Saturday, October 29, 2016

धर्म और विज्ञान

धर्म के बगैर  विज्ञानऔर विज्ञान के बगैर धर्म व्यर्थ है। धर्म और विज्ञानं दोनों एक दूसरे से जुड़ने के बाद  ही पूर्णता को प्राप्त  करते है।दोनों को एक दूसरे का पूरक कहना सर्वथा उचित होगा। साथ  भी की मनुष्य के लिए दोनों ही जरुरी है। धर्म मनुष्य को अंदर से सुन्दर बनाता है विज्ञान बाहर  से।  इस प्रकार दोनों का विवेकपूर्ण तालमेल मनुष्य को हर प्रकार से सुंदर बना सकता है और मानवता का कल्याण भी कर सकता है। धर्म और विज्ञान का समन्वय आवश्यक  नहीं,अनिवार्य  है। फर्क सिर्फ इतना है जहाँ धर्म आ जाता है वहाँ  विज्ञान की आवश्यकता कम हो जाती है और जहाँ विज्ञान की मात्रा बढ़ जाती है  वहाँ  धर्म की आवश्यकता कम हो जाती है।   मनुष्य के लिये धर्म और विज्ञान दोनों ही अलग अलग स्तर  पर आवश्यक है। दोनों ही एक दूसरे को उपयोगी बनाने में भारी योगदान करते है। जितना सहयोग और आदान -प्रदान दोनों के बीच होता जायेगा उतनी उपयोगिता बढ़ती जाएगी।

धर्म और  विज्ञान का परस्पर तालमेल जितना भारत में देखा जाता है,उतना और कही नहीं देखने को मिलता है। हमारे ऋषि मुनियो ने वर्षो पहले विज्ञान को धर्म के साथ न केवल जोड़ा बल्कि लोगो को इसके व्याहारिक ज्ञान के बारे में भी बताया। उनका मानना था की यदि  विज्ञान को व्यवस्थित ढंग से संवारकर मनुष्य के कल्याण में लगाया जाये तो वह धर्म बन जाता है। यही वजह है की हमारे वेद,उपनिषद ,दर्शन आदि जितने ग्रन्थ है,उनमे विज्ञान पिरोया है।

हालाकि वर्तमान  में समाज का एक वर्ग विज्ञान को चमत्कार  और धर्म को आडम्बर समझने लगा है और उसका मानना है की विज्ञान और धर्म  साथ -साथ नहीं रह सकते ,लेकिन सोचने वाली बात यह है की धर्म और विज्ञान दोनों का उद्देश्य मानवता का कल्याण करना है तो दोनों  आपस विरोधी कैसे  हो सकते है। तथ्य यह है की दोनों का स्वरूप और  कार्य क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न है ,इसलिए वे एक दूसरे पर आधारित नहीं है। लेकिन दोनों ही एक दूसरे का समर्थन पाए बगेर अपनी उपयोगिता में कमी महसूस करते है। अलबर्ट आइंस्टीन ने तो यहाँ  तक कह दिया की धर्म के बगैर विज्ञानं लंगड़ा है और विज्ञान के बगेर धर्म अँधा है।  इस सम्बन्ध में स्वामी विवेकानंद का मानना  था जहाँ पर विज्ञान खत्म होता है  वहाँ से अध्यात्म आरम्भ होता है।    

अजय सिंह "जे एस के "

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