Every year New year celebrations are held to welcome coming year and seeoff the out going.It happens only once in a year beacuse Celebration of Joy is not an easy task ,it takes one full year to collect courage to enjoy when it is external ,it can be celebrated every day when it is internal and every moment when it is eternal. So on this auspicious day let us practice to make it internal and try hard to make it eternal.
Monday, June 1, 2020
बेकार की बातें
जी हां जिन बातों को पहले कभी नहीं कहा गया या उन पर कोई सार्थक चर्चा नहीं की गई इसका मतलब की उन बातों की जीवन में ज्यादा अहमियत नहीं है। ऐसा भी हो सकता है उन बातों की अहमियत बिल्कुल भी ना हो लेकिन धीरे धीरे जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है अनुभव आते हैं तो बहुत सारी चीजें समझ में आती है कि जिनको हम बेकार समझते थे वह बहुत काम की लगने लगती हैं। जिनको हम बहुत काम की समझते थे वह बेकार लगते लगने लगती हैं ऐसा भी हो सकता है कि यह समय की वजह से हो क्योंकि एक चीज किसी समय ठीक लगती है और वही दूसरे समय खराब लग सकती है इसलिए यह कहना मुश्किल है कि कोई चीज हमेशा के लिए खराब है या हमेशा के लिए अच्छी है। समय स्थान दशा इत्यादि बहुत से ऐसे कारक हो सकते हैं जिनकी वजह से कोई चीज उपयोगी या अनुपयोगी लगती है। मसलन किसी जमाने में चूहा मिट्टी का चूल्हा बहुत उपयोगी होता था आज के जमाने में शायद उसका उपयोग करना भी बहुत से लोगों को नहीं पता होगा इसका मतलब चूल्हे की उपयोगिता खत्म हो गई ऐसा बिल्कुल नहीं है हां अब क्योंकि बेहतर विकल्प उपलब्ध है इसलिए मिट्टी के चूल्हे की उपयोगिता समझ में नहीं आ रही है।
मैं आज कुछ ऐसी ही बातों का जिक्र आप लोगों के बीच करने जा रहा हूं जो मैंने अपने अनुभव से सीखी हैं और वह प्रचलित बातों से भिन्न है बहुत संभव है कि आप मेरी बात से बिल्कुल सहमत ना हो या थोड़ा बहुत सहमत हो लेकिन मेरे यह विचार मेरे अपने हैं और जो मैंने अनुभव किए हैं उन पर आधारित है तो यह निश्चित है अगर आपके अनुभव मेरे अनुभव से भिन्न है तो आपका मेरे विचार के साथ सहमत होना निश्चित रूप से मुश्किल होगा। आइए एक-एक कर हम लोग इन बातों पर विचार करते हैं।
मूर्ख मकान बनाते हैं और अकल मन उसमें रहते हैं
आज से कोई 100 या 200 बरस पहले यह कहावत कहीं गई। हम सब लोगों को यह बात विरासत में मिली है मेरा अनुभव है कि इस महंगाई के जमाने में यह बिल्कुल ठीक बात है क्योंकि मकान बनाने में जो लागत लगती है जो समय लगता है जो मेहनत लगती है और उसके बाद जो उस पर रिटर्न मिलता है वह शायद उस अनुपात से भिन्न होता है जिस अनुपात में लागत और मेहनत लगी है।
लेकिन मकान बनवाना केवल इसलिए मूर्खता समझी जाए कि उस पर लगाए पैसों पर समुचित लाभ नहीं मिलता तो शायद यह कहना बहुत अकल मंदी का काम नहीं होगा असल में मकान बनाने का संबंध केवल पैसे की लागत पर मुनाफा या लाभ नहीं होता। मकान के साथ 2-3 बड़ी महत्वपूर्ण बातें जुड़ी होती है। पहली बात अगर आपने छोटी उम्र में अपना मकान बना लिया तो यह एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है इससे आपको एक तरीके की सुरक्षा की स्वाभाविक अनुभुति होती है यानी कभी किसी समय जीवन के किसी पड़ाव पर अगर आमदनी में कोई समस्या हो तो कम से कम सर के ऊपर एक छत है यह बात बढ़ा सुख और संतोष देती है।
लेकिन जब आप इस मकान को पैसे उधार लेकर बनाते हैं और 20 साल तक या 25 साल तक अपने ऊपर हर महीने उधारी चुकाने की एक लायबिलिटी पालते हैं तो इसका बड़ा सीधा परिणाम होता है कि आपको अगले 20- 25 साल लगातार किसी भी स्थिति में किसी भी परिस्थिति में मकान की किस्ते चुकाने की व्यवस्था तो करनी ही होगी नहीं तो आपने जो मेहनत करके स्कोर खड़ा किया है वह बेकार हो जायेगा। अतः इस बात का आकलन करना बहुत आवश्यक है की कहीं मकान बनाने के चक्कर में आप अपने को अपनी स्वतंत्रता को गिरवी तो नहीं रख रहे है।
जिंदगी के एक पड़ाव पर जो चीजें बहुत सुख देती है जिंदगी के दूसरे पड़ाव पर वही चीजें दुख देती हुई लगती है। यह बात मकान के लिए भी ठीक है जब आप मकान बनाते हैं और उस वजह से आप अपने को अगले 20- 25 साल सुरक्षित महसूस करते हैं ,चिंता मुक्त महसूस करते हैं तब तक तो यह ठीक है। फिर जीवन की दूसरी पाली में आपके बच्चे बड़े हो जाते हैं उनकी अपनी आवश्यकताएं आपकी आवश्यकताओं से भिन्न होती हैं उनका काम करने का तरीका काम करने का स्थल भी आप की जगह से फर्क होता है तब यह मकान आपको डैडी की तरह लगता है क्योकीं आपने इसमें बहुत दिन बताए हैं इसके साथ आपका गहरा भावनात्मक संबंध है इसलिए इसको बेचना और बेचकर नए शहर में बच्चों के साथ शिफ्ट हो जाना आसान नहीं होता। नए लोग नया शहर नई स्थितियां और आपके बेटे का मकान यानी अब आप अपने बेटे के साथ रह रहे हैं पहले वही बेटा आपके साथ रह रहा है। अब यह बात बहुत बार कष्टदायक भी होती है और आपके स्वाभिमान को भी चोट पहुंचती है। लेकिन यदि आप ऐसा नहीं करते और आप और आपका बेटा अलग अलग रहता है तो दोनों परिवारों के बीच में हमेशा एक चाहत रहती है। माता-पिता चाहते हैं कि बेटा मेरे पास आ जाए और बेटा बहू चाहते हैं माता-पिता मेरे पास आ गए ताकि बिना ज्यादा तकलीफ के पूरा परिवार एक साथ आनंद से रह सके।
इन परिस्थितियों में यह तय करना मुश्किल काम है कि मकान अकलमंद बनवाते हैं या मूर्ख बनाते हैं मेरा मत है कि रहने के लिए एक मकान आवश्यक है आपने अपना बनाया तो भी ठीक है अगर यह परिवार से आपको मिल रहा है तो भी ठीक है लेकिन एक से ज्यादा मकान बनाना किसी भी हालत में अकल मंदी का काम नहीं है।
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अजगर करे न चाकरी
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम दास मलूका कह गए सबके दाता राम
एक कवि हुए हैं मलूक दास जिनकी यह पंक्ति जन-जन की जुबान पर है अजगर करे ना चाकरी पंछी करे न काम दास मलूका कह गए सबके दाता राम। यह पंक्ति सुभाषित जैसी है मलूक दास के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती यह भी नहीं पता चलता कि इसके अलावा उन्होंने और कुछ लिखा भी है या नहीं। निश्चय ही वह भक्त कवि रहे होंगे उन्होंने अपने आराध्य राम की प्रशंसा में यह कहा लेकिन सोचिए यह कितनी पिछड़ी हुई और प्रतिक्रियावादी बात है। यह कर्म विरोधी है जो मनुष्य को अकर्मण्य बनाने वाली है फिर ये वास्तविक रूप से गलत है यह कहना सही नहीं पंछी काम नहीं करते।
वे अपनी जरूरतों के लिए बहुत मेहनत करते हैं एक-एक दाने के लिए वे दूर-दूर तक जाते हैं घोंसला बनाने के लिए तिनके चुन कर लाते हैं। सच्चाई यह है कि पंछियों की दिनचर्या बिल्कुल मनुष्य की तरह निश्चित होती है वे भी एक निश्चित जगह दाना पानी के लिए जाते हैं और तय समय पर अपने ठिकाने पर लौटते हैं। यह मेरा प्रत्यक्ष अनुभव है गाजियाबाद के वसुंधरा में जहां मैं रहता हूं रोज सुबह आकाश में पंछियों की कतार पूरब की ओर जाती हुई दिखती है फिर शाम में एक कतार पूर्व से पश्चिम की ओर जाती है।
मैंने इसे कई दिनों तक गौर किया एक दिन मैं शाम के वक्त कौशांबी इलाके में था जो मेरे घर के पश्चिम में है वहां मैंने देखा कि मेरे इलाके से पक्षी आकर पेड़ों पर चले गए वह सब चीजें थी मैं समझ गया यह वही कतार है जो मुझे सुबह अपने घर के ऊपर दिखती है। फिर गाजियाबाद में रहने वाले मेरे एक मित्र ने बताया कि वसुंधरा और दूसरे इलाकों से कई पक्षी हिंडन नदी के किनारे आते हैं और यहां दिन भर खाने पीने के बाद लौट जाते हैं। मैं समझ गया कौशांबी के पास के पेड़ों पर रहने वाली चिड़ियाँ अपने भरण-पोषण के लिए हिंडोन के किनारे जाती है जहां उन्हें मछलियां और मेंढक इत्यादि मिल जाते होंगे। मेरे मन में सवाल उठा कि यह हिण्डन के आसपास के पेड़ों पर ही क्यों नहीं रह जाती अब इसका जवाब उन पक्षियों के पास ही होगा कि उन्होंने अपना घर और दफ्तर जिस आधार पर चुना है। वैसे लौटते समय यह परिंदे सीधे नहीं लौटते आकाश में गोल गोल चक्कर काटते हैं कई बार घेरा बनाकर घूमने के बाद उनमें से एक एक छोटा समूह बारी-बारी से बाकी पक्षों से विदा लेता रहता है। कई पक्षी विज्ञानी कहते हैं कि पक्षियों की दिनचर्या केवल भोजन और प्रजनन तक ही सीमित नहीं है इससे परे भी है उनके जीवन में कई चीजें हैं वह भी खेल करते हैं मनोरंजन करते हैं यह बात मेरी समझ में तब आई जब एक तोता मेरे साथ रहने लगा और प्यार और गुस्से जैसे भाव उसके भीतर भी स्पष्ट दिखते हैं।
*एक सारगर्भित कविता*
*एक सारगर्भित कविता*
********************
जो कह दिया वह *शब्द* थे ;
जो नहीं कह सके
वो *अनुभूति* थी ।।
और,
जो कहना है मगर ;
कह नहीं सकते,
वो *मर्यादा* है ।।
*जिंदगी* का क्या है ?
आ कर *नहाया*,
और,
*नहाकर* चल दिए ।।
*पत्तों* सी होती है
कई *रिश्तों की उम्र*,
आज *हरे*-------!
कल *सूखे* -------!
क्यों न हम,
*जड़ों* से;
रिश्ते निभाना सीखें ।।
रिश्तों को निभाने के लिए,
कभी *अंधा*,
कभी *गूँगा*,
और कभी *बहरा* ;
होना ही पड़ता है ।।
*बरसात* गिरी
और *कानों* में इतना कह गई कि---------!
*गर्मी* हमेशा
किसी की भी नहीं रहती ।।
*नसीहत*,
*नर्म लहजे* में ही
अच्छी लगती है ।
क्योंकि,
*दस्तक का मकसद*,
*दरवाजा* खुलवाना होता है;
तोड़ना नहीं ।।
*घमंड*-----------!
किसी का भी नहीं रहा,
*टूटने से पहले* ,
*गुल्लक* को भी लगता है कि ;
*सारे पैसे उसी के हैं* ।
जिस बात पर ,
कोई *मुस्कुरा* दे;
बात --------!
बस वही *खूबसूरत* है ।।
थमती नहीं,
*जिंदगी* कभी,
किसी के बिना ।।
मगर,
यह *गुजरती* भी नहीं,
अपनों के बिना।
सतत हस्तक्षेप से सहज विकास बाधित हो जाता है
प्रिय मित्रो ,
सन्तान की परवरिश कर्तव्य भाव से करें , प्रतिफल की आस रहेगी तो जीवन बोझिल हो जाएगा। कार्यस्थल में जिस कुर्सी पर हम बरसों बैठते रहे घर में जिस बिस्तर पर सोए, जिस थाली में भोजन करते रहे, पार्क की बेंच की जिस पर अक्सर बैठे या जिस वृक्ष या पालतू जानवर पर प्रतिदिन निगाह जाती रही उसके प्रति मोह होना और उस पर एकाधिकार जताना सहज मानवीय प्रवृत्ति है। इन सब से दुराव उचित नहीं।प्रतिदिन व्यवहार में आती इन वस्तुओं के उपलब्ध न होने पर कुछ व्यक्ति असहज़ है या व्यथित हो जाते हैं।
जिन माता-पिता ने पूर्व संरक्षण प्रदान करते हुए अपनी सभी साधनों से हमारी परवरिश की, उंगलियां पकड़ कर उठना चलना पढ़ना- लिखना खाना खेलना आज तक सिखाया उनसे अथाह प्रेम व जुड़ाव तथा वयस्क होने पर उनके प्रति कृतज्ञता का भाव ईश्वरी विधान के अनुरूप है। उसी क्रम में संतान से अपनी तुलना अस्वाभाविक है ना ही अनुचित। किंतु वर्तमान परिपेक्ष मैं इस जुड़ाव की प्रकृति और इसकी सीमा को नहीं समझने से उम्र दारू का भावी जीवन कष्टदायक हो जाएगा। एक धारणा यह है कि अन्य प्राणियों की भांति माता-पिता का दायित्व मात्र संतान उत्पति, बाल काल में संतान की उचित परवरिश और विवेक के अनुसार उन्हें दिशा देना भर है।नवजात पशु पक्षियों को तनिक संभालने के बाद भौगोलिक तथा अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों से स्वयं तालमेल बैठाने और निपटने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि वे जरूरी क्षमताएं स्वयं विकसित करें और सशक्त बने। कमोबेश परिपक़्व होकर संतान जब आजीविका या कैरियर की एक डगर पर चल पड़े इसके बाद माता-पिता की खास भूमिका नहीं रह जाती है और उनका तटस्थ हो जाना संतान के दीर्घकालीन हित में रहता है।
संतान के जीवन में नियमित हस्तक्षेप से आप उनके सहज विकास को बाधित करेंगे । विशाल वृक्ष के नीचे पौधे नहीं फलते फूलते। बार-बार या प्रत्येक स्तर पर संतान की प्रशंसा या भर्त्सना से आप उनके स्वस्थ स्वतंत्र विकास को बाधित करेंगे।संतान की अधिक वाहवाही से उसमें स्वयं को सब ऊपर समझने की भ्रांति उत्पन्न हो जाती है। इसके विपरीत नियमित दुत्कार उलाहना व रोक टोक से से उसका मनोबल गिरता है।संतति पर आर्थिक भावनात्मक व अन्य निवेश के दौरान माता-पिता अपेक्षाएं सँजो लेते हैं की उम्र ढलने पर उन्हें बहुगुनी होकर फल मिलेगा। यह तो सौदेबाजी हुई।अपने नवनिर्मित परिवार की देखरेख के चलते उम्र दराज माता-पिता के साथ पूर्ववत व्यवहार और आचरण बरकरार रखना संतान के लिए कठिन हो सकता है।संतान द्वारा अपेक्षाएं पूरी न करने पर अनेक माता-पिताओं का मोहभंग उनके संताप का कारण बन रहा है। उम्र दारो को सन्तानो के नव सरोकार समझने होंगे अन्यथा उनका जीवन कष्ट में हो जाएगा।
विद्वान कह गए हैं आपकी संतति आपकी नहीं है वह केवल आपके द्वारा है वह समाज देश के लिए निमित्त है। उसे स्वतंत्र अस्मिता मानते हुए केवल उचित दिशा दिखा कर उसके समृद्धि में भरपूर सहायक बनना है। अपने मोह को यहीं विराम दीजिए। संतान के इसी योगदान से आप पितृ ऋण से भी मुक्त होंगे। संतति के प्रति कर्तव्य वहन के दौरान हृदय में शुद्ध और परहित भाव होगा तो प्रतिफल की अपेक्षा ना रहेगी। अपेक्षा या प्रतिफल की मंशा से संपन्न कार्य तो स्वार्थ होता है।
Tuesday, November 6, 2018
Origin of Happiness:
Dear Friends,
There are four hormones which determine a human's happiness - Endorphins, Dopamine, Serotonin, and Oxytocin. It is important we understand these hormones, as we need all four of them to stay happy.
Let's look at the first hormone the Endorphins. When we exercise, the body releases Endorphins. This hormone helps the body cope with the pain of exercising. We then enjoy exercising because these Endorphins will make us happy. Laughter is another good way of generating Endorphins. We need to spend 30 minutes exercising every day, read or watch funny stuff to get our day's dose of Endorphins.
The second hormone is Dopamine. In our journey of life, we accomplish many little and big tasks, it releases various levels of Dopamine. When we get appreciated for our work at the office or at home, we feel accomplished and good, that is because it releases Dopamine. This also explains why most housewives are unhappy since they rarely get acknowledged or appreciated for their work. Once, we join work, we buy a car, a house, the latest gadgets, a new house so forth. In each instance, it releases Dopamine and we become happy. Now, do we realize why we become happy when we shop?
The third hormone Serotonin is released when we act in a way that benefits others. When we transcend ourselves and give back to others or to nature or to the society, it releases Serotonin. Even, providing useful information on the internet like writing information blogs, answering people's questions on Quora or Facebook groups will generate Serotonin. That is because we will use our precious time to help other people via our answers or articles.
The final hormone is Oxytocin, is released when we become close to other human beings. When we hug our friends or family Oxytocin is released. Similarly, when we shake hands or put our arms around someone's shoulders, various amounts of Oxytocin are released.
Now, we can understand why we need to hug a child who has a bad mood. So, it is simple, we must exercise every day to get Endorphins, we must accomplish little goals and get Dopamine, we need to be nice to others to get Serotonin and finally hug our kids, friends, and families to get Oxytocin and we will be happy. When we are happy, we can deal with our challenges and problems better.
Courtesy
What's Up
दिवाली क्यों और कैसे मनायें
दोस्तों ,
आप भी सोचेंगे की यह क्या बात हुई, आखिर दिवाली आप बरसो से हर साल मनाते आ रहे है तो इस बार ऐसी क्या बात है की हम आप को पूछें की दिवाली कैसे मनायें। अब पूछ रहे है तो बता देते है जवाब बड़ा सिंपल है घर की सफाई ,लोगो को बधाई, लक्ष्मी गणेश पूजा और बस हो गयी दिवाली। और क्यों का जवाब तो और भी सिंपल है इस दिन भगवान राम का चौदह बरसो के बाद रावण को मार कर अयोध्या जी आगमन हुआ था इसी ख़ुशी में दीपोत्सव मनाने का रिवाज देश में चल पड़ा और सैकड़ो वर्षो से देशवासी इसे मना रहे है।

असल में समय के साथ चीजे बदलती है और उनका असली उद्देश्य कभी कभी पीछे रह जाता है और हमारे लिए यह केवल कर्म कांड तक सीमित रह जाता है इसलिए क्यों और कैसे का पुनरावलोकन करना आवश्यक है ताकि मूल उद्देश्य की प्राप्ति हो सके और त्यौहार सार्थक हो सके।
1. बोरडम से मुक्ति : त्यौहार के आने पर नियमित क्रियाओं में परिवर्तन से व्यक्ति को बोरडम से मुक्ति का अवसर प्राप्त होता है जो जीवन को नयी ऊर्जा देता है और नयी समझ जीवन को आनंदित करती है।
२. कूड़ा करकट से मुक्ति :किसी भी त्यौहार के आने पर घर की साफ़ सफाई तो नियमित होती ही है लेकिन दीपावली के आने पर विशेष सफाई का प्रावधान है। यानि केवल ऊपर से नहीं तो कूड़ा करकट को हटाना और रंग रोगन से घर को सजाना लक्ष्मी पूजा का ही हिस्सा माना जाता है। परन्तु कूड़ा करकट केवल घर में नहीं दिमाग में भी इकट्ठा होता रहता है और यह एक मौका है दिमाग को सोचने का नया तरीका देने का। तो घर का और दिमाग दोनों का कचरा साफ़ हो यह कोशिश दिवाली को और ज्यादा रंग बिरंगी बनाती है।
३. लोगो के अंदर जाग्रति: त्यौहार हमें अपने रिश्ते नातो को पुनर परिभाषित करने का अवसर प्रदान करता है। त्यौहार में रिश्तेदारो और मित्रो में मिठाई बाटना ,शुभ कामनाओ का आदान प्रदान करना सम्बन्धो को ताजगी देता है और किसी कारण से सम्बन्ध यदि ख़राब हुए है तो उन्हें नए सिरे से पुनर्जीवित करने का अवसर प्रदान करता है। समाज में नयी ताजगी त्यौहारो के माध्यम से आ जाती है।
४. अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करता है त्यौहार : दीपावली के अवसर पर आयोजित दिवाली में तमाम तरह की छुपी प्रतिभाओ को बाहर प्रगट करने का अवसर प्रदान करता है। कुछ लोग रंगोली अच्छी बनाते है तो उनकी इस कला को बाहर आने का अवसर , ग्रीटिंग कार्ड्स बनाना , कविता, नाटक और अन्य कलाएं इस अवसर पर आयोजित प्रतियोगतायो के माध्यम से बाहर आता है।
५. अवसर अप्प दीपो भव होने का : दिया तले अँधेरा इसलिए होता है की वह दीपक पारदर्शी नहीं है। ऐसे ही है हमारा मन। जो बाहर तो ज्ञान का अनुभव इत्यादि की शेयरिंग करता है लेकिन खुद अवसादयुक्त ही बना रहता है। यानि जीवन को कपट मुक्त बनाने का , मन तो पारदर्शी बनाने का , मन को बच्चा बनाने यानि मन को सहज बनाने का अवसर देता है दीपावली का त्यौहार। वरना हर बात में मीन मेख निकलना, दुसरो से तुलना करना और कपट मुक्त के बजाय कपट युक्त व्यहार जो मनुष्य के मन की स्वाभाविक गति है उसको समझने और ठीक कर स्वयं अपना दीप्प बन प्रकशित करने का अवसर है दीपावली का त्यौहार।
इतना समझने के बाद भी यदि आप नए अनुभवों के लिए ग्रहणशील नहीं है और पुराने अनुभव आपको नया लेने से रोक रहे है। यदि हर त्यौहार पर आप अपने मन को रिफ्रेश कर नए अनुभव लेने के बजाय पुराने अनुभवों को ही जी रहे है। आपका मन बार बार याद दिला रहा है की पिछले साल प्रकाश ज्यादा अच्छा था या कपड़े ज्यादा सुन्दर थे मिठाई ज्यादा स्वादिस्ट थी और इसलिए इस बार वह बात नहीं है तो फिर आपकी उम्र यदि २५ साल भी हो तो आप अपने को २५ साल बूढ़ा और यदि नए अनुभव आपको मजा दे रहे है सीखा रहे है आनंदित कर रहे है तो फिर आप अपने को १०० साल का जवान मान कर आराम से जी सकते है और तब आपको त्यौहार की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी और साल में एक नहीं बल्कि ३६५ दिन दिवाली मनाएंगे।
जय श्री राम।
अजय सिंह "एकल "
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