिर है जिसमें
हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में हैं। यहां पर स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा
*२० फीट* लम्बी है। जब वर्षा के दिनों में बाढ़ आती है और यह सारा स्थान
जलमग्न हो जाता है, तब हनुमानजी की इस मूर्ति को कहीं ओर ले जाकर सुरक्षित
रखा जाता है। उपयुक्त समय आने पर इस प्रतिमा को पुन: यहीं लाया जाता है।
* हनुमानगढ़ी मंदिर...**अयोध्या – (उत्तर प्रदेश):*
धर्म
ग्रंथों के अनुसार अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। यहां का सबसे
प्रमुख श्रीहनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर
राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। इसमें "६०" सीढिय़ां चढऩे के बाद
श्री हनुमान जी का मंदिर आता है। यह मंदिर काफी बड़ा है। मंदिर के चारों ओर
निवास योग्य स्थान बने हैं, जिनमें साधु-संत रहते हैं। हनुमानगढ़ी के
दक्षिण में सुग्रीव टीला व अंगद टीला नामक स्थान हैं। इस मंदिर की स्थापना
लगभग "३००" साल पहले स्वामी अभया रामदास जी ने की थी।
* सालासर बालाजी हनुमान मंदिर...**सालासर (राजस्थान):*
हनुमानजी
का यह मंदिर राजस्थान के चूरू जिले में है। गांव का नाम सालासर है, इसलिए
सालासर वाले बालाजी के नाम यह मंदिर प्रसिद्ध है। हनुमानजी की यह प्रतिमा
दाड़ी व मूंछ से सुशोभित है। यह मंदिर पर्याप्त बड़ा है। चारों ओर
यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हुई हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु
यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मनचाहा वरदान पाते हैं। इस मंदिर के
संस्थापक श्री मोहनदासजी बचपन से श्री हनुमान जी के प्रति अगाध श्रद्धा
रखते थे। माना जाता है कि हनुमान जी की यह प्रतिमा एक किसान को जमीन जोतते
समय मिली थी, जिसे सालासर में सोने के सिंहासन पर स्थापित किया गया है।
यहाँ हर साल "भाद्रपद, आश्विन, चैत्र एवं वैशाख की पूर्णिमा" के दिन विशाल
मेला लगता है।
* हनुमान धारा मंदिर...**चित्रकूट – (उत्तर प्रदेश):*
उत्तर
प्रदेश के सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है।
सीतापुर से हनुमान धारा की दूरी तीन मील है। यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग
में स्थित है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर
दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी
बहता रहता है। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है।इसीलिए
इसे हनुमान धारा कहते हैं।धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे
लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं। इस स्थान के बारे में एक कथा इस
प्रकार प्रसिद्ध है -
*श्री राम* के
अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान
*श्रीरामचंद्र* से कहा- हे भगवन। मुझे कोई ऐसा स्थान बतलाइए, जहां लंका दहन
से उत्पन्न मेरे शरीर का ताप मिट सके। तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह
स्थान बताया।
* श्री संकटमोचन मंदिर...**वाराणसी – (उत्तर प्रदेश):*
यह
मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर एक
छोटा सा वन है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य
साधना स्थली के योग्य है। मंदिर के प्रांगण में श्री हनुमानजी की दिव्य
प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के समीप ही भगवान
श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी की यह
मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति
है।इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं
बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को
हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी
प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां "श्री हनुमान जयंती" महोत्सव होता है।
इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण
सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।
* हनुमान दंडी मंदिर...**बेट द्वारका – (गुजरात):*
बेट
द्वारका से चार मील की दूरी पर मकर ध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति
स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी परंतु अब दोनों
मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं। अहिरावण ने भगवान *श्री राम लक्ष्मण* को
इसी स्थान पर छिपा कर रखा था।
जब
हनुमानजी *श्री राम - लक्ष्मण* को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ
घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध
दिया। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। कुछ धर्म ग्रंथों में
मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने
द्वारा एक मछली से हुआ था।
* मेहंदीपुर बालाजी मंदिर...* *मेहंदीपुर – (राजस्थान):*
राजस्थान
के दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ मेहंदीपुर नामक स्थान है।
यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई-बस मार्ग पर जयपुर से लगभग ६५ किलोमीटर दूर है।
दो पहाडिय़ों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी
कहते हैं। जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब १ हजार साल पुराना है। यहां पर एक
बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री
हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है।
इनके चरणों में
छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा यहाँ के
हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी
वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। कहा
जाता है कि मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए परंतु
चमत्कारी रूप से यह मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस मंदिर की सबसे बड़ी
विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा
रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति
स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते
हैं। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण
कर देते हैं।
* डुल्या मारुति मंदिर...* *पूना – (महाराष्ट्र):*
पूना
के गणेशपेठ में स्थित यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। श्रीडुल्या मारुति का
मंदिर संभवत: ३५० वर्ष पुराना है। संपूर्ण मंदिर पत्थर का बना हुआ है, यह
बहुत आकर्षक और भव्य है। मूल रूप से डुल्या मारुति की मूर्ति एक काले पत्थर
पर अंकित की गई है। यह मूर्ति पांच फुट ऊंची तथा ढाई से तीन फुट चौड़ी
अत्यंत भव्य एवं पश्चिम मुख है। हनुमानजी की इस मूर्ति की दाईं ओर *श्री
गणेश* भगवान की एक छोटी सी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति की स्थापना
*श्रीसमर्थ रामदास स्वामी* ने की थी, ऐसी मान्यता है। सभा मंडप में द्वार
के ठीक सामने छत से टंगा एक पीतल का घंटा है, इसके ऊपर शक संवत् १७०० अंकित
है।
* श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर...* *सारंगपुर – (गुजरात):*
अहमदाबाद-भावनगर
रेलवे लाइन पर स्थित बोटाद जंक्शन से सारंगपुर लगभग १२ मील दूर है। यहां
एक प्रसिद्ध मारुति प्रतिमा है। महायोगिराज गोपालानंद स्वामी ने इस शिला
मूर्ति की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १९०५ आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन की थी।
जनश्रुति है कि प्रतिष्ठा के समय मूर्ति में श्री हनुमान जी का आवेश हुआ और
यह हिलने लगी। तभी से इस मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर कहा जाता है। यह
मंदिर स्वामीनारायण सम्प्रदाय का एकमात्र हनुमान मंदिर है।
* यंत्रोद्धारक हनुमान मंदिर...**हंपी – (कर्नाटक):*
बेल्लारी
जिले के हंपी नामक नगर में एक हनुमान मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में
प्रतिष्ठित हनुमानजी को यंत्रोद्धारक हनुमान कहा जाता है। विद्वानों के
मतानुसार यही क्षेत्र प्राचीन किष्किंधा नगरी है। वाल्मीकि रामायण व
रामचरित मानस में इस स्थान का वर्णन मिलता है। संभवतया इसी स्थान पर किसी
समय वानरों का विशाल साम्राज्य स्थापित था। आज भी यहां अनेक गुफाएं हैं। इस
मंदिर में श्रीराम नवमी के दिन से लेकर तीन दिन तक विशाल उत्सव मनाया जाता
है।
* गिरजाबंध हनुमान मंदिर...* *रतनपुर – (छत्तीसगढ़):*
बिलासपुर
से २५ कि. मी. दूर एक स्थान है रतनपुर। इसे महामाया नगरी भी कहते हैं। यह
देवस्थान पूरे भारत में सबसे अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और
गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में
हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां हनुमान नारी स्वरूप में हैं। इस
दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
* उलटे हनुमान का मंदिर...**साँवरे, इंदौर – (मध्यप्रदेश):*
भारत
की धार्मिक नगरी उज्जैन से केवल ३० किमी दूर स्थित है यह धार्मिक स्थान
जहाँ भगवान हनुमान जी की उल्टे रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर साँवरे
नामक स्थान पर स्थापित है इस मंदिर को कई लोग रामायण काल के समय का बताते
हैं। मंदिर में भगवान हनुमान की उलटे मुख वाली सिंदूर से सजी मूर्ति
विराजमान है। सांवेर का हनुमान मंदिर हनुमान भक्तों का महत्वपूर्ण स्थान है
यहाँ आकर भक्त भगवान के अटूट भक्ति में लीन होकर सभी चिंताओं से मुक्त हो
जाते हैं। यह स्थान ऐसे भक्त का रूप है जो भक्त से भक्ति योग्य हो गया।
*उलटे हनुमान कथा :—*
भगवान
हनुमान के सभी मंदिरों में से अलग यह मंदिर अपनी विशेषता के कारण ही सभी
का ध्यान अपनी ओर खींचता है। साँवेर के हनुमान जी के विषय में एक कथा बहुत
लोकप्रिय है। कहा जाता है कि जब रामायण काल में भगवान *श्री राम* व रावण का
युद्ध हो रहा था, तब अहिरावण ने एक चाल चली. उसने रूप बदल कर अपने को राम
की सेना में शामिल कर लिया और जब रात्रि समय सभी लोग सो रहे थे,तब अहिरावण
ने अपनी जादुई शक्ति से *श्री राम एवं लक्ष्मण जी* को मूर्छित कर उनका
अपहरण कर लिया। वह उन्हें अपने साथ पाताल लोक में ले जाता है। जब वानर सेना
को इस बात का पता चलता है तो चारों ओर हडकंप मच जाता है। सभी इस बात से
विचलित हो जाते हैं। इस पर हनुमान जी भगवान *श्री राम व लक्ष्मण जी* की खोज
में पाताल लोक पहुँच जाते हैं और वहां पर अहिरावण से युद्ध करके उसका वध
कर देते हैं तथा *श्री राम एवं लक्ष्मण जी* के प्राँणों की रक्षा करते हैं।
उन्हें पाताल से निकाल कर सुरक्षित बाहर ले आते हैं। मान्यता है की यही वह
स्थान था जहाँ से हनुमान जी पाताल लोक की और गए थे। उस समय हनुमान जी के
पाँव आकाश की ओर तथा सर धरती की ओर था जिस कारण उनके उल्टे रूप की पूजा की
जाती है।
* प्राचीन हनुमान मंदिर...**कनॉट प्लेस – (नई दिल्ली):*
यहां
महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर उपस्थित
हनुमान जी स्वंयम्भू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर वाला यह मंदिर आस्था का
महान केंद्र है। दिल्ली का ऐतिहासिक नाम इंद्रप्रस्थ शहर है, जो यमुना नदी
के तट पर पांडवों द्वारा महाभारत-काल में बसाया गया था। तब पांडव
इंद्रप्रस्थ पर और कौरव हस्तिनापुर पर राज्य करते थे। ये दोनों ही कुरु वंश
से निकले थे। हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों में द्वितीय भीम को हनुमान
जी का भाई माना जाता है। दोनों ही वायु-पुत्र कहे जाते हैं। इंद्रप्रस्थ
की स्थापना के समय पांडवों ने इस शहर में पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना
की थी। ये मंदिर उन्हीं पांच में से एक है।
* श्री बाल हनुमान मंदिर, *जामनगर – (गुजरात):*
सन्
१५४० में जामनगर की स्थापना के साथ ही स्थापित यह हनुमान मंदिर, गुजरात के
गौरव का प्रतीक है। यहाँ पर सन् १९६४ से “श्री राम धुनी” का जाप लगातार
चलता आ रहा है, जिस कारण इस मंदिर का नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स
में शामिल किया गया है।
* महावीर हनुमान मंदिर...* *पटना, (बिहार):*
पटना
जंक्शन के ठीक सामने महावीर मंदिर के नाम से श्री हनुमान जी का मंदिर है।
उत्तर भारत में माँ वैष्णों देवी मंदिर के बाद यहाँ ही सबसे ज्यादा चढ़ावा
आता है। इस मंदिर के अन्तर्गत महावीर कैंसर संस्थान, महावीर वात्सल्य
हॉस्पिटल, महावीर आरोग्य हॉस्पिटल तथा अन्य बहुत से अनाथालय एवं अस्पताल चल
रहे हैं। यहाँ श्री हनुमान जी संकटमोचन रूप में विराजमान हैं।
* श्री पंचमुख आंजनेयर हनुमान...**( तमिलनाडू):*
तमिलनाडू
के कुम्बकोनम नामक स्थान पर श्री पंचमुखी आंजनेयर स्वामी जी (श्री हनुमान
जी) का बहुत ही मनभावन मठ है। यहाँ पर श्री हनुमान जी की “पंचमुख रूप” में
विग्रह स्थापित है, जो अत्यंत भव्य एवं दर्शनीय है।
यहाँ
पर प्रचलित कथाओं के अनुसार जब अहिरावण तथा उसके भाई महिरावण ने *श्री राम
जी* को लक्ष्मण सहित अगवा कर लिया था, तब *प्रभु श्री राम* को ढूँढ़ने के
लिए हनुमान जी ने पंचमुख रूप धारण कर इसी स्थान से अपनी खोज प्रारम्भ की
थी। और फिर इसी रूप में उन्होंने उन अहिरावण और महिरावण का वध भी किया था।
यहाँ पर हनुमान जी के पंचमुख रूप के दर्शन करने से मनुष्य सारे दुस्तर
संकटों एवं बंधनों से मुक्त हो जाता है
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