सहृदयं सामनस्यमविद्वेषं कृणोमि व:।
अन्यो अन्यमभिहर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या।।
यह अथर्ववेद का मन्त्र है ।इसमें प्रमुख तीन शब्द है,सहृदयं ,सामनस्यम् अविद्वेषम्।इनमे से दो को धारण करना और एक को त्यागने के लिये कहा गया है।
प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है ,क्योंकि मनुष्य श्रेष्ठ प्राणी है इसलिए वह सुख प्राप्त करने का प्रयास भी करता है ,लेकिन सभी को सुख नहीं मिलता। जो सुख प्राप्त करने मे बाधाये है वे ही दु:ख का कारणहै।
योग दर्शन मे इन्हें क्लेश कहा गया है।ये पांच है अविद्या,अस्मिता ,राग ,द्वेष और अभिनिवेश ।इनमे अविद्या अस्मिता और अभिनिवेश मे अविद्या कारण है और अस्मिता और अभिनिवेश कार्य है।
अब मानसिक स्तर पर दो ही क्लेश बचते है एक राग दूसरा द्वेष ।सारा संसार रोज दो दु:खो मे ही घूमता है किसी से राग तो वह दु:ख का कारण है , किसी से द्वेष तो दु:ख का कारण है।
परिवार मे या समाज मे आवश्यक नहीं कि सभी के विचार समान हो।वैचारिक मतभेद होने पर आपस मे विवाद हो सकता है यही द्वेष का कारण है इससे बचने के लिये पहला काम तो यह कि बोलचाल बन्द न करे ।
दूसरा यह कि बात का उत्तर देते समय यह सोचे कि जो हम कहने जा रहे है क्या उसे कहने का यह सही समय है ? यदि हम उस समय यह विचार कर लेते है तो द्वेष से बच सकते है।
दूसरा शब्द सांमनस्यम् का महत्त्व है मन के दोष दूर करना ।जैसे किसी स्थान को सजाने से पहले वहाँ सफाई की जाती है उसी तरह मन्त्र मे सौंदर्य को बढाने वाले दो शब्द है सहृदयं और सांमनस्यम् देखने मे लगता है दोनों का अर्थ समान है लेकिन महर्षि दयानन्द सहृदयं का अर्थ लिखते है माता पिता ,सन्तान ,स्त्री -पुरुष ,भृत्य ,मित्र ,पडोसी व अन्य के लिए अपने समान सुख की कामना और दु:ख से दूर रहने की इच्छा करना ।और सांमनस्यम् का अर्थ मन की प्रसन्नता ।सहृदयम् शब्द दो अर्थो मे आता है पहला हृदय जो शरीर मे रक्त का प्रवाह करता है , हरति ददाति याति इति हृदयं अर्थात् जो लेता है देता है और चलता है उसे हृदय कहते है।परन्तु यहाँ हृदय शरीर का अवयव नहीं बल्कि सुख दुख अनुभव करने वाले को हृदय कहा है ।
एक दूसरे की भावना को समझना विचारो का मिलना सहृदय या सौहार्द कहलाता है।हम रोज लोगो को दुखी कष्ट मे देखते है उनके लिए हम परेशान नहीं होते परन्तु यदि हमारा अपना कोई कष्ट मे है तो बहुत परेशान हो जाते है ।यही सहृदयता है।और आगे मन्त्र मे एक उपमा दी गई है कि हम परिवार मे कैसे रहे ? मन्त्र कहता है जैसे नवजात बछड़े को गाय प्यार करती है वैसे ही हम आपस मे करे।गाय अपने बच्चे से इतना प्यार करती है कि उसकी रक्षा के लिए वह शेर से भी टकरा जाती है। यही परिवार मे रहने का ढंग वेद मे कहा है।
अजय सिंह "जे एस के "
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