Every year New year celebrations are held to welcome coming year and seeoff the out going.It happens only once in a year beacuse Celebration of Joy is not an easy task ,it takes one full year to collect courage to enjoy when it is external ,it can be celebrated every day when it is internal and every moment when it is eternal. So on this auspicious day let us practice to make it internal and try hard to make it eternal.
Friday, December 30, 2016
कपूर के इन उपायों से नहीं होगी कभी पैसे की कमी
जीवन में उतार चढाव चलते रहते हैं। यदि आपकी किस्मत कभी आपका साथ न दे रही हो तो निराश न हों।
ज्योतिष शास्त्र के छोटे छोटे उपायों से जीवन की समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कपूर का उपयोग बेहद लाभकारी है। कपूर के उपयोग से धन समस्या, वास्तुदोष, बीमारियों सभी से बचा जा सकता है।
आओ जानें कैसे:-
1.वास्तु दोष दूर करने के लिए घर में कपूर की दो गोली रखे। जैसे ही यह ख़तम हो जाये दो गोलियां फिर रख दे। इस तरह समय समय पर कपूर की गोलिओं को रखने से वास्तु दोष समाप्त हो जायेंगे।
2 यदि धन की कमी से गुजर रहे है तो चाँदी की कटोरी में लौंग और कपूर रात में कुछ समय जलाये लाभ होगा।
3. घर की समस्याएं यदि ख़तम होने का नाम हो तो ,कपूर को घी में भिगोएं और सुबह और शाम इसे जलाये। इसे जलाने के अंदर सकारात्मक ऊर्जा आएगी।
4. अगर विवाह में समस्या आ रही हो तो 6 कपूर के टुकड़े और ३६ लौंग की कली ले और इसमें हल्दी और चावल मिला ले। इस मिश्रण की आहुति देवी दुर्गा के हवन में देने से विवाह सम्बन्धी रूकावटे दूर होंगी।
5. घर से बिमारिओं को दूर रखने के लिए शनिवार को कपूर के तेल को पानी में दाल कर स्नान करें बीमारी दूर होगी।
अजय सिंह
) वास्तुदोष को दूर करने हेतु घर में कपूर की दो गोली रखें। जैसे ही ये गल जाए तो फिर से दो गोलियां रख दें। इस तरह समय-समय पर कपूर घर में रखते रहें। ऐसा करने से वास्तुदोष खत्म हो जाएगा। 2) यदि धन की कमी से गुजर रहे हैं, तो कुछ दिनों तक रात के समय चांदी की कटोरी में कपूर और लौंग को जलाएं। 3) यदि घर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो कपूर को घी में भिगाएं और सुबह और शाम के समय इसे जलाएं। इसे जलाने से निकलने वाली अग्नि से घर के अंदर सकारात्मक उर्जा आती है। 4) अगर किसी भी तरह की समस्या विवाह में आ रही है, तो 6 कपूर के टुकड़े और 36 लौंग के टुकडे लें। इनमें चावल और हल्दी को मिला लें। जिसके बाद देवी दुर्गा को इससे आहुति दें। सभी समस्याएं दूर होंगी। 5) यदि घर को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं, तो शनिवार को कपूर के तेल की बूंदों को पानी में डालें और फिर इस पानी से रोज स्नान करें।
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) वास्तुदोष को दूर करने हेतु घर में कपूर की दो गोली रखें। जैसे ही ये गल जाए तो फिर से दो गोलियां रख दें। इस तरह समय-समय पर कपूर घर में रखते रहें। ऐसा करने से वास्तुदोष खत्म हो जाएगा। 2) यदि धन की कमी से गुजर रहे हैं, तो कुछ दिनों तक रात के समय चांदी की कटोरी में कपूर और लौंग को जलाएं। 3) यदि घर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो कपूर को घी में भिगाएं और सुबह और शाम के समय इसे जलाएं। इसे जलाने से निकलने वाली अग्नि से घर के अंदर सकारात्मक उर्जा आती है। 4) अगर किसी भी तरह की समस्या विवाह में आ रही है, तो 6 कपूर के टुकड़े और 36 लौंग के टुकडे लें। इनमें चावल और हल्दी को मिला लें। जिसके बाद देवी दुर्गा को इससे आहुति दें। सभी समस्याएं दूर होंगी। 5) यदि घर को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं, तो शनिवार को कपूर के तेल की बूंदों को पानी में डालें और फिर इस पानी से रोज स्नान करें।
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वास्तुदोष को दूर करने
हेतु घर में कपूर की दो गोली रखें। जैसे ही ये गल जाए तो फिर से दो गोलियां
रख दें। इस तरह समय-समय पर कपूर घर में रखते रहें। ऐसा करने से वास्तुदोष
खत्म हो जाएगा।
2) यदि धन की कमी से गुजर रहे हैं, तो कुछ दिनों तक रात के समय चांदी की
कटोरी में कपूर और लौंग को जलाएं।
3) यदि घर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो कपूर को घी में
भिगाएं और सुबह और शाम के समय इसे जलाएं। इसे जलाने से निकलने वाली अग्नि
से घर के अंदर सकारात्मक उर्जा आती है।
4) अगर किसी भी तरह की समस्या विवाह में आ रही है, तो 6 कपूर के टुकड़े और
36 लौंग के टुकडे लें। इनमें चावल और हल्दी को मिला लें। जिसके बाद देवी
दुर्गा को इससे आहुति दें। सभी समस्याएं दूर होंगी।
5) यदि घर को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं, तो शनिवार को कपूर के तेल
की बूंदों को पानी में डालें और फिर इस पानी से रोज स्नान करें।
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कपूर के उपाय : जीवन में
उतार चढाव चलते रहते हैं। यदि आपकी किस्मत कभी आपका साथ न दे रही हो तो
निराश न हों। ज्योतिष शास्त्र के छोटे छोटे उपायों से जीवन की समस्याओं को
दूर किया जा सकता है।
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1) वास्तुदोष को दूर
करने हेतु घर में कपूर की दो गोली रखें। जैसे ही ये गल जाए तो फिर से दो
गोलियां रख दें। इस तरह समय-समय पर कपूर घर में रखते रहें। ऐसा करने से
वास्तुदोष खत्म हो जाएगा।
2) यदि धन की कमी से गुजर रहे हैं, तो कुछ दिनों तक रात के समय चांदी की
कटोरी में कपूर और लौंग को जलाएं।
3) यदि घर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो कपूर को घी में
भिगाएं और सुबह और शाम के समय इसे जलाएं। इसे जलाने से निकलने वाली अग्नि
से घर के अंदर सकारात्मक उर्जा आती है।
4) अगर किसी भी तरह की समस्या विवाह में आ रही है, तो 6 कपूर के टुकड़े और
36 लौंग के टुकडे लें। इनमें चावल और हल्दी को मिला लें। जिसके बाद देवी
दुर्गा को इससे आहुति दें। सभी समस्याएं दूर होंगी।
5) यदि घर को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं, तो शनिवार को कपूर के तेल
की बूंदों को पानी में डालें और फिर इस पानी से रोज स्नान करें।
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कपूर के उपाय : जीवन में
उतार चढाव चलते रहते हैं। यदि आपकी किस्मत कभी आपका साथ न दे रही हो तो
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दूर किया जा सकता है।
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1) वास्तुदोष को दूर
करने हेतु घर में कपूर की दो गोली रखें। जैसे ही ये गल जाए तो फिर से दो
गोलियां रख दें। इस तरह समय-समय पर कपूर घर में रखते रहें। ऐसा करने से
वास्तुदोष खत्म हो जाएगा।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कपूर का उपयोग बेहद लाभकारी है। कपूर के उपयोग से धन समस्या, वास्तुदोष, बीमारियों सभी से बचा जा सकता है। आओ जानें कैसे:- 1) वास्तुदोष को दूर करने हेतु घर में कपूर की दो गोली रखें। जैसे ही ये गल जाए तो फिर से दो गोलियां रख दें। इस तरह समय-समय पर कपूर घर में रखते रहें। ऐसा करने से वास्तुदोष खत्म हो जाएगा। 2) यदि धन की कमी से गुजर रहे हैं, तो कुछ दिनों तक रात के समय चांदी की कटोरी में कपूर और लौंग को जलाएं। 3) यदि घर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो कपूर को घी में भिगाएं और सुबह और शाम के समय इसे जलाएं। इसे जलाने से निकलने वाली अग्नि से घर के अंदर सकारात्मक उर्जा आती है। 4) अगर किसी भी तरह की समस्या विवाह में आ रही है, तो 6 कपूर के टुकड़े और 36 लौंग के टुकडे लें। इनमें चावल और हल्दी को मिला लें। जिसके बाद देवी दुर्गा को इससे आहुति दें। सभी समस्याएं दूर होंगी। 5) यदि घर को बीमारियों से दूर रखना चाहते हैं, तो शनिवार को कपूर के तेल की बूंदों को पानी में डालें और फिर इस पानी से रोज स्नान करें।
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Saturday, October 29, 2016
रामचरितमानस के बाण
रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।
इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।
1. रक्षा के लिए
मामभिरक्षक रघुकुल नायक | घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
2. विपत्ति दूर करने के लिए
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
3. सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
4. सब काम बनाने के लिए
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
5. वश मे करने के लिए
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||
अपने वश कर राखे राम ||
6. संकट से बचने के लिए
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
7. विघ्न विनाश के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
8. रोग विनाश के लिए
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
9. ज्वार ताप दूर करने के लिए
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
10. दुःख नाश के लिए
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
11. खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12. अनुराग बढाने के लिए
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
13. घर मे सुख लाने के लिए
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14. सुधार करने के लिए
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
15. विद्या पाने के लिए
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||
अल्प काल विधा सब आई ||
16. सरस्वती निवास के लिए
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17. निर्मल बुद्धि के लिए
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18. मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19. प्रेम बढाने के लिए
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20. प्रीति बढाने के लिए
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||
जासन बैर प्रीति कर सोई ||
21. सुख प्रप्ति के लिए
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
22. भाई का प्रेम पाने के लिए
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||
राम चरण रति अति अधिकाई ||
23. बैर दूर करने के लिए
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||
राम प्रताप विषमता खोई ||
24. मेल कराने के लिए
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25. शत्रु नाश के लिए
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26. रोजगार पाने के लिए
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||
ताकर नाम भरत अस होई ||
27. इच्छा पूरी करने के लिए
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28. पाप विनाश के लिए
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
30. दरिद्रता दूर के लिए
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32. शोक दूर करने के लिए
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33. क्षमा माँगने के लिए
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
सफलता के 100 सोपान
2 :- भगवान के भरोसे मत बैठिये क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो…
3 :- सफलता का आधार है सकारात्मक सोच और निरंतर प्रयास !!!
4 :- आओ मिलकर ख़ुशियाँ बांटे !!!
5 :- मेहनत इतनी खामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे…
6 :- कामयाब होने के लिए अकेले ही आगे बढ़ना पड़ता है, लोग तो पीछे तब आते है जब हम कामयाब होने लगते है.
7 :- छोड़ दो किस्मत की लकीरों पे यकीन करना, जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज़ है…
8 :- यदि हार की कोई संभावना ना हो तो जीत का कोई अर्थ नहीं है…
9 :- समस्या का नहीं समाधान का हिस्सा बने…
10 :- जिनको सपने देखना अच्छा लगता है उन्हें रात छोटी लगती है और जिनको सपने पूरा करना अच्छा लगता है उनको दिन छोटा लगता है…
11 :- आप अपना भविष्य नहीं बदल सकते पर आप अपनी आदतें बदल सकते है और निशचित रूप से आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देगी !
12 :- एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जानें के बाद दूसरा सपना देखने के हौसले को ज़िंदगी कहते है !!!
13 :- वो सपने सच नहीं होते जो सोते वक्त देखें जाते है, सपने वो सच होते है जिनके लिए आप सोना छोड़ देते है…
14 :- सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है !!!
15 :- जिनके इरादे बुलंद हो वो सड़कों की नहीं आसमानो की बातें करते है…
16 :- सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं…
17 :- मैं तुरंत नहीं लेकिन निश्चित रूप से जीतूंगा…
18 :- सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगें लोग…
19 :- आशावादी हर आपत्तियों में भी अवसर देखता है और निराशावादी बहाने !!!
20 :- आप में शुरू करने की हिम्मत है तो, आप में सफल होने के लिए भी हिम्मत है…
21 :- सच्चाई वो दिया है जिसे अगर पहाड़ की चोटी पर भी रख दो तो बेशक रोशनी कम करे पर दिखाई बहुत दूर से भी देता है.
22 :- संघर्ष में आदमी अकेला होता है, सफलता में दुनिया उसके साथ होती है ! जिस जिस पर ये जग हँसा है उसी उसी ने इतिहास रचा है.
23 :- खोये हुये हम खुद है और ढूढ़ते ख़ुदा को है !!!
24 :- कामयाब लोग अपने फैसले से दुनिया बदल देते है और नाकामयाब लोग दुनिया के डर से अपने फैसले बदल लेते है…
25 :- भाग्य को और दूसरों को दोष क्यों देना जब सपने हमारे है तो कोशिशें भी हमारी होनी चाहियें !!!
26 :- यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है !!!
27 :- झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते है तरक्की के बाज़ की उड़ान में कभी आवाज़ नहीं होती…
28 :- समस्या का सामना करें, भागे नहीं, तभी उसे सुलझा सकते हैं…
29 :- परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतराना मनुष्य की सबसे बड़ी कायरता है.
30 :- सुंदरता और सरलता की तलाश चाहे हम सारी दुनिया घूम के
कर लें लेकिन अगर वो हमारे अंदर नहीं तो फिर सारी दुनिया में कहीं नहीं है.
31 :- ना किसी से ईर्ष्या ना किसी से कोई होड़, मेरी अपनी मंज़िलें मेरी अपनी दौड़…
32 :- ये सोच है हम इंसानों की कि एक अकेला क्या कर सकता है, पर देख ज़रा उस सूरज को वो अकेला ही तो चमकता है !!!
33 :- लगातार हो रही सफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि कभी कभी गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल देती है…
34 :- जल्द मिलने वाली चीजें ज्यादा दिन तक नहीं चलती और जो चीजें ज्यादा दिन तक चलती है वो जल्दी नहीं मिलती है.
35 :- इंसान तब समझदार नहीं होता जब वो बड़ी बड़ी बातें करने लगे, बल्कि समझदार तब होता है जब वो छोटी छोटी बातें समझने लगे…
36 :- सेवा सभी की करना मगर आशा किसी से भी ना रखना क्योंकि सेवा का वास्तविक मूल्य नही दे सकते है,
37 :- मुश्किल वक्त का सबसे बड़ा सहारा है “उम्मीद” !! जो एक प्यारी सी मुस्कान दे कर कानों में धीरे से कहती है “सब अच्छा होगा” !!
38 :- दुनिया में कोई काम असंभव नहीं, बस हौसला और मेहनत की जरुरत है !!!
39 :- वक्त आपका है चाहे तो सोना बना लो और चाहे तो सोने में गुजार दो, दुनिया आपके उदाहरण से बदलेगी आपकी राय से नहीं…
40 :- बदलाव लाने के लिए स्वयं को बदले…
41 :- सफल व्यक्ति लोगों को सफल होते देखना चाहते है, जबकि असफल व्यक्ति लोगों को असफल होते देखना चाहते है…
42 :- घड़ी सुधारने वाले मिल जाते है लेकिन समय खुद सुधारना पड़ता है !!!
43 :- दुनिया में सब चीज मिल जाती है केवल अपनी ग़लती नहीं मिलती…
44 :- क्रोध और आंधी दोनों बराबर… शांत होने के बाद ही पता चलता है की कितना नुकसान हुवा…
45 :- चाँद पे निशान लगाओ, अगर आप चुके तो सितारों पे तो जररू लगेगा !!!
46 :- गरीबी और समृद्धि दोनों विचार का परिणाम है…
46 :- गरीबी और समृद्धि दोनों विचार का परिणाम है…
47 :- पसंदीदा कार्य हमेशा सफलता, शांति और आनंद ही देता है…
48 :- जब हौसला बना ही लिया ऊँची उड़ान का तो कद नापना बेकार है आसमान का…
49 :- अपनी कल्पना को जीवन का मार्गदर्शक बनाए अपने अतीत को नहीं…
50 :- समय न लागओ तय करने में आपको क्या करना है, वरना समय तय कर लेगा की आपका क्या करना है.
51 :- अगर तुम उस वक्त मुस्कुरा सकते हो जब तुम पूरी तरह टूट चुके हो तो यकीन कर लो कि दुनिया में तुम्हें कभी कोई तोड़ नहीं सकता !!!
52 :- कल्पना के बाद उस पर अमल ज़रुर करना चाहिए। सीढ़ियों को देखते रहना ही पर्याप्त नहीं है, उन पर चढ़ना भी ज़रुरी है।
53 :- हमें जीवन में भले ही हार का सामना करना पड़ जाये पर जीवन से कभी नहीं हारना चाहिए…
54 :- सीढ़ियां उन्हें मुबारक हो जिन्हें छत तक जाना है, मेरी मंज़िल तो आसमान है रास्ता मुझे खुद बनाना है !!!
55 :- हजारों मील के सफ़र की शुरुआत एक छोटे कदम से होती है…
56 :- मनुष्य वही श्रेष्ठ माना जाएगा जो कठिनाई में अपनी राह निकालता है ।
57 :- पुरुषार्थ से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है…
58 :- प्रतिबद्ध मन को कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, पर अंत में उसे अपने परिश्रम का फल मिलेगा ।
59 :- असंभव समझे जाने वाला कार्य संभव करके दिखाये, उसे ही प्रतिभा कहते हैं ।
60 :- आने वाले कल को सुधारने के लिए बीते हुए कल से शिक्षा लीजिए…
61 :- जो हमेशा कहे मेरे पास समय नहीं है, असल में वह व्यस्त नहीं बल्कि अस्त-व्यस्त है ।
62 :- कठिनाइयाँ मनुष्य के पुरुषार्थ को जगाने आती हैं…
63 :- क्रोध वह हवा है जो बुद्धि के दीप को बुझा देती है ।
64 :- आपका भविष्य उससे बनता है जो आप आज करते हैं, उससे नहीं जो आप कल करेंगे…
65 :- बन सहारा बे सहारों के लिए बन किनारा बे किनारों के लिए, जो जिये अपने लिए तो क्या जिये जी सको तो जियो हजारों के लिए ।
66 :- चाहे हजार बार नाकामयाबी हो, कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच के साथ लगे रहोगे तो अवश्य सफलता तुम्हारी है…
67 :- खुद की तरक्की में इतना समय लगा दो, कि किसी और की बुराई का वक्त ही ना मिले !!!
68 :- प्रगति बदलाव के बिना असंभव है, और जो अपनी सोच नहीं बदल सकते वो कुछ नहीं बदल सकते…
69 :- खुशी के लिए काम करोगे तो ख़ुशी नहीं मिलेगी, लेकिन खुश होकर काम करोगे, तो ख़ुशी और सफलता दोनों ही मिलेगी ।
70 :- पराजय तब नहीं होती जब आप गिर जाते हैं, पराजय तब होती है जब आप उठने से इनकार कर देते हैं ।
71 :- मन बुद्ध जैसा और दिल बच्चों जैसा होना चाहिए !!!
71 :- मन बुद्ध जैसा और दिल बच्चों जैसा होना चाहिए !!!
72 :- अगर भरोसा उपरवाले पे है तो जो लिखा है तकदीर में वही पाओगे, मगर भरोसा अगर खुद पे है तो वो वही लिखेगा जो आप चाहेंगे ।
73 :- कोशिश करने की हिम्मत ना होनी यही सही अर्थ में निष्फलता है…
74 :- अतीत के ग़ुलाम नहीं बल्कि भविष्य के निर्माता बनो…
75 :- सफलता हमारा जन्मसिद्ध हक़ है और इसे पाने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है !!!
76 :- सफलता तो आप द्वारा सोचे गए विचार का अंतिम परिणाम है…
77 :- अधूरी जानकारी डर का कारण है, पर्याप्त समझ निर्भयता लाती है !!!
78 :- हमेशा लक्ष्य के साथ रहने वाले लोग सफल होते है, क्योंकि उन्हें पता होता है की कहा जाना चाहते हैं ।
79 :- अच्छा परिणाम चाहते हो ? फिर अच्छे विचार करो…
80 :- सपने देखने और नए लक्ष्य रखने के लिए आप कभी उम्र दर्राज नहीं होते !!!
81 :- ज़माना जब भी मुझे मुश्किल में डाल देता है, मेरा रब हजारों रास्ते निकाल देता है !!!
82 :- बार बार विफलता मिले तो निराश मत हो, महान वैज्ञानिक एडीसन सफल होने से पहले 10,000 बार विफल हुये थे ।
83 :- प्रत्येक विफलता में लाभों के बीज होते हैं…
84 :- जो लोग संघर्ष से नहीं कतराते, जीत हमेशा उनकी ही होती है !!!
85 :- विजेता होने के लिए आवश्यक है स्पष्ट लक्ष्य और इसे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा…
86 :- असफलता की चिंता मत करो, बल्कि बिना कोशिश किये खोयें अवसरों की चिंता करो ।
87 :- समस्याओं से मत डरो वे आपको तोड़ने नहीं बल्कि मजबूत बनाने आती है…
88 :- अगर आप पराजय से कुछ सीखते है तो पराजय भी आपका कुछ नुकसान नहीं कर सकता !!!
89 :- भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले आलसी हमेशा पराजय को गले लगाता है ।
90 :- असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं हुआ…
91 :- बिना तय मंज़िल के राह पर भटकना व्यर्थ है…
92 :- चुनौतियों को चुनौती दो तो वह डराना बंद कर देंगी…
93 :- पसीने की स्याही से जो लिखते है अपने इरादों को, उनके मुक़द्दर के पन्ने कभी कोरे नहीं हुआ करते !!!
94 :- जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है ।
95 :- कठिन समय की चुनौती केवल धैर्य और हिम्मत से जीती जा सकती है !!!
96 :- अगर आप असफल होगें तो शायद आप निराश ही होगें लेकिन आप कोशिश ही नहीं करोगे तो आप गुनहगार होंगे…
97 :- छोटे छोटे परिवर्तन ही बड़े बदलाव की नींव रखते है !!!
98 :- क्यों डरे जिंदगी में क्या होगा? हर वक्त क्यों सोचे कि
बुरा होगा, बढ़ते रहें मंजिलों की और हम, कुछ भी न मिला तो क्या? तजुर्बा
तो नया होगा ।
99 :- सफलता साहस पूर्वक काम करने वाले के पास जाती है, यह कायरों के पास नहीं जाती है…
100 :- सामना करने से ही समस्याओं का समाधान मिलता है न कि उनसे भाग कर…
1
धर्म और विज्ञान
धर्म के बगैर विज्ञानऔर विज्ञान के बगैर धर्म व्यर्थ है। धर्म और विज्ञानं दोनों एक दूसरे से जुड़ने के बाद ही पूर्णता को प्राप्त करते है।दोनों को एक दूसरे का पूरक कहना सर्वथा उचित होगा। साथ भी की मनुष्य के लिए दोनों ही जरुरी है। धर्म मनुष्य को अंदर से सुन्दर बनाता है विज्ञान बाहर से। इस प्रकार दोनों का विवेकपूर्ण तालमेल मनुष्य को हर प्रकार से सुंदर बना सकता है और मानवता का कल्याण भी कर सकता है। धर्म और विज्ञान का समन्वय आवश्यक नहीं,अनिवार्य है। फर्क सिर्फ इतना है जहाँ धर्म आ जाता है वहाँ विज्ञान की आवश्यकता कम हो जाती है और जहाँ विज्ञान की मात्रा बढ़ जाती है वहाँ धर्म की आवश्यकता कम हो जाती है। मनुष्य के लिये धर्म और विज्ञान दोनों ही अलग अलग स्तर पर आवश्यक है। दोनों ही एक दूसरे को उपयोगी बनाने में भारी योगदान करते है। जितना सहयोग और आदान -प्रदान दोनों के बीच होता जायेगा उतनी उपयोगिता बढ़ती जाएगी।
धर्म और विज्ञान का परस्पर तालमेल जितना भारत में देखा जाता है,उतना और कही नहीं देखने को मिलता है। हमारे ऋषि मुनियो ने वर्षो पहले विज्ञान को धर्म के साथ न केवल जोड़ा बल्कि लोगो को इसके व्याहारिक ज्ञान के बारे में भी बताया। उनका मानना था की यदि विज्ञान को व्यवस्थित ढंग से संवारकर मनुष्य के कल्याण में लगाया जाये तो वह धर्म बन जाता है। यही वजह है की हमारे वेद,उपनिषद ,दर्शन आदि जितने ग्रन्थ है,उनमे विज्ञान पिरोया है।
हालाकि वर्तमान में समाज का एक वर्ग विज्ञान को चमत्कार और धर्म को आडम्बर समझने लगा है और उसका मानना है की विज्ञान और धर्म साथ -साथ नहीं रह सकते ,लेकिन सोचने वाली बात यह है की धर्म और विज्ञान दोनों का उद्देश्य मानवता का कल्याण करना है तो दोनों आपस विरोधी कैसे हो सकते है। तथ्य यह है की दोनों का स्वरूप और कार्य क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न है ,इसलिए वे एक दूसरे पर आधारित नहीं है। लेकिन दोनों ही एक दूसरे का समर्थन पाए बगेर अपनी उपयोगिता में कमी महसूस करते है। अलबर्ट आइंस्टीन ने तो यहाँ तक कह दिया की धर्म के बगैर विज्ञानं लंगड़ा है और विज्ञान के बगेर धर्म अँधा है। इस सम्बन्ध में स्वामी विवेकानंद का मानना था जहाँ पर विज्ञान खत्म होता है वहाँ से अध्यात्म आरम्भ होता है।
अजय सिंह "जे एस के "
धर्म और विज्ञान का परस्पर तालमेल जितना भारत में देखा जाता है,उतना और कही नहीं देखने को मिलता है। हमारे ऋषि मुनियो ने वर्षो पहले विज्ञान को धर्म के साथ न केवल जोड़ा बल्कि लोगो को इसके व्याहारिक ज्ञान के बारे में भी बताया। उनका मानना था की यदि विज्ञान को व्यवस्थित ढंग से संवारकर मनुष्य के कल्याण में लगाया जाये तो वह धर्म बन जाता है। यही वजह है की हमारे वेद,उपनिषद ,दर्शन आदि जितने ग्रन्थ है,उनमे विज्ञान पिरोया है।
हालाकि वर्तमान में समाज का एक वर्ग विज्ञान को चमत्कार और धर्म को आडम्बर समझने लगा है और उसका मानना है की विज्ञान और धर्म साथ -साथ नहीं रह सकते ,लेकिन सोचने वाली बात यह है की धर्म और विज्ञान दोनों का उद्देश्य मानवता का कल्याण करना है तो दोनों आपस विरोधी कैसे हो सकते है। तथ्य यह है की दोनों का स्वरूप और कार्य क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न है ,इसलिए वे एक दूसरे पर आधारित नहीं है। लेकिन दोनों ही एक दूसरे का समर्थन पाए बगेर अपनी उपयोगिता में कमी महसूस करते है। अलबर्ट आइंस्टीन ने तो यहाँ तक कह दिया की धर्म के बगैर विज्ञानं लंगड़ा है और विज्ञान के बगेर धर्म अँधा है। इस सम्बन्ध में स्वामी विवेकानंद का मानना था जहाँ पर विज्ञान खत्म होता है वहाँ से अध्यात्म आरम्भ होता है।
अजय सिंह "जे एस के "
Saturday, October 8, 2016
श्री कृष्ण जन्म का रहस्य:
श्री कृष्ण जन्म का रहस्य:
कृष्ण का जन्म होता है अँधेरी रात में, अमावस में। सभी का जन्म अँधेरी रात में होता है और अमावस में होता है।
असल में जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है कि अँधेरे में
ही हो सकती है। आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है, वे सब गहरे अंधकार
में, गहन अंधकार में होती है। एक कविता जन्मती है, तो मन के बहुत
अचेतन
अंधकार में जन्मती है। बहुत अनकांशस डार्कनेस में पैदा होती है। एक चित्र
का जन्म होता है, तो मन की बहुत अतल गहराइयों में जहाँ कोई रोशनी नहीं
पहुँचती जगत की, वहाँ होता है। समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता
है, तो सब गहन अंधकार में। गहन अंधकार से अर्थ है, जहाँ बुद्धि का प्रकाश
जरा भी नहीं पहुँचता। जहाँ सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता, हाथ को हाथ नहीं
सूझता है।
कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ
नहीं सूझ रहा था, इतना गहन अंधकार था। लेकिन इसमें विशेषता खोजने की जरूरत
नहीं है। यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है।
दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है- बंधन में जन्म होता
है, कारागृह में। किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? हम
सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से
मुक्त हो जाएँ, जरूरी नहीं है हो सकता है कि हम मरें भी कारागृह में। जन्म
एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ
जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो
कारागृह में ही जन्म लेती है।
कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि
जन्म के साथ ही उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? जन्म के साथ
ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद - एक पल बाद भी मृत्यु
घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत
घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त
जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही
योग्य हो जाता है, जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और
कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए।
लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ एक चौथी बात भी जुड़ी है कि मरने
की बहुत तरह की घटनाएँ आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। जो भी
उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है।
मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं, जिस
दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है।
वे सब रूपों की कथाएँ हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत
घेरती है और हार जाती है। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम
गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है
कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती
है।
मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है। जिन-जिन ने चाहा है,
जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएँ, वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और
कृष्ण जीए ही चले जाते हैं। लेकिन ये बातें इतनी सीधी, जैसा मैं कह रहा
हूँ, कही नहीं गई हैं। इतने सीधे कहने का पुराने आदमी के पास कोई उपाय नहीं
था। इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।
जितना पुरानी दुनिया में हम वापस लौटेंगे, उतना ही चिंतन का
जो ढंग है, वह पिक्चोरियल होता है, चित्रात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं
होता। अभी भी रात आप सपना देखते हैं, कभी आपने खयाल किया कि सपनों में
शब्दों का उपयोग करते हैं कि चित्रों का?
सपने में शब्दों का उपयोग नहीं होता, चित्रों का उपयोग होता
है। क्योंकि सपने हमारे आदिम भाषा हैं, प्रिमिटिव लैंग्वेज हैं। सपने के
मामले में हममें और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा
है। सपने अभी भी पुराने हैं, प्रिमिटिव हैं, अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो
पाया। अभी भी सपने तो वही हैं जो दस हजार साल, दस साल पुराने थे। गुहा-मानव
ने एक गुफा में सोकर रात में जो सपने देखे होंगे, वही एयरकंडीशंड मकान में
भी देखे जाते हैं। उससे कोई और फर्क नहीं पड़ा है। सपने की खूबी है कि उसकी
सारी अभिव्यक्ति चित्रों में है।
जितना पुरानी दुनिया में हम लौटेंगे- और कृष्ण बहुत पुराने
हैं, इन अर्थों में पुराने हैं कि आदमी जब चिंतन शुरू कर रहा है, आदमी जब
सोच रहा है जगत और जीवन के बाबत, अभी जब शब्द नहीं बने हैं और जब प्रतीकों
में और चित्रों में सारा का सारा कहा जाता है और समझा जाता है, तब कृष्ण के
जीवन की घटनाएँ लिखी गई हैं। उन घटनाओं को डीकोड करना पड़ता है। उन घटनाओं
को चित्रों से तोड़कर शब्दों में लाना पड़ता है। और कृष्ण शब्द को भी थोड़ा
समझना जरूरी है।
कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता
है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश का केंद्र।
कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो केंद्रीय
चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है,
क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है। वह सेंटर ऑफ
ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिँचती हैं और आकृष्ट होती हैं।
शरीर खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिँचकर उसके
आसपास निर्मित होता है, समाज खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत
खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है,
आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है। तो जब भी कोई
व्यक्ति जन्मता है, तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है वह जो बिंदु है
आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास
निर्मित होनी शुरू होती हैं। उस कृष्ण बिंदु के आसपास क्रिस्टलाइजेशन शुरू
होता है और व्यक्तित्व निर्मित होता है। इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति
विशेष का जन्म मात्र नहीं है, बल्कि व्यक्ति मात्र का जन्म है।
कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के
व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो प्रत्येक आत्मा के जन्म के
साथ समाहित है। महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा
काव्यात्मक हो जाती है। पीछे लौटकर निर्मित होती है।
पीछे लौटकर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और
दूसरे अर्थ ले लेती है। जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे। और
फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी
बार-बार लिखती है।
हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारों लोग लिखते हैं तो हजार
व्याख्याएँ होती चली जाती हैं। फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसी व्यक्ति
की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्था हो जाते हैं, एक इंस्टीट्यूट हो
जाते हैं। फिर वे समस्त जन्मों का सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र के
जन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है। इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में
मैं कोई मूल्य नहीं मानता हूँ। कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं
जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड के प्रतीक
हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं, वे सब उनमें
समाहित हो जाते हैं।
अजय सिंह "जे एस के "
गुरु महिमा
*एक शिष्य ने बहुत प्यारी बात कही:---*
*गुरूजी,*
*जब आप हमारी 'शंका' दूर करते हैँ तब आप "शंकर" लगते हैँ*
*जब 'मोह' दूर करते हैँ तो "मोहन" लगते हैँ*
*जब 'विष' दूर करते हैँ तो "विष्णु " लगते हैँ*
*जब 'भ्रम' दूर करते हैँ तो "ब्रह्मा" लगते हैँ*
*जब 'दुर्गति' दूर करते हैँ तो "दुर्गा" लगते हैँ*
*जब 'गरूर' दूर करते हैँ तो "गुरूजी" लगते हैँ*
*इसीलिए तो कहा है।*
*|| गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु*
*गुरुर्देवो महेश्वरा*
*गुरु साक्षात् परब्रम्ह*
*तस्मे श्री गुरुवे नमः।।*
*गुरुर्देवो महेश्वरा*
*गुरु साक्षात् परब्रम्ह*
*तस्मे श्री गुरुवे नमः।।*
।।प्रसिद्घ भारतीय गुर और शिष्य ।।
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गुरु का नाम - शिष्य का नाम
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बृहस्पति समस्त देवगण
शुक्राचार्य समस्त असुर
वशिष्ठ दशरथ एवं श्रीरामजी
संदीपनी श्रीकृष्ण व बलराम
द्रोणाचार्य कौरव एवं पांडव
चाणक्य चन्द्रगुप्त
कुमारिलभट्ट मंडनमिश्र
गोविन्दपाद आद्यशंकराचार्य
समर्थरामदास शिवाजी
नानकदेव समस्त सिख
रामकृष्णपरमहंस विवेकानन्द
स्वामीविरजानन्द दयानन्दसरस्वती
स्वामीविद्यारण्य हरिहरबुक्क
जनार्दनस्वामी एकनाथमहाराज
नरहरिदास तुलसीदास
वल्लभाचार्य सूरदास
धन्य है वो लोग जो गुरु के संपर्क मे है तथा उनके सानिध्य में जीवन मे कुछ ज्ञान और शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला।
गुरु शब्द और गुरु का जीवन समुद्र की गहराई है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
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गुरु का नाम - शिष्य का नाम
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बृहस्पति समस्त देवगण
शुक्राचार्य समस्त असुर
वशिष्ठ दशरथ एवं श्रीरामजी
संदीपनी श्रीकृष्ण व बलराम
द्रोणाचार्य कौरव एवं पांडव
चाणक्य चन्द्रगुप्त
कुमारिलभट्ट मंडनमिश्र
गोविन्दपाद आद्यशंकराचार्य
समर्थरामदास शिवाजी
नानकदेव समस्त सिख
रामकृष्णपरमहंस विवेकानन्द
स्वामीविरजानन्द दयानन्दसरस्वती
स्वामीविद्यारण्य हरिहरबुक्क
जनार्दनस्वामी एकनाथमहाराज
नरहरिदास तुलसीदास
वल्लभाचार्य सूरदास
धन्य है वो लोग जो गुरु के संपर्क मे है तथा उनके सानिध्य में जीवन मे कुछ ज्ञान और शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला।
गुरु शब्द और गुरु का जीवन समुद्र की गहराई है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
"सब धरती कागज करूँ
लिखनी सब वनराय
सात समुंदर मसि करूँ
गुरु गुण लिखा ना जाये"
लिखनी सब वनराय
सात समुंदर मसि करूँ
गुरु गुण लिखा ना जाये"
गुरु का महत्व -
सात द्वीप नौ खंड में
गुरु से बड़ा ना कोय ।
करता करे न कर सके
गुरु करे सो होय ।
गुरु का हाथ पकड़ने की बजाय अपना हाथ गुरु को पकड़ा दो
क्योंकि हम गुरु का हाथ गलती से छोड़ सकते हैं, किन्तु........
गुरु हाथ पकड़ेंगे तो कभी नहीं छोड़ेंगे
सात द्वीप नौ खंड में
गुरु से बड़ा ना कोय ।
करता करे न कर सके
गुरु करे सो होय ।
गुरु का हाथ पकड़ने की बजाय अपना हाथ गुरु को पकड़ा दो
क्योंकि हम गुरु का हाथ गलती से छोड़ सकते हैं, किन्तु........
गुरु हाथ पकड़ेंगे तो कभी नहीं छोड़ेंगे
गुरु ही ब्रम्हा गुरु ही विष्णु गुरु देवो महेश्वरः ।।
गुरु ही साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः ।।
गुरु ही साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः ।।
गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है , गुरु ही हमें सही राह दिखाते है ।
इसलिए हमें गुरु की हर आज्ञा का पालन करना चाहिए ।।
प्रभु श्रीराम एवं श्री कृष्ण को भी गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करना पड़ी थी।
गुरु भक्ति के कई उदाहरण
हमारे ग्रंथों में हैं ।।
।।�जय हो गुरु देव।।
इसलिए हमें गुरु की हर आज्ञा का पालन करना चाहिए ।।
प्रभु श्रीराम एवं श्री कृष्ण को भी गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करना पड़ी थी।
गुरु भक्ति के कई उदाहरण
हमारे ग्रंथों में हैं ।।
।।�जय हो गुरु देव।।
रामचरित मानस के रामबाण
रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे।
1. रक्षा के लिए
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
3. सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
4. सब काम बनाने के लिए
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
5. वश मे करने के लिए
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||
अपने वश कर राखे राम ||
6. संकट से बचने के लिए
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
7. विघ्न विनाश के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
8. रोग विनाश के लिए
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
9. ज्वार ताप दूर करने के लिए
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
10. दुःख नाश के लिए
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
11. खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12. अनुराग बढाने के लिए
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
13. घर मे सुख लाने के लिए
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14. सुधार करने के लिए
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
15. विद्या पाने के लिए
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||
अल्प काल विधा सब आई ||
16. सरस्वती निवास के लिए
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17. निर्मल बुद्धि के लिए
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18. मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19. प्रेम बढाने के लिए
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20. प्रीति बढाने के लिए
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
22. भाई का प्रेम पाने के लिए
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||
राम चरण रति अति अधिकाई ||
23. बैर दूर करने के लिए
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||
राम प्रताप विषमता खोई ||
24. मेल कराने के लिए
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25. शत्रु नाश के लिए
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26. रोजगार पाने के लिए
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||
ताकर नाम भरत अस होई ||
27. इच्छा पूरी करने के लिए
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28. पाप विनाश के लिए
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29. अल्प मृत्यु न होने के लिए
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
30. दरिद्रता दूर के लिए
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
31. प्रभु दर्शन पाने के लिए
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32. शोक दूर करने के लिए
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33. क्षमा माँगने के लिए
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
Sunday, August 14, 2016
भगवन को कैसे भजें
एक बार तुलसीदास जी से किसी ने पूछा :- कभी-कभी भक्ति करने को मन नहीं करता फिर भी नाम जपने के लिये बैठ जाते है, क्या उसका भी कोई फल मिलता है ?
तुलसी दास जी ने मुस्करा कर कहा-
तुलसी मेरे राम को
रीझ भजो या खीज ।
भौम पड़ा जामे सभी
उल्टा सीधा बीज ॥
तुलसी मेरे राम को
रीझ भजो या खीज ।
भौम पड़ा जामे सभी
उल्टा सीधा बीज ॥
अर्थात् :
भूमि में जब बीज बोये जाते हैं तो यह नहीं देखा जाता कि बीज
उल्टे पड़े हैं या सीधे पर फिर भी कालांतर में फसल बन जाती है, इसी प्रकार
नाम सुमिरन कैसेभी किया जाये उसके सुमिरन
का फल अवश्य ही मिलता है जी ।
जीवन में सफल होने के लिए महत्व पूर्ण समझ
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम् ।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ।।१।।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ।।१।।
श्रवण करने से धर्मं का ज्ञान होता है, द्वेष दूर होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया की आसक्ति से मुक्ति होती है.
पक्षिणां काकचाण्डालः पशूनां चैव कुक्कुरः ।
मुनीनां पापी चाण्डालः सर्वचाण्डालनिन्दकः ।।२।।
मुनीनां पापी चाण्डालः सर्वचाण्डालनिन्दकः ।।२।।
पक्षीयों में कौवा नीच है. पशुओ में कुत्ता नीच है. जो
तपस्वी पाप करता है वो घिनौना है. लेकिन जो दूसरो की निंदा करता है वह सबसे
बड़ा चांडाल है.
भस्मना शुध्यते कांस्यं ताम्रमम्लेन शुध्यति ।
रजसा शुध्यते नारि नदी वेगेन शुध्यति ।।३।।
रजसा शुध्यते नारि नदी वेगेन शुध्यति ।।३।।
राख से घिसने पर पीतल चमकता है . ताम्बा इमली से साफ़ होता है. औरते प्रदर से शुद्ध होती है. नदी बहती रहे तो साफ़ रहती है.
भ्रमन्संपूज्यते राजा भ्रमन्संपूज्यते द्विजः ।
भ्रमन्संपूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनश्यति ।।४।।
राजा, ब्राह्मण और तपस्वी योगी जब दुसरे देश जाते है, तो आदर पाते है. लेकिन औरत यदि भटक जाती है तो बर्बाद हो जाती है.भ्रमन्संपूज्यते योगी स्त्री भ्रमन्ती विनश्यति ।।४।।
यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यर्थास्तस्य बांधवाः ।
यस्याथाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः सच पण्डितः ।।५।।
यस्याथाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः सच पण्डितः ।।५।।
धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते है. उसके कई सम्बन्धी भी
होते है. धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कह कर
नवाजा जाता है.
तादृशी जायते बुध्दिर्व्यवसायोऽपि तादृशः ।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ।।६।।
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ।।६।।
सर्व शक्तिमान के इच्छा से ही बुद्धि काम करती है, वही कर्मो
को नियंत्रीत करता है. उसी की इच्छा से आस पास में मदद करने वाले आ जाते
है.
कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः ।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ।।७।।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ।।७।।
काल सभी जीवो को निपुणता प्रदान करता है. वही सभी जीवो का
संहार भी करता है. वह जागता रहता है जब सब सो जाते है. काल को कोई जीत नहीं
सकता.
नैव पश्यति जन्माधः कामान्धो नैव पश्यति ।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति ।।८।।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति ।।८।।
जो जन्म से अंध है वो देख नहीं सकते. उसी तरह जो वासना के
अधीन है वो भी देख नहीं सकते. अहंकारी व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं लगता की वह
कुछ बुरा कर रहा है. और जो पैसे के पीछे पड़े है उनको उनके कर्मो में कोई
पाप दिखाई नहीं देता.
स्वयं कर्म करोत्यत्मा स्वयं तत्फलमश्नुते ।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते ।।९।।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते ।।९।।
जीवात्मा अपने कर्म के मार्ग से जाता है. और जो भी भले बुरे
परिणाम कर्मो के आते है उन्हंं भोगता है. अपने ही कर्मो से वह संसार में
बंधता है और अपने ही कर्मो से बन्धनों से छूटता है.
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः ।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा ।।१०।।
राजा को उसके नागरिको के पाप लगते है. राजा के यहाँ काम करने
वाले पुजारी को राजा के पाप लगते है. पति को पत्नी के पाप लगते है. गुरु को
उसके शिष्यों के पाप लगते है.
ऋणकर्ता पिता शत्रुमाता च व्यभिचारिणी ।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ।।११।।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्रः शत्रुरपण्डितः ।।११।।
अपने ही घर में व्यक्ति के ये शत्रु हो सकते है...
उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है.उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है.
सुन्दर पत्नी वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की.
उसका बाप यदि वह हरदम कर्ज में डूबा रहता है.उसकी माँ यदि वह दुसरे पुरुष से संग करती है.
सुन्दर पत्नी वह लड़का जिसने शिक्षा प्राप्त नहीं की.
लुब्धमर्थेन गृहिणीयात् स्तब्धमञ्जलिकर्मणा ।
मूर्खं छन्दानुवृत्या च यथार्थत्वेन पण्डितम् ।।१२।।
मूर्खं छन्दानुवृत्या च यथार्थत्वेन पण्डितम् ।।१२।।
एक लालची आदमी को भेट वास्तु दे कर संतुष्ट करे. एक कठोर
आदमी को हाथ जोड़कर संतुष्ट करे. एक मुर्ख को सम्मान देकर संतुष्ट करे. एक
विद्वान् आदमी को सच बोलकर संतुष्ट करे.
वरं न राज्यं न कुराजराज्यं
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो
वरं न दारा न कुदारदाराः ।।१३।।
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो
वरं न दारा न कुदारदाराः ।।१३।।
एक बेकार राज्य का राजा होने से यह बेहतर है की व्यक्ति किसी राज्य का राजा ना हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.
एक पापी का मित्र होने से बेहतर है की बिना मित्र का हो.
एक मुर्ख का गुरु होने से बेहतर है की बिना शिष्य वाला हो.
एक बुरीं पत्नी होने से बेहतर है की बिना पत्नी वाला हो.
कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं
कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिर्वृतिः ।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः
कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः ।।१४।।
कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिर्वृतिः ।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः
कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः ।।१४।।
एक बेकार राज्य में लोग सुखी कैसे हो? एक पापी से किसी शान्ति
की प्राप्ति कैसे हो? एक बुरी पत्नी के साथ घर में कौनसा सुख प्राप्त हो
सकता है. एक नालायक शिष्य को शिक्षा देकर कैसे कीर्ति प्राप्त हो?
सिंहादेकं वकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् ।
वायसात्पञ्च शिक्षेच्चष्ट् शुनस्त्रीणिगर्दभात् ।।१५।।
वायसात्पञ्च शिक्षेच्चष्ट् शुनस्त्रीणिगर्दभात् ।।१५।।
शेर से एक बात सीखे. बगुले से एक. मुर्गे से चार. कौवे से पाच. कुत्ते से छह. और गधे से तीन.
प्रभूतं कार्यमपि वा तन्नरः कर्तुमिच्छति ।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते ।।१६।।
सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते ।।१६।।
शेर से यह बढ़िया बात सीखे की आप जो भी करना चाहते हो एकदिली से और जबरदस्त प्रयास से करे
इन्द्रियाणि च संयम्य वकवत् पण्डितो नरः ।
देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।।१७।।
देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।।१७।।
. बुद्धिमान व्यक्ति अपने इन्द्रियों को बगुले की तरह वश में
करते हुए अपने लक्ष्य को जगह, समय और योग्यता का पूरा ध्यान रखते हुए पूर्ण
करे.
प्रत्युत्थानञ्च युध्द्ञ्च संविभागञ्च बन्धुषु ।
स्वयमाक्रम्यभुक्तञ्चशिक्षेच् चत्वारिकुक्कुटात् ।।१८।।
स्वयमाक्रम्यभुक्तञ्चशिक्षेच्
. मुर्गे से हे चार बाते सीखे...
१. सही समय पर उठे. २. नीडर बने और लढ़े. ३. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. ४. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे.
१. सही समय पर उठे. २. नीडर बने और लढ़े. ३. संपत्ति का रिश्तेदारों से उचित बटवारा करे. ४. अपने कष्ट से अपना रोजगार प्राप्त करे.
गूढमैथुनचारित्वं काले काले च संग्रहम् ।
अप्रमत्तमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात् ।।१९।।
अप्रमत्तमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात् ।।१९।।
. कौवे से ये पाच बाते सीखे... १. अपनी पत्नी के साथ एकांत
में प्रणय करे. २. नीडरता ३. उपयोगी वस्तुओ का संचय करे. ४. सभी ओर दृष्टी
घुमाये. ५. दुसरो पर आसानी से विश्वास ना करे.
बह्वाशी स्वल्पसन्तुष्टः सनिद्रो लघुचेतनः ।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेतो श्वानतोगुणाः ।।२०।।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेतो श्वानतोगुणाः ।।२०।।
. कुत्ते से ये बाते सीखे १. बहुत भूख हो पर खाने को कुछ ना
मिले या कम मिले तो भी संतोष करे. २. गाढ़ी नींद में हो तो भी क्षण में उठ
जाए. ३. अपने स्वामी के प्रति बेहिचक इमानदारी रखे ४.
सुश्रान्तोऽपि वहेत भारं शीतोष्णं न च पश्यति ।
सन्तुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।।२१।।
सन्तुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात् ।।२१।।
गधे से ये तीन बाते सीखे. १. अपना बोझा ढोना ना छोड़े. २. सर्दी गर्मी की चिंता ना करे. ३. सदा संतुष्ट
एतान् विंशतिगुणानाचरिष्यति मानवः ।
कार्यावस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ।।२२।।
कार्यावस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ।।२२।।
जो व्यक्ति इन गुणों पर अमल करेगा वह जो भी करेगा सफल होगा.
अजय सिंह
Life after 55
Life can begin at 55, it is all in your hands! Many people
feel unhappy, health-wise and security-wise, after 60 years of age,
owing to the diminishing importance given to them and their opinions.
But, it need not be so, if only we understand the basic principles of
life and follow them scrupulously.
Here are ten mantras to age gracefully and make life after retirement pleasant.
1. *Never say I am aged' :*
There are three ages, chronological, biological, and
psychological. The first is calculated based on our date of birth; the
second is determined by the health conditions; the third is how old we
feel we are.
While we don't have control over the first, we can take
care of our health with good diet, exercise and a cheerful attitude. A
positive attitude and optimistic thinking can reverse the third age.
2. *Health is wealth:*
If you really love your kith and kin, taking care of your health should be your priority.
Thus, you will not be a burden to them. Have an annual
health check-up and take the prescribed medicines regularly. Do take
health insurance coverage.
3. *Money is important:*
Money is essential for meeting the basic necessities of
life, keeping good health and earning family respect and security. Don't
spend beyond your means even for your children. You have lived for them
all through and it is time you enjoyed a harmonious life with your
spouse. If your children are grateful and they take care of you, you are
blessed. But, never take it for granted.
4. *Relaxation and recreation:*
The most relaxing and recreating forces are a healthy
religious attitude, good sleep, music and laughter. Have faith in God,
learn to sleep well, love good music and see the funny side of life.
5. *Time is precious:*
It is almost like holding a horses' reins. When they are in
your hands, you can control them. Imagine that everyday you are born
again.
Yesterday is a cancelled cheque.
Tomorrow is a promissory note. Today is ready cash - use it
profitably. Live this moment; live it fully, now, in the present time.
6. *Change is the only permanent thing:*
We should accept change - it is inevitable. The only way to
make sense out of change is to join in the dance. Change has brought
about many pleasant things. We should be happy that our children are
blessed.
7. *Enlightened selfishness:*
All of us are basically selfish. Whatever we do, we expect
something in return. We should definitely be grateful to those who stood
by us. But, our focus should be on the internal satisfaction and the
happiness we derive by doing good for others, without expecting anything
in return. Perform a random act of kindness daily.
8. *Forget and forgive:*
Don't be bothered too much about others' mistakes. We are
not spiritual enough to show our other cheek when we are slapped in one.
But for the sake of our own health and happiness, let us forgive and
forget them. Otherwise, we will be only increasing our blood pressure.
9. *Everything has a purpose:*
Take life as it comes. Accept yourself as you are and also
accept others for what they are. Everybody is unique and is right in his
own way.
10. *Overcome the fear of death:*
We all know that one day we have to leave this world. Still
we are afraid of death. We think that our spouse and children will be
unable to withstand our loss. But the truth is no one is going to die
for you; they may be depressed for some time. Time heals everything and
they will go on.
अजय सिंह
गुरु की महिमा
गुरु की महिमा
हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते हैं तो भगवान से कहते हैं..
प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था.आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था.
"सुमिरि पवनसुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू"
हनुमान्जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है,
प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला हूँ.
भगवान बोले कैसे ?
हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है.
आपको पता है जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मैं संजीवनी लेने गया पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया.
"जौ मोरे मन बच अरू काया,
प्रीति राम पद कमल अमाया"
तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,
जौ मो पर रघुपति अनुकूला
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा,
कहि जय जयति कोसलाधीसा"
प्रीति राम पद कमल अमाया"
तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला,
जौ मो पर रघुपति अनुकूला
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा,
कहि जय जयति कोसलाधीसा"
यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा
निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और
पीड़ा से रहित हो जाए.
यह वचन सुनते हुई मै श्री राम, जय राम, जय-जय राम कहता हुआ उठ बैठा. मै नाम तो लेता हूँ पर भरोसा भरत जी जैसा नहीं किया, वरना मै संजीवनी लेने क्यों जाता,
बस ऐसा ही हम करते हैं हम नाम तो भगवान का लेते है पर भरोसा नहीं करते,
बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, बेटे ने नहीं की तो क्या होगा?
उस समय हम भूल जाते हैं कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे हैं वे हैं न, पर हम भरोसा नहीं करते.
बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते हैं...
2. - दूसरी बात, प्रभु!
बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योंकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ. मेरा दूसरा अभिमान टूट गया,
इसी तरह हम भी यही सोच लेते हैं कि गृहस्थी के बोझ को मैं उठाये हुए हूँ,
3. - फिर हनुमान जी कहते हैं -
और एक बात प्रभु ! आपके तरकस में भी ऐसा बाण नहीं है जैसे बाण भरत जी के पास हैं...
आपने सुबाहु मारीच को बाण से बहुत दूर गिरा दिया, आपका बाण तो आपसे दूर गिरा देता है, पर भरत जी का बाण तो आपके चरणों में ला देता है. मुझे बाण पर बैठाकर आपके पास भेज दिया.
भगवान बोले - हनुमान जब मैंने ताडका को मारा और भी राक्षसों को मारा तो वे सब मरकर मुक्त होकर मेरे ही पास तो आये...
इस पर हनुमान जी बोले -- प्रभु आपका बाण तो मारने के बाद सबको
आपके पास लाता है पर भरत जी का बाण तो जिन्दा ही भगवान के पास ले आता है.
भरत जी संत है और संत का बाण क्या है? संत का बाण है उसकी वाणी
लेकिन हम करते क्या हैं?? हम संत वाणी को समझते तो हैं पर सटकते नहीं हैं, और औषधि सटकने पर ही फायदा करती है.
4. - हनुमान जी को भरत जी ने पर्वत सहित अपने बाण पर बैठाया तो उस समय हनुमान जी को थोडा अभिमान हो गया कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा ?
परन्तु जब उन्होंने रामचंद्र जी के प्रभाव पर विचार किया तो वे भरत जी के चरणों की वंदना करके चले हैं..
इसी तरह हम भी कभी-कभी संतो पर संदेह करते हैं, कि ये हमें कैसे भगवान तक पहुँचा देंगे, संत ही तो हैं जो हमें सोते से जगाते हैं जैसे हनुमान जी को जगाया, क्योंकि उनका मन,वचन,कर्म सब भगवान में लगा है.
आप उन पर भरोसा तो करोll
जय श्री राम
अजय सिंह
Tuesday, May 17, 2016
आज के अष्टांगिक मार्ग
मित्रों ,
पिछले ढाई हजार वर्षो में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन बुद्ध ने जो वचन कहे थे ,वह आज भी प्रासंगिक है। कारण हमारी समस्याऍ ,हमारे दुःख तो वही है बस उनका रूप बदल गया है। बुद्ध के समय में शान्ति पूर्ण और मैत्री पूर्ण होने की जितनी जरुरत थी उतनी ही आज भी है। बुद्ध ने दुःख से मुक्ति के आठ रास्ते (अष्टांगिक मार्ग ) बताये थे ,ताकि हमारा जीवन शांति पूर्ण और आनन्दित हो सके।
सम्यक दृष्टि :जीवन की हर घटना को देखने की दृष्टि सकारात्मक है या नकारात्मक। इसी पर निश्चित होता है की हमारा जीवन कैसा होगा। हम तथ्यों को स्वीकार करने की जगह हर घटना के साथ एक कहानी गढ़ लेते है। बुद्ध कहते है ,सम्यक दृष्टि वाही है जो कथाओं से मुक्त हो और घटना को सकारात्मक होकर देखती हो।
सम्यक जागृति :झगड़ते समय हम यह ही सोंचते है की हम ठीक है और दूसरे गलत। हम अपने को सही सिद्ध करना चाहते है। हम बदला लेने में भी विश्वास रखते है। जबकि क्षमा एक बेहतर विकल्प है। अतीत से सबक लेकर उसे भूल जाना ही सही है। यही सम्यक जाग्रति है।
सम्यक कर्म: बुद्ध कहते है हर एक व्यक्ति अतुलनीय है। व्यक्ति के असाधारण गुणों में रंगत लाने के लिए किये गए हर काम को उन्होंने सम्यक कर्म माना है। हमारा जीवन असाधारण इस लिए नहीं बन पाया है की हम अपनी असफलताओं को स्वीकार नहीं करते। यदि हम कारण बताने ,तर्क देने और भाग्य अथवा किसी और को दोष देने के बजाय अपनी असफलताओं को स्वीकारना सिख ले तो हमारा जीवन स्वयं ही सम्यक कर्म बन जायेगा।
मधुर सम्बंध :बुध का सन्देश है की शांति और स्थिरता के बीज बोएं सम्बन्धों में मिठास के रंग भरे। कुछ भी कहने -करने से पहले यदि आप विचलित अनुभव करते है तो उस समय कुछ न करे । लेकिन यदि आप शांत अनुभव करते है तब अवश्य ही कुछ करें। साथी कर्मचारिओं और मित्रो के साथ पूरे सम्मान व विश्वास के साथ सहयोग करे।
सम्यक वाणी व शील : हर किसी के साथ विनम्र व शीलवान रहिये। विनम्रता और सम्वेदना आधुनिक जीवन को शीलवान बना सकते है।
सम्यक संकल्प : बुद्ध कहते है ,जीवन को दिशा देने के लिए संकल्प अनिवार्य है। हर क्षेत्र में विकास के लिए दृढ संकल्प चाहिए। हमें विचार करना होगा की आखिर हम चाहते क्या है। इसके लिए अतीत से मुक्त होकर वर्तमान में जीना और अपनी शक्ति सामर्थ्य ,साहस और परिस्थितियों का अवलोकन जरुरी है। इसके बाद ही कोई निर्णय ले अथवा लक्ष्य निर्धारित करे। फिर संकल्प की घोषणा करे।
सम्यक ध्यान व समाधि :बौद्ध उपदेश में ध्यान को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। बुध ने कहा है जागरूक होकर आनंद पाना "सम्यक समाधि' है। ध्यान पूर्ण जागरूकता की अवस्था है। जब हम अपनी आती जाती साँस ,क्रोध अशांति ,क्षोभ तनाव के प्रति जागरूक होते है ,तब हम पूर्ण जागरूकता की अवस्था में होते है।
सम्यक स्वीकार :जो हुआ अच्छा हुआ। जो है वह अच्छा है जो होगा अच्छा होगा। यह भाव है सम्यक स्वीकार। पूरी लगन निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम करे लेकिन परिणाम जो भी है बिना किसी झिझक के स्वीकार करे। श्री कृष्ण का निष्काम योग कहता है हमारा अधिकार केवल कर्म पर है अतः अपने उद्देश्य और संकल्प पूर्ति के लिए लगातार अपना प्रयास जारी रखना चाहिये। यही सफलता का मूल मंत्र है।
अंत में
प्रसन्न व्यक्ति वह है जो निरन्तर स्वयं का मूल्यांकन करता है और दुखी व्यक्ति वह जो सदैव दूसरों का मूल्यांकन करता है।
Saturday, April 30, 2016
सफलता के लिये गीता के नौ सूत्र
सूत्र नं० 1
श्लोक-
योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थ-
हे धनंजय (अर्जुन)। कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, यश-अपयश के
विषय में समबुद्धि होकर योगयुक्त होकर, कर्म कर, (क्योंकि) समत्व को ही
योग कहते हैं।
सूत्र –
धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य। धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ
कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं। हमारे ग्रंथों
ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा
करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। बुद्धि को
सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर
मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। मन में शांति होगी तो परमात्मा से
आपका योग आसानी से होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का
नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है।
उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में
उससे ज्यादा हानि उठाते हैं।
सूत्र नं० 2
श्लोक-
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।
अर्थ-
योगरहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके
मन में भावना भी नहीं होती। ऐसे भावनारहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और
जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा।
सूत्र –
हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसे सुख प्राप्त हो, इसके लिए
वह भटकता रहता है, लेकिन सुख का मूल तो उसके अपने मन में स्थित होता है।
जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में लिप्त है, उसके
मन में भावना ( आत्मज्ञान) नहीं होती। और जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं
होती, उसे किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिलती और जिसके मन में शांति न हो,
उसे सुख कहां से प्राप्त होगा। अत: सुख प्राप्त करने के लिए मन पर
नियंत्रण होना बहुत आवश्यक है।
सूत्र नं० 3
विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:।
निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।।
अर्थ-
जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर ममता रहित और
अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति प्राप्त
होती है।
सूत्र –
यहां भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन में किसी भी प्रकार की
इच्छा व कामना को रखकर मनुष्य को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए शांति
प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने मन से इच्छाओं को मिटाना
होगा। हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ अपने अपेक्षित परिणाम को साथ में
चिपका देते हैं। अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें कमजोर कर देती है। वो
ना हो तो व्यक्ति का मन और ज्यादा अशांत हो जाता है। मन से ममता अथवा
अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा।
तभी मनुष्य को शांति प्राप्त होगी।
सूत्र नं० 4
श्लोक-
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यश: कर्म सर्व प्रकृतिजैर्गुणै:।।
अर्थ-
कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी
प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म
करवाती है और उसके परिणाम भी देती है।
सूत्र –
बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं
करेंगे, तो ये हमारी मूर्खता है। खाली बैठे रहना भी एक तरह का कर्म ही है,
जिसका परिणाम हमारी आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रुप में मिलता है।
सारे जीव प्रकृति यानी परमात्मा के अधीन हैं, वो हमसे अपने अनुसार कर्म
करवा ही लेगी। और उसका परिणाम भी मिलेगा ही। इसलिए कभी भी कर्म के प्रति
उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म
करते रहना चाहिए।
सूत्र नं० 5
श्लोक-
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।
अर्थ-
तू शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म कर,
क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से
तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
सूत्र-
श्रीकृष्ण अर्जुन को माध्यम से मनुष्यों को समझाते हैं कि हर
मनुष्य को अपने-अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए जैसे- विद्यार्थी का
धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना। जो लोग
कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो अपने धर्म के अनुसार कर्म
करते हैं, क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण करना भी संभव नहीं
है। जिस व्यक्ति का जो कर्तव्य तय है, उसे वो पूरा करना ही चाहिए।
सूत्र नं० 6
श्लोक-
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अर्थ-
श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, सामान्य पुरुष भी वैसा ही
आचरण करने लगते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जिस कर्म को करता है, उसी को आदर्श
मानकर लोग उसका अनुसरण करते हैं।
सूत्र-
यहां भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि श्रेष्ठ पुरुष को सदैव
अपने पद व गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वह जिस प्रकार
का व्यवहार करेगा, सामान्य मनुष्य भी उसी की नकल करेंगे। जो कार्य श्रेष्ठ
पुरुष करेगा, सामान्यजन उसी को अपना आदर्श मानेंगे। उदाहरण के तौर पर अगर
किसी संस्थान में उच्च अधिकार पूरी मेहनत और निष्ठा से काम करते हैं तो
वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही काम करेंगे, लेकिन अगर उच्च अधिकारी काम
को टालने लगेंगे तो कर्मचारी उनसे भी ज्यादा आलसी हो जाएंगे।
सूत्र नं० 7
श्लोक-
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्म संगिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्त: समाचरन्।।
अर्थ-
ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों
की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे किंतु स्वयं
परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ
उनसे भी वैसे ही करावे।
सूत्र –
ये प्रतिस्पर्धा का दौर है, यहां हर कोई आगे निकलना चाहता है।
ऐसे में अक्सर संस्थानों में ये होता है कि कुछ चतुर लोग अपना काम तो पूरा
कर लेते हैं, लेकिन अपने साथी को उसी काम को टालने के लिए प्रोत्साहित
करते हैं या काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भर देते हैं।
श्रेष्ठ व्यक्ति वही होता है जो अपने काम से दूसरों के लिए प्रेरणा का
स्रोत बनता है। संस्थान में उसी का भविष्य सबसे ज्यादा उज्जवल भी होता है।
सूत्र नं० 8
श्लोक- ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या पार्थ सर्वश:।।
अर्थ-
हे अर्जुन। जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है यानी जिस इच्छा
से मेरा स्मरण करता है, उसी के अनुरूप मैं उसे फल प्रदान करता हूं। सभी
लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।
सूत्र-
इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि संसार
में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के प्रति करता है, दूसरे भी उसी प्रकार
का व्यवहार उसके साथ करते हैं। उदाहरण के तौर पर जो लोग भगवान का स्मरण
मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो
किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करते हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु
कृपा से पूर्ण हो जाती है। कंस ने सदैव भगवान को मृत्यु के रूप में स्मरण
किया। इसलिए भगवान ने उसे मृत्यु प्रदान की। हमें परमात्मा को वैसे ही याद
करना चाहिए जिस रुप में हम उसे पाना चाहते हैं।
सूत्र नं० 9
श्लोक-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
अर्थ-
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने
में तेरा अधिकार है। उसके फलों के विषय में मत सोच। इसलिए तू कर्मों के फल
का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर।
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से अर्जुन से कहना चाहते
हैं कि मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा व
ईमानदारी से करना चाहिए। यदि कर्म करते समय फल की इच्छा मन में होगी तो आप
पूर्ण निष्ठा से साथ वह कर्म नहीं कर पाओगे। निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ
परिणाम देता है। इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकार अपना काम करते
रहो। फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो
क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है।
फिल्मों के 12 संवाद जो आपको हिम्मत नहीं हारने देंगे
फिल्मों के 12 ऐसे संवाद जो आपको कहीं हिम्मत नहीं हारने देंगे और सफलता पाने का जज्बा हमेशा जगाए रखेंगे .
1. 3 Idiots:
कामयाबी के पीछे मत भागो, काबिल बनो , कामयाबी तुम्हारे पीछे झक मार कर आएगी.
2. Dhoom 3:
जो काम दुनिया को नामुमकिन लगे, वही मौका होता है करतब दिखाने का.
3. Badmaash Company:
बड़े से बड़ा बिजनेस पैसे से नहीं, एक बड़े आइडिया से बड़ा होता है.
4. Yeh Jawaani Hai Deewani:
मैं उठना चाहता हूं, दौड़ना चाहता हूं, गिरना भी चाहता हूं....बस रुकना नहीं चाहता .
5. Sarkar:
नजदीकी फायदा देखने से पहले दूर का नुकसान सोचना चाहिए.
6. Namastey London:
जब तक हार नहीं होती ना....तब तक आदमी जीता हुआ रहता है.
7. Chak De! India:
वार करना है तो सामने वाले के गोल पर नहीं, सामने वाले के दिमाग पर करो..गोल खुद ब खुद हो जाएगा.
8. Mary Kom:
कभी किसी को इतना भी मत डराओ कि डर ही खत्म हो जाए.
9. Jannat:
जो हारता है, वही तो जीतने का मतलब जानता है.
10.Happy New Year:
दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं विनर और लूजर...लेकिन जिंदगी हर लूजर को एक मौका जरूर देती है जिसमें वह विनर बन सकता है..
11) Om shanti Om
अगर किसी चिज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तूमसे मिलाने की कोशीश में लग जाती हैं।
12) once upon time in Mumbai
रास्ते की परवाह करुंगा तो मंजील बुरा मान जायेगी।
Stay motivated!!
Thursday, January 28, 2016
हर दिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र संग्रह
हर दिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र संग्रह
🔹 प्रात: कर-दर्शनम्🔹
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
🔸पृथ्वी क्षमा प्रार्थना🔸
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
🔺त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण🔺
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
♥ स्नान मन्त्र ♥
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
सूर्यनमस्कार
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
दीप दर्शन
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
गणपति स्तोत्र
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
⚡आदिशक्ति वंदना ⚡
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
🔴 शिव स्तुति 🔴
कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥
🔵 विष्णु स्तुति 🔵
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
⚫ श्री कृष्ण स्तुति ⚫
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
⚪ श्रीराम वंदना ⚪
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
♦श्रीरामाष्टक♦
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
एक श्लोकी रामायण
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्दे वैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्दे
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥
हनुमान वंदना
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
स्वस्ति-वाचन
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
शांति पाठ
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
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