Saturday, July 11, 2015

निर्णय लेने की कला

दोस्तों,
श्रीमदभगवत गीता में 700 श्लोकों के द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जिंदगी में एक महत्व पूर्ण निर्णय लेने के लिये प्रेरित किया  है। निर्णय के पहले किन बातों पर विचार करना चाहिये तथा निर्णय के बाद होने वाली नयी परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाये इस पर विस्तार से चर्चा करके वास्तव में मनुष्य जीवन में आने वाली दुविधाओं का व्यापक समाधान प्रस्तुत किया। यह समाधान समय ,स्थान तथा परिस्थितयों के अधीन न होकर गणितीय सिद्धांतों की तरह है जिनका उपयोग यदि समझ में आ जाये तो जीवन में आनन्द ही आनन्द है, जिसके लिये मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रयत्न करता है। 

पहला और महत्वपूर्ण निर्णय यह की जब अर्जुन ने युद्ध में दोनों तरफ अपने परिवार ,गुरूओं और मित्रो  को देखा तो उसे लगा की इन लोगो को मार कर यदि मैं युद्ध में विजयी भी हो जाऊँ तो उसका मेरे लिए  क्या उपयोग। लेकिन जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाया और यह विश्वास
दिला दिया की वास्तव में उसे युद्ध कर केवल अपने कर्तव्य का पालन करना है ,मरना और मारना तो प्रकृति का नियम है इसलिये यदि वह व्यक्तिगत स्वार्थो से ऊपर उठकर समझ के साथ युद्ध करने का निर्णय लेता है तो वह उचित और न्याय संगत है अतः उसे यह निर्णय लेना चाहिये तब अपने गुरु और सखा कृष्ण की सलाह  मान कर अर्जुन ने युद्ध करने का निर्णय किया। 

श्री कृष्ण कहते है की मैं हिंसा का समर्थन नहीं करता परन्तु आदमी का वास्तविक दुश्मन है उसकी कामनायें, जिनको पूरा करने लिये मनुष्य उन कामों को करता है जो न्यायोचित नहीं है और उसका यह निर्णय पाप मार्ग की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है। दूसरा शत्रु है काम करने से आने वाला अहँकार, जो कर्ता भाव के कारण आता है,जबकि करने वाला तू नहीं मैं ही हूँ ।  इस तरह अर्जुन को श्री कृष्ण यह समझाने में सफल हुये की यदि वह अनुशासन का पालन करते हुये व्यक्तिगत लाभ से इतर   युद्ध करता है तो इस तरह किया हुआ काम उसके अधोगति के बजाय उर्ध्व गति में सहायक होगा।

आम आदमियों की जिन्दगी भी सुबह से शाम तक अनेक प्रकार के निर्णय लेने से शुरू होकर शाम का काम खतम हो गया तो सोने का निर्णय लेकर रात्रि विश्राम में जाने और अगले दिन सुबह कितने बजे उठना है और उठ कर क्या करना है के निर्णय से शुरू होती है। हमे पता है हर व्यक्ति की प्रकृति अलग है इसलिये स्वभाव भी। अतः अपनी  शारीरिक और मानसिक जरुरत  तथा परिस्थितयों के अनुसार कामना और कर्त्ता भाव से परे  निर्णय ले कर और उसे प्राप्त करने के लिए अपने कर्तव्य को करके हम श्रेष्ठता को प्राप्त करने  करने की ओर  अग्रसर हो सकते है। 

जीवन के अति गूढ़ रहस्यों को समझाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद भगवत गीता के अंतिम   अठ्ठारवें अध्याय के त्रेसठवेँ श्लोक   में पुनः एक बार कहते है "इतिते ज्ञानमाख्यातम् गुह्याद्गुह्यतरं मया , विमृशयैतदशेषेण   यथेच्छसि तथा कुरु " अर्थात "इस प्रकार अति गोपनीय  से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुमसे कह दिया। अब तू इस रहस्य युक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभांति विचार कर जैसा चाहता है वैसा ही कर" यानि निर्णय खुद ही कर ताकि अपने किये अच्छे  ख़राब परिणामो की जिम्मेदारी भी तेरी हो। 
अजय सिंह
 

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