मनुष्य-जन्म का उद्देश्य
गुरु अर्जुन देब जी समझाते हैं:-
"कई जनम भए कीट पतंगा।
कई जनम गज मीन कुरंगा।।
कई जनम पंखी सरप होइओ ।
कई जनम हैवर ब्रिख जोइओ।।
मिल जगदीस मिलन की बरीआ।
चिंरकाल इह देह संजरीआ।।"
कई जन्म कीड़ों-पतंगों के पाये,कई जन्म हाथी,मछली और हिरणों के पाये;कई जन्म पक्षियों और साँपो के मिले और कई जन्म घोड़ों,पशुओं और पेड़-पौधों के पाये। काफी समय के बाद परमात्मा ने अपनी भक्ति के लिए अब यह इंसान का जामा बख्शा है।हमें इससे पूरा फायदा उठाना चाहिये।
मौलाना रूम फ़रमाते है;-
"हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा अम,
नुह सदो-हफ्ताद कालिब दीदा अम।"
वनस्पति की तरह मैं कई बार पैदा हुआ हूँ और नौ सौ सत्तर शरीर मैने देखे हैं।
एक और फ़कीर फ़रमाते है:-
"गाहे शजर दर बाग़-हा गाहै समर बर शाख़-हां।"
कई बार मैं घास और सब्ज़ी की तरह पैदा हुआ हूँ और सैकड़ों शरीर मैंने देखे है।कभी बाग में दरख़्त बना हूँ, कभी दरख्तों पर फल बनकर लगा हूँ।
ऋषि-मुनियों ने मनुष्य-देह को नर-नारायणी देह कहकर बयान किया है,मुसलमान फ़कीर इसे अशरफुल-मख़लूक़ात कहते हैं और यहूदियों का ख्याल है कि परमात्मा ने हमें अपनी खुद की शक्ल पर बनाया है।
अजय सिंह "जे एस के"
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