Sunday, September 20, 2015

आप कैसे है ?

दोस्तों,
जब भी हमारी मुलाकात किसी से होती है तो पहला स्वाभाविक वाक्य बातचीत शुरू करने के लिये क्या होता है, कभी सोचा है आपने? साधारणतया यह एक सवाल होता है  "आप कैसे है " और आम तौर पर इसका जवाब भी वही मिलता है "सब ठीक है" या "ईश्वर की कृपा है ". इंग्लिश में "गॉड इज काइंड" या "आल वेल" और मुस्लिम तहजीब में भी "अल्लाह का शुक्र है" अथवा "ऊपर वाले की रहमत है" का जवाब मिलता है। यानि यह सार्वभौमिक है और इसका किसी विशेष जाती या सम्प्रदाय से कोई विरोध या समर्थन  नहीं है। मनुष्य मात्र में  एक व्यक्ति की दूसरे से मुलाकात होने पर ईश्वर का धन्यवाद प्रगट करने से ज्यादा अच्छा कोई  अवसर नहीं हो सकता। 
यह धन्यवाद प्रकट करना क्या केवल एक परम्परा है जिसका निर्वाह हम बिना सोचे समझे सदियों से करते चले आ रहे है अथवा  यह हमारी समझ  है जिसे हम ईश्वर से प्राप्त उसकी हर कृपा के लिए उपयुक्त अवसर मिलते है कर देना  चाहते है, इस पर यदि विचार करे तो हमें यह ध्यान आयेगा की मनुष्य का जन्म एक सौभाग्य है जो बहुत से सद्कर्मो के बाद प्राप्त होता है।  मनुष्य योनि में हुआ यह जन्म भव सागर अर्थात पृथ्वी पर आवागमन से मुक्ति का साधन भी बन सकता है जिसका एक मात्र उपाय भक्ति मार्ग पर चलना अर्थात प्रार्थना करना अथवा इससे भी श्रेष्ठ मार्ग समझ के साथ प्रार्थना करना यानि ज्ञान मार्ग पर चलना है। 

श्री मद भगवत गीता के नौवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण  अर्जुन को यही  बात समझाते हुये कहते है "अनन्याश्चिन्तयन्तो  माँ ये  जनाः पर्युपासते, तेषाम् नित्याभियुक्तानां , योगक्षेमं  वहाम्यहम् " अर्थात जो पूर्ण निष्ठा के साथ हर समय मेरा ध्यान करते है ऐसे लोगो को में वह सबकुछ देता हूँ जो उनके पास नहीं है, और जो उन्हें प्राप्त है उसकी रक्षा करता हूँ। 

यदि मनुष्य जीवन का प्रत्येक क्षण ईश्वर की कृपाओं का गान करने का अवसर बन जाये, हर पल हर क्षण उसकी कृपा के दर्शन होने लगे और उसकी उपस्थिति का अनुभव कर सके तो हमारी सारी ऊर्जा आभार बनकर प्रकट होगी और हमारा जीवन धन्यवाद प्रदान करने का उत्सव बन जायेगा। तब जीवन और प्रार्थना दो चीजे न हो कर जीवन खुद प्रार्थना बन जायेगा। यही तो है आत्मा का परमात्मा के साथ एकाकार ,यही है परमानन्द की स्थित। यही है हमारे जीवन का परम लक्ष्य। 

अजय सिंह "जे एस के"



 

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