सत्कर्म और अहंकार
एक बार श्री कृष्ण अर्जुन से पूछा दान तो मैं भी बहुत करता हूं परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं। यह प्रश्न सुन श्रीकृष्ण मुस्कुराए उन्होंने पास ही में स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया इसके बाद वह अर्जुन से बोले हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम गांव वालों को बांट दो अर्जुन ने सभी गांव वालों को बुलाया और सोना बांटना शुरू कर दिया। अर्जुन पहाड़ी में से सोना तोड़ते गए और गांव वालों को देते गए। लगातार सोना बाटते रहने से अर्जुन में अहंकार आ चुका था इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक भी चुके थे उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि अब मुझसे यह काम और ना हो सकेगा।
अब श्री कृष्ण ने कर्ण को बुला लिया उन्होंने कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांवों में बाट दो। कर्ण ने गांव वालों को बुलाया और उनसे कहा यह सोना आप लोगों का है जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाए। यह देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से जानना चाहा ऐसा करने का विचार उनके मन में क्यों नहीं आया इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हें सोने से मोह हो गया था और तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गांव वाले की कितनी जरूरत है गांव वालों की कितनी जरूरत है उतना ही सुना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हें दे रहे थे तो तुझमे दाता होने का भाव आ गया था दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय-जयकार करें या प्रशंसा करें दान देने के बदले में धन्यवाद की उम्मीद करना ही सौदा कहलाता है। बिना किसी उम्मीद या आशा के दान करना चाहिए ताकि यह हमारा सत्कर्म हो ना कि हमारा अहंकार।
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