Sunday, December 24, 2017

निराशा से बचने का उपाय




न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌ । 
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
- श्री कृष्ण, गीता
निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है ।


निराशा से बचने के लिए एक सूत्र है. भूतकाल से सीखिए, वर्त्तमान का अच्छे से अच्छे उपयोग कीजीए व भविष्य के प्रति आशान्वित रहिए. हर बुरी से बुरी परिस्थिति को सहन करने को तत्पर रहिए तथा अच्छे से अच्छे के लिए प्रयत्नशील रहिए. दूसरों से यह अपेछाएं न रखें कि वे आपकी बात मान ही जायेँगे. आपके बताए रास्ते पर चल ही पड़ेंगे .

यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो अपना ध्यान समस्या खोजने में नहीं, समाधान खोजने में लगाइए. हर हकीकत शुरू में एक सपना होती है,और जब करने वाले लग जाते है तो वो हकीकत हो जाती है.

अजय सिंह "जे एस के "

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