Sunday, July 26, 2015

बेटे के शिक्षक को लिंकनका पत्र

Hindi Translation of Lincoln’s Letter to School Headmaster
बेटे के शिक्षक को लिंकनका पत्र 
अब्राहम लिंकन ने यह पत्र अपने बेटे के स्कूल प्रिंसिपल को लिखा था। लिंकन ने इसमें वे तमाम बातें लिखी थीं जो वे अपने बेटे को सिखाना चाहते थे। ये बातें सिर्फ किसी एक स्टूडेंट के लिए ही महत्वपूर्ण क्यों हो, सभी के लिए क्यों नहीं।
सम्माननीय सर…
मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखना होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाएँ। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्छीन बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखना होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्छाह है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका
अब्राहम लिंकन, ह्वाइट हाउस, वासिंगटन

घनश्यामदास जी बिड़ला का अपने पुत्र बसंत कुमार जी बिड़ला के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र



घनश्यामदास जी बिड़ला का अपने पुत्र बसंत कुमार जी बिड़ला के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र जो हर एक को जरूर पढ़ना चाहिए -
चि. बसंत.....
यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।
धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं की धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो। अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे l
भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है l सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है l मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होनेपर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।
- घनश्यामदास बिड़ला
श्री घनश्यामदास जी बिरला  का अपने बेटे के नाम लिखा हुवा पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है l विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें एक है 'अब्राहम लिंकन का शिक्षक के नाम पत्र' और दूसरा है 'घनश्यामदास बिरला का पुत्र के नाम पत्र'

Saturday, July 11, 2015

निर्णय लेने की कला

दोस्तों,
श्रीमदभगवत गीता में 700 श्लोकों के द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जिंदगी में एक महत्व पूर्ण निर्णय लेने के लिये प्रेरित किया  है। निर्णय के पहले किन बातों पर विचार करना चाहिये तथा निर्णय के बाद होने वाली नयी परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाये इस पर विस्तार से चर्चा करके वास्तव में मनुष्य जीवन में आने वाली दुविधाओं का व्यापक समाधान प्रस्तुत किया। यह समाधान समय ,स्थान तथा परिस्थितयों के अधीन न होकर गणितीय सिद्धांतों की तरह है जिनका उपयोग यदि समझ में आ जाये तो जीवन में आनन्द ही आनन्द है, जिसके लिये मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रयत्न करता है। 

पहला और महत्वपूर्ण निर्णय यह की जब अर्जुन ने युद्ध में दोनों तरफ अपने परिवार ,गुरूओं और मित्रो  को देखा तो उसे लगा की इन लोगो को मार कर यदि मैं युद्ध में विजयी भी हो जाऊँ तो उसका मेरे लिए  क्या उपयोग। लेकिन जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाया और यह विश्वास
दिला दिया की वास्तव में उसे युद्ध कर केवल अपने कर्तव्य का पालन करना है ,मरना और मारना तो प्रकृति का नियम है इसलिये यदि वह व्यक्तिगत स्वार्थो से ऊपर उठकर समझ के साथ युद्ध करने का निर्णय लेता है तो वह उचित और न्याय संगत है अतः उसे यह निर्णय लेना चाहिये तब अपने गुरु और सखा कृष्ण की सलाह  मान कर अर्जुन ने युद्ध करने का निर्णय किया। 

श्री कृष्ण कहते है की मैं हिंसा का समर्थन नहीं करता परन्तु आदमी का वास्तविक दुश्मन है उसकी कामनायें, जिनको पूरा करने लिये मनुष्य उन कामों को करता है जो न्यायोचित नहीं है और उसका यह निर्णय पाप मार्ग की ओर जाने के लिए प्रेरित करता है। दूसरा शत्रु है काम करने से आने वाला अहँकार, जो कर्ता भाव के कारण आता है,जबकि करने वाला तू नहीं मैं ही हूँ ।  इस तरह अर्जुन को श्री कृष्ण यह समझाने में सफल हुये की यदि वह अनुशासन का पालन करते हुये व्यक्तिगत लाभ से इतर   युद्ध करता है तो इस तरह किया हुआ काम उसके अधोगति के बजाय उर्ध्व गति में सहायक होगा।

आम आदमियों की जिन्दगी भी सुबह से शाम तक अनेक प्रकार के निर्णय लेने से शुरू होकर शाम का काम खतम हो गया तो सोने का निर्णय लेकर रात्रि विश्राम में जाने और अगले दिन सुबह कितने बजे उठना है और उठ कर क्या करना है के निर्णय से शुरू होती है। हमे पता है हर व्यक्ति की प्रकृति अलग है इसलिये स्वभाव भी। अतः अपनी  शारीरिक और मानसिक जरुरत  तथा परिस्थितयों के अनुसार कामना और कर्त्ता भाव से परे  निर्णय ले कर और उसे प्राप्त करने के लिए अपने कर्तव्य को करके हम श्रेष्ठता को प्राप्त करने  करने की ओर  अग्रसर हो सकते है। 

जीवन के अति गूढ़ रहस्यों को समझाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद भगवत गीता के अंतिम   अठ्ठारवें अध्याय के त्रेसठवेँ श्लोक   में पुनः एक बार कहते है "इतिते ज्ञानमाख्यातम् गुह्याद्गुह्यतरं मया , विमृशयैतदशेषेण   यथेच्छसि तथा कुरु " अर्थात "इस प्रकार अति गोपनीय  से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुमसे कह दिया। अब तू इस रहस्य युक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभांति विचार कर जैसा चाहता है वैसा ही कर" यानि निर्णय खुद ही कर ताकि अपने किये अच्छे  ख़राब परिणामो की जिम्मेदारी भी तेरी हो। 
अजय सिंह
 

Saturday, June 13, 2015

आओ जी ले जिंदगी

नंगे पाँव चलते "इन्सान" को लगता है
कि "चप्पल होते तो कितना अच्छा होता"
बाद मेँ..........
"साइकिल होती तो कितना अच्छा  होता"
उसके बाद में.........
"मोपेड होती तो थकान नहीं लगती"
बाद में.........
"मोटर साइकिल होती तो बातों- बातों मेँ रास्ता कट जाता"
फिर ऐसा लगा कि.........
"कार होती तो धूप नहीं लगती"
फिर लगा कि,
"हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट
नहीं होता"
जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान
देखता है तो सोचता है,
कि "नंगे पाव घास में चलता तो दिल
को कितनी "तसल्ली" मिलती".....
"जरुरत के मुताबिक "जिंदगी" जिओ - "ख्वाहिश"..... के
मुताबिक नहीं.........
क्योंकि 'जरुरत'
तो 'फकीरों' की भी 'पूरी' हो जाती है,  और
'ख्वाहिशें'..... 'बादशाहों ' की भी "अधूरी" रह जाती है".....
"जीत" किसके लिए, 'हार' किसके लिए
'ज़िंदगी भर' ये 'तकरार' किसके लिए?

जो भी 'आया' है वो 'जायेगा' एक दिन
फिर ये इतना "अहंकार" किसके लिए?
ए बुरे वक़्त !
ज़रा "अदब" से पेश आ !!
"वक़्त" ही कितना लगता है
"वक़्त" बदलने में.........
मिली थी 'जिन्दगी' , किसी के 'काम' आने के लिए.....
पर 'वक्त' बीत रहा है , "कागज" के "टुकड़े" "कमाने" के लिए....👌
🙏 🙏 😊 जिस पल आपकी मृत्यु हो जाती है, 
उसी पल से आपकी पहचान एक "बॉडी" बन जाती है।
अरे
"बॉडी" लेकर आइये,
"बॉडी" को उठाइये,
"बॉडी" को सूलाइये
ऐसे शब्दो से आपको पुकारा  जाता है, 
वे लोग भी आपको आपके नाम से नही पुकारते ,
जिन्हे प्रभावित करने के लिये आपने अपनी पूरी जिंदगी खर्च कर दी।
इसीलिए निर्मिती" को नही
निर्माता" को  प्रभावित करने के लिये जीवन जियो।
जीवन मे आने वाले हर चूनौती को स्वीकार  करे।......
अपनी पसंद की चीजों  के लिये खर्चा कीजिये।                                            
 


इतना हंसिये के पेट दर्द हो जाये।....
आप कितना भी बुरा  नाचते हो ,
फिर भी नाचिये।......
उस खूशी को महसूस किजिये।......
फोटोज् के लिये पागलों वाली पोज् दिजिये।......
बिलकुल छोटे बच्चे बन जायिये।
क्योंकि मृत्यु जिंदगी का सबसे बड़ा लॉस नहीं है।
लॉस तो वो है
की  आप जिंदा होकर भी आपके 
अंदर जिंदगी जीने की आस खत्म हो चूकी है।.....
हर पल को खूशी से जीने को ही जिंदगी कहते है।
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं,
"काम में खुश हूं," आराम में खुश हू,
"आज पनीर नहीं," दाल में ही खुश हूं,
"आज गाड़ी नहीं," पैदल ही खुश हूं,
"दोस्तों का साथ नहीं," अकेला ही खुश हूं,
"आज कोई नाराज है," उसके इस अंदाज से ही खुश हूं,
"जिस को देख नहीं सकता," उसकी आवाज से ही खुश हूं,
"जिसको पा नहीं सकता," उसको सोच कर ही खुश हूं,
"बीता हुआ कल जा चुका है," उसकी मीठी याद में ही खुश हूं,
"आने वाले कल का पता नहीं," इंतजार में ही खुश हूं,
"हंसता हुआ बीत रहा है पल," आज में ही खुश हूं,
"जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं,!

आभार 
व्हाटसप 

जिंदगी का फलसफा

तू जिंदगी को जी, 
उसे समझने की कोशिश न कर
सुन्दर सपनो के ताने बाने बुन,
उसमे उलझने की कोशिश न कर
चलते वक़्त के साथ तू भी चल,
 उसमे सिमटने की कोशिश न कर
अपने हाथो को फैला, खुल कर साँस ले,
 अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर
मन में चल रहे युद्ध को विराम दे,
खामख्वाह खुद से लड़ने की कोशिश न कर
कुछ बाते भगवान् पर छोड़ दे, 
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर
जो मिल गया उसी में खुश रह,
जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर
रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा,
 मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर....

लेखक 
अज्ञात

Sunday, May 3, 2015

नया जमाना आया है

 आज फिर एक कविता मेरे दोस्त ने मुझे व्हाट्स यप पर भेजी है. रचनाकार का नाम मालूम नहीं पर दिल की अभिव्यक्ति कर रही है इसलिए आप से शेयर करना अच्छा लग रहा है। 


जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते
जाने क्यूँ अब मस्त मोला मिजाज नहीं होते
पहले बता दिया करते थे दिल की बातें
जाने क्यों अब चेहरे खुली किताब नहीं होते
सुना है बिन कहे दिल की बात समझ लेते थे
गले लगते ही दोस्त हालात समझ लेते थे
तब न फेस बुक न स्मार्ट  मोबाइल  था 
 एक चिठ्ठी से दिलो के जजबात समझ लेते थे।

 

अब भाईभाई से समस्या का समाधान कहाँ पूछता है
अब बेटा बाप से उलझनों का निदान कहाँ पूछता है   

बेटी नहीं पूछती माँ से गृहस्थी  के सलीके
अब कौन गुरु चरणो में बैठ ज्ञान की भाषा सीखे।





                                                      परियों की बाते अब किसे भांती  है 
                                                          अपनों की याद अब किसे रुलाती है 
अब कौन गरीब को सखा बताता है
अब कहाँ कृष्ण सुदामा को गले लगाता है।

सोचते है हम कहाँ से चले थे और कहाँ आ गए
प्रैक्टिकली सोचते सोचते,भावनाओं को खा गए
जिंदगी में हम बहुत  प्रैक्टिकल हो गए है
हमारे अंदर के इंसान न जाने कहाँ खो गए है। 


Friday, March 27, 2015

असफलता भी सफलता है

 आपको सुन कर आश्चर्य होआ रहा है न, मुझको भी हुआ था जब तक सफलता का मतलब नहीं समझा था. वास्तव में सफलता और  असफलता एक सिक्के के दो पहलू नहीं बल्कि सफलता से एक कदम पीछे की स्थिति है. असफलता केवल यह बताती है की आप सफलता के पास है। इसे एक उदहारण से समझना ठीक रहेगा। एक आदमी पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़ा मार रहा है. यदि उसको तोड़ने में २० प्रहार करने पड़े तो इसका मतलब यह नहीं की उसके १९ प्रहार असफल हो गए.  सच तो यह है की आपको लक्ष्य प्राप्ति बीसवें प्रहार से मिली है किन्तु यहाँ पहुचने के लिए १९ प्रहार भी उतने ही आवश्यक है जितना २०वा। जिसके बिना जिसे आप सफलता मान रहे है वोह प्राप्त नहीं हो सकती थी।

असल में हमारे जीवन में कई चीजे होती है जो दिखाई देती है और कुछ अदृश्य में काम करती है. अदृश्य का प्रभाव तब पता चलता है जब घटना हो जाती है और इसे ही हम ईश्वर की कृपा नाम देते है। उदाहरण के लिए आप हवाई जहाज से जा कहीं जाने की योजना बनाते है और ट्रैफिक जाम के  कारण फ्लाइट  छूट गयी तो आप उन कारणों को स्वाभाविक दोष देंगे ,आप इससे होने वाले नफा और नुकसान का अनुमान लगायेंगे ,आपके साथी और परिवार वाले आपको हर तरह की नसीहत देने में पीछे नहीं रहेंगे, किन्तु आपको तीन घण्टे के बाद पता चला की जहाज की दुर्घटना हो गयी तो आप उन परस्थितिओं को और अदृशय शक्ति यानि ईश्वर का भी धन्यवाद करेंगे जिस कारण  से आपका जीवन सुरक्षित हुआ है.

 इसका मतलब केवल यह है जबतक आपको अपने जीवन में अगले कदम का पता नहीं चलता आप अपने साथ होने वाली घटनाओ और उसके परिणामों के आधार पर सफलता और असफलता का अंदाजा लगाते रहते है। जबकि वह मात्र एक घटना होती है. एक और उदहारण विषय को साफ़ और समझने में मदद करेगा। एक विद्यार्थी पढ़ने में अच्छा है इसलिए उसका चुनाव इंजीनियरिंग में हो जाता है और दूसरे विद्यार्थी के मार्क्स काम होने के कारण वह आर्ट्स विषयो के साथ ग्रेजुएशन करके प्रशासनिक सेवाओं में चला जाता है तो क्या आप इन दोनों में किसी को सफल अथवा असफल कह सकते है ?शायद यह ठीक नहीं है।

आपकी व्यक्तिगत योग्यता,परिस्थितियाँ, आपके पुराने कार्मिक फल  और ऐसे ही तमाम संयोग आपके चारो ओर होने वाली  घटनाओं का कारण बनते है लेकिन आप अपने पुराने अनुभवों के आधार पर आप घटना को और सफलता और असफलता का नाम देते है। 

और अन्त में

 
परिंदो को नहीं दी जाती ,तालीम  उड़ानों    की 
वो खुद ही तय करते है , मंजिल आसमानों   की 
रखता है जो हौसला ,आसमान को छूने का उसको 
नहीं परवाह होती है,    नीचे    गिर जाने    की 


अजय सिंह

नोट : यह आलेख जारी है।