Sunday, December 20, 2015

गीता जयन्ती पर विशेष

दोस्तों ,

आज गीता जयन्ती है। धर्म गर्न्थो के मुताबिक मार्ग शीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है। 5151 वर्ष पहले इसी दिन भगवत गीता दुनिया के समक्ष उद्घाटित हुई थी। भगवत गीता के सम्बन्ध में कुछ और रोचक जानकारियाँ दी जा रही है :



  • कर्तव्य से भटके अर्जुन को कर्तव्य पथ पर लाने एवं आने वाली पीढ़ियों को कर्म की प्रधानता बताने के लिए श्रीकृष्ण ने गीता का सन्देश दिया था। इसका सार निष्काम भावना से कर्म करना है। 
  • भगवत गीता के 18 अध्यायों में 700  श्लोक है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है। इसमें श्रीकृष्ण ने 574 ,अर्जुन ने 85 ,संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने १ श्लोक उच्चारित किया है। 
  • महाग्रंथ गीता में सर्वाधिक 78 श्लोक अंतिम अध्याय मोक्ष सन्यास योग और न्यूनतम 20 -20 श्लोक भक्ति योग ( 12 वां अध्याय ) और पुरुषोत्तम योग (15 वें अध्याय )में है. 
  • माना जाता है कि चौथाई पहर में ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सन्देश दिया।  गीता की गिनती हिन्दू धर्म ग्रन्थो के तहत उपनिषदों में होती है। इसका दूसरा नाम गीतोपनिषद है। 
  • आधुनिक युग में कई महापुरषो  ने गीता पर लिखा है। उसमे चर्चित कृतियाँ गीता रहस्य (बाल गंगा धार तिलक ) ,अनाशक्ति योग (महात्मा गांधी),एसेज ओन गीता (श्री अरबिन्दो  घोष) और गीता प्रवचन (विनोदबा भावे )है। 
  • लोक मान्य तिलक ने गीता रहस्य पुस्तक की रचना महज पांच महीने में मांडले जेल (म्यांमार ) में पेंसिल से की थी। इसमें उन्होंने गीता के कर्म योग की वृहद व्याख्या की है। 
  • तिलक का मानना था कि मूल गीता निवृति प्रधान नहीं है। वह तो कर्म प्रधान है। महात्मा गाँधी ने गीता रहस्य पढ़ कर कहा था की गीता पर तिलक की यह टीका उनका शास्वत स्मारक है।
 महात्मा गाँधी ,गीता के बड़े प्रशंसक थे। ग्रन्थ को वह अपनी माता कहते थे। महात्मा गांधी ने इसके श्लोकों का सरल अनुवाद करके अनाशक्ति योग का नाम दिया। कर्म करते समय निस्पृह भाव में चले जाना ही अनशक्त भाव है। राग और द्वेष से असंतृप्त हो जाना ही अनाशक्ति है।  
                                       श्री गीता जयंती का महत्व.....
ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके बारे में कहा गया है कि यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था।
                                                                         अंत  में 
जीवन में जो भी करो,
     पूरे समर्पण के साथ करो...।
    प्रेम करो तो मीरा की तरह....
    प्रतीक्षा करो तो शबरी की तरह...
    भक्ति करो तो हनुमान की तरह...
    शिष्य बनो तो अर्जुन के समान...
    और
    मित्र बनो तो स्वयं कृष्ण के  समान ।
        ।।जय श्री राधेकृष्णा।।
 
अजय सिंह "जे एस के "

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