Sunday, December 24, 2017

भगवद चिन्तन


भगवद चिन्तन


ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्ण मुदच्यते। पूर्णस्य पूर्ण मादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

प्रायः हर व्यक्ति आज अपने अभाव को लेकर परेशान है जबकि अभाव कुछ है ही नहीं।

पूर्ण परमात्मा ने पूर्ण जगत को बना अपना पूर्ण ज्ञान, सारा वैभव धन सम्पत्ति ऐश्वर्य सब कुछ खुले हाथों हमारे लिए बिना भेदभाव बिना पक्षपात के न्यायिक प्रक्रिया से लुटा दिया।परमात्मा यहीं नहीं रुका जीव को भी स्वतंत्र छोड़ दिया जितना चाहिए तुझे उतना लेले, पर यह भोला मानव अभाव, अकर्मण्यता तथा अश्रद्धा की बलिबेदी पर स्वयं चढ़ संकुचितता से समग्रता की ओर, व्यष्टि से समष्टि की ओर स्वयं से पूर्ण सृष्टि की ओर पहुंचने का रत्ती भर भी प्रयास तो करे। उसकी पूर्णता में जीने का पुरुषार्थ तो करे

वह जिस दिन यह जान लेगा कि पूर्ण चेतन पिता अपने पूर्ण ज्ञान द्वारा मेरे साथ पूर्ण जड प्रकृति माता समस्त सामिग्री लिए मेरे साथ, सर्वत्र विद्यमान है फिर मैं क्यों अल्पज्ञ और अपूर्ण रहूँ क्यों अभाव में जीयूँ।

यदि पूर्णता में निजता का प्रवेश करा दूँ तो निदान आसान और सम्भव हो जाएगा। जैसे पानी से भरे टब में खाली लौटा भी डूब कर भरा रहता है।




         दूसरों को सुख पहुँचाने के लिए स्वयं कष्ट उठाना और दूसरों की भूख मिटाने क लिए स्वयं भूखा रहना, यही तो महानता की परिभाषा है। दुनिया तुम्हें महान कहे, यह महत्वपूर्ण नहीं अपितु दुनिया की नज़र अंदाजी के बावजूद भी तुम महान कार्य करते हो, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
        प्रदर्शन महानता का लक्षण नहीं अपितु पर पीड़ा का दर्शन महानता का लक्षण है।एक व्यक्ति समाज द्वारा पूजा जाता है और एक व्यक्ति द्वारा किसी गरीब के आँसुओं को पौंछा जाता है। एक व्यक्ति की सेवा दुनिया करती है और एक व्यक्ति दुनिया की सेवा को ही अपना ध्येय बना लेता है।
         एक व्यक्ति की आरती सब लोग उतारते हैं और एक व्यक्ति सबके आर्त (दुःख) उतारने के लिए संघर्षशील बना रहता है। जिनके मन में दूसरों के लिए करुणा का भाव है वही लोग वास्तव में महान हैं।

अजय सिंह "जे एस के "

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